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विनीत नारायण का ब्लॉग: इस चुनाव के सबक अनेक

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 20, 2019 06:24 IST

भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा राजा से ऋषि होने की अपेक्षा करती है. जो बड़ी सोच रखता हो और अपने विरोधियों को भी सम्मान देना जानता हो. जो बिना बदले की भावना के शासन चलाए. इसलिए प्रधानमंत्नी कोई भी बने, उन्हें ये सुनिश्चित करना होगा कि उनका या उनके सहयोगियों का कोई भी आचरण समाज में डर या वैमनस्य पैदा न करे.

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विनीत नारायण

सारी दुनिया की निगाह 23 मई पर है. भारतीय लोकसभा के चुनावों के नतीजे कैसे आते हैं, इस पर आगे का माहौल बनेगा. अगर एनडीए की सरकार बनती है या गठबंधन की सरकार बनती है तो भी भारत की जनता शांति और विकास चाहेगी. इस बार का चुनाव जितना गंदा हुआ, उतना भारत के लोकतंत्न के इतिहास में कभी नहीं हुआ.

देश के बड़े-बड़े राजनेता बहुत छिछली भाषा पर उतर आए. जनता अपने नेता को शालीन, परिपक्व, दूरदर्शी और सभ्य देखना चाहती है. इस चुनाव का पहला सबक यही होगा कि सभी दलों के बड़े नेता यह चिंतन करें कि उनके चुनाव प्रचार में कहीं कोई अभद्रता या छिछोरापन तो नहीं दिखाई दिया. अगर उन्हें लगता है कि ऐसा हुआ, तो उन्हें गंभीरता से विचार करना होगा कि भविष्य में ऐसा न हो.

भारत के चुनाव आयोग ने भी कोई प्रशंसनीय भूमिका नहीं निभाई. उसके निर्णयों पर बार-बार विवाद खड़े हुए. इतना ही नहीं, खुद आयोग के तीन में से एक सदस्य ही अपने बाकी दो साथियों के निर्णयों से सहमत नहीं रहे और उन्होंने अपने विरोध का सार्वजनिक प्रदर्शन किया. इस चुनाव में सबसे ज्यादा विवाद ईवीएम की विश्वसनीयता पर हुआ. जहां एक तरफ भारत का चुनाव आयोग ईवीएम मशीनों की पूरी गारंटी लेता रहा, वहीं विपक्ष लगातार ईवीएम में धांधली के आरोप लगाता रहा.

आरटीआई के माध्यम से मुंबई के जागरूक नागरिक ने पता लगाया कि चुनाव आयोग के स्टॉक में से 22 लाख ईवीएम मशीनें गायब हैं. जबकि इनको बनाने वाले सार्वजनिक प्रतिष्ठानों ने इस दावे की पुष्टि की कि उन्होंने ये मशीनें चुनाव आयोग को सप्लाई की थीं.  विपक्षी दलों को चिंता होने लगी कि कहीं लापता ईवीएम मशीनों का दुरुपयोग न हो. इसीके चलते सभी विपक्षी दलों ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया. पर अदालत ने विपक्षी दलों की बात नहीं मानी.  

राजनेताओं के हित में है कि वे जनता को भयमुक्त करें. उसे आश्वासन दें कि अब अगले चुनाव तक राजनीति नहीं, विकास की बात होगी. तब जाकर देश में अमन चैन कायम होगा.

भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा राजा से ऋषि होने की अपेक्षा करती है. जो बड़ी सोच रखता हो और अपने विरोधियों को भी सम्मान देना जानता हो. जो बिना बदले की भावना के शासन चलाए. इसलिए प्रधानमंत्नी कोई भी बने, उन्हें ये सुनिश्चित करना होगा कि उनका या उनके सहयोगियों का कोई भी आचरण समाज में डर या वैमनस्य पैदा न करे. चुनाव की कटुता को अब भूल जाना होगा और खुले दिल से सबको साथ लेकर विकास के बारे में गंभीर चिंतन करना होगा.

आज देश के सामने बहुत चुनौतियां हैं. करोड़ों नौजवान बेरोजगारी के कारण भटक रहे हैं. अर्थव्यवस्था धीमी पड़ी है. कारोबारी परेशान हैं. विकास की दर काफी नीचे आ चुकी है. ऐसे में नई सरकार को राजनैतिक हिसाब-किताब भूलकर समाज की दशा और दिशा सुधारनी होगी.

टॅग्स :लोकसभा चुनावराष्ट्रीय रक्षा अकादमीभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसनरेंद्र मोदी
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