विशाला शर्मा का ब्लॉगः भाषा की ताकत हैं संचार के साधन

By विशाला शर्मा | Published: September 14, 2021 01:03 PM2021-09-14T13:03:10+5:302021-09-14T13:13:12+5:30

हिंदी पत्नकारिता की बात करें तो हिंदी का पहला अखबार ‘उदंत मार्त्तड’ कलकत्ता से निकला था। स्वाधीनता की लड़ाई के दौर में अकबर इलाहाबादी ने कहा था, ‘जब तोप मुकाबिल न हो तो अखबार निकालो’। तिलक ने ‘मराठा’ एवं ‘केसरी’ नामक दो अखबारों से अंग्रेजों से विचारात्मक लड़ाई की शुरु आत की।

Vishala Sharma's blog the power of language is the means of communication | विशाला शर्मा का ब्लॉगः भाषा की ताकत हैं संचार के साधन

तस्वीरः सोशल मीडिया

Highlightsभाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, आदान-प्रदान की ताकत है तथा मानव जीवन का अभिन्न अंग हैभाषा की ताकत हैं संचार के साधन भाषा की शिक्षा मूल्यों पर आधारित होने के साथ-साथ रोजगारमूलक हो

भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, आदान-प्रदान की ताकत है तथा मानव जीवन का अभिन्न अंग है। भाषा की ताकत हैं संचार के साधन। इन साधनों ने समाज के सत्य, साहित्य के शिव और संस्कृति के सौंदर्य को जनता के समक्ष रखा है। जनता के द्वारा जनता की जरूरतों को जनता की भाषा में पूरा करने का प्रयास किया है। भाषाओं के विकास में समाचार पत्न-पत्रिकाओं, रेडियो, टीवी, सिनेमा और इंटरनेट ने बहुत बड़ा योगदान दिया है। प्रसार माध्यमों का कैनवास बहुत बड़ा है। ज्ञान, सूचना और मनोरंजन इन तीन स्तंभों पर खड़े इन सांस्कृतिक विकास के प्रहरियों ने भारत के भाषायी विभाजन पर सेतु का काम किया है।

हिंदी पत्नकारिता की बात करें तो हिंदी का पहला अखबार ‘उदंत मार्त्तड’ कलकत्ता से निकला था। स्वाधीनता की लड़ाई के दौर में अकबर इलाहाबादी ने कहा था, ‘जब तोप मुकाबिल न हो तो अखबार निकालो’। तिलक ने ‘मराठा’ एवं ‘केसरी’ नामक दो अखबारों से अंग्रेजों से विचारात्मक लड़ाई की शुरु आत की। गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ तथा ‘हरिजन’ जैसे समाचार पत्न निकाले। आज भारत में हिंदी और समस्त भारतीय भाषाओं के अखबारों की दो करोड़ से अधिक प्रतियां रोज छपती हैं। भारत में अखबार बाजार का विस्फोट हो चुका है। समयानुसार पत्नकारिता में साहित्यिक भाषा का प्रयोग करना अत्यंत जटिल है अत: समकालीन यथार्थ को दृष्टि में रखते हुए सरल तथा बोलचाल की भाषा को स्थान प्राप्त हो चुका है। हिंदी में अंग्रेजी की घुसपैठ से हमें शिकायत रहती है किंतु हिंदी जीवित और शक्तिशाली भाषा है। संविधान के अनुच्छेद-351 के अनुसार हिंदी भाषा अपने विकास के लिए भारतीय भाषाओं के शब्दों को आत्मसात कर अपना विकास करे, ऐसा प्रावधान था। 

आज विदेशों में हिंदी को दो कारणों से पढ़ने की पहल की जा रही है। पहला बाजारवादी संस्कृति अर्थात बाजारों व उद्योगों में घुसपैठ के लिए और दूसरा हिंदी फिल्मों को समझने के लिए। आज ग्लोबल आईटी का जमाना है। कम्प्यूटर तथा इंटरनेट की दुनिया में शक्तिशाली भूमिका है। कम्प्यूटर की भाषा अंग्रेजी नहीं बाइनरी है अर्थात जीरो और वन। यह बाइनरी नंबर भारत और अरब की देन है। एक दशक पहले तक माना जाता था कि हिंदी इंटरनेट के लिए सही भाषा नहीं है। अलग-अलग फांट और शैली अपनाने के कारण एक-दूसरे दस्तावेजों को पढ़ना संभव नहीं था लेकिन हिंदी में यूनिकोड फांट के आने से स्थिति बदल गई। 

आज हिंदी के लगभग सभी दैनिक समाचार पत्न इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। साहित्य की पत्रिकाएं ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। गूगल हिंदी सर्च इंजन की मदद से कोई भी व्यक्ति इंटरनेट पर मौजूद सभी हिंदी वेबपृष्ठों को देख सकता है। हिंदी से दुनिया की चौबीस भाषाओं में स्वत: अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है। 
इस सूचना प्रौद्योगिकी के युग में इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि आज का समय यथार्थ की हदें लांघकर अतियथार्थ का हो गया है। बाजार आज नियामक शक्ति है। ऐसे समय में हमें शिक्षा को जीवन से जोड़कर देखना होगा। 

आज साहित्य परिवर्तन की आशा संजोए है। अत: साहित्य के साथ भाषा की शिक्षा मूल्यों पर आधारित होने के साथ-साथ रोजगारमूलक हो, यह बदलाव इस प्रतिस्पर्धा के युग में आवश्यक है। साहित्य की अध्ययन पद्धति में बदलाव लाने की आवश्यकता है और यह बदलाव तकनीकी बिरादरी का सहारा लिए बगैर संभव नहीं होगा। साहित्य से जुड़े लोग तकनीक से जुड़ें। साहित्यकार, प्राध्यापक, अनुवादक, कम्प्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करें। आज केंद्रीय हिंदी संस्थान का सूचना एवं भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग हिंदी के पाठ्यक्रमों में आधुनिकीकरण की पहल कर रहा है। हमें भाषा के अंदर आजीविका के स्नेत बनाना है। प्रयोगकर्ताओं का बोझिल शब्दों से बचाना और भाषा को सहज व सरल बनाना समय की मांग है।

Web Title: Vishala Sharma's blog the power of language is the means of communication

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