विजय दर्डा का ब्लॉग: यदि मानवता जिंदा रहेगी तो सब जिंदा रहेंगे..!

By विजय दर्डा | Published: June 8, 2020 06:22 AM2020-06-08T06:22:20+5:302020-06-08T06:22:20+5:30

अमेरिका में जॉर्ज  की हत्या का वीडियो फुटेज जिसने भी देखा है वह निश्चय ही रो पड़ा होगा. कतरा भर सांस के लिए जिस धरती पर तड़प रहा था जॉर्ज, वह अमेरिका है जो पूरी दुनिया में मानवाधिकार का झंडा लेकर खड़ा रहता है. इधर भारत में हथिनी की हत्या ने तो इंसानियत को मिट्टी में मिला दिया है. हमारी संस्कृति प्रकृति को पूजने वाली है लेकिन इंसान आज पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहा है.

Vijay Darda's blog over george floyd death & elechant murder: If humanity stays alive then everyone will be alive | विजय दर्डा का ब्लॉग: यदि मानवता जिंदा रहेगी तो सब जिंदा रहेंगे..!

भारत में हथिनी की हत्या ने तो इंसानियत को मिट्टी में मिला दिया है.

भारत में एक गर्भवती हथिनी और अमेरिका में एक फुटबॉल खिलाड़ी जॉर्ज फ्लायड की हत्या दिल दहला देने वाली घटनाएं हैं. दिल तब भी दहला था जब लाखों-लाख प्रवासी मजदूर अपने घर जाने के लिए लहूलुहान पैरों से सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़ने को मजबूर हो गए थे. इन घटनाओं ने मुझे विचलित कर रखा है. मन में बस एक ही सवाल पैदा हो रहा है कि इतनी क्रूरता और इतनी अमानवीयता क्यों? इंसान तो खुद को पूरी प्रकृति में सबसे ज्यादा सभ्य और विकसित मानता है, फिर उसके भीतर ऐसी क्रूरता कहां से आ जाती है कि एक गर्भवती हथिनी को बारूद से भरा अनानास खिला दे या फिर किसी व्यक्ति को एक-एक सांस के लिए तड़पा कर मार दे? ये तो राक्षसों की प्रवृत्ति है!

अमेरिका में नस्लवाद और रंगभेद, भारत में जानवरों से क्रूरता

अमेरिका में जॉर्ज  की हत्या का वीडियो फुटेज जिसने भी देखा है वह निश्चय ही रो पड़ा होगा. कतरा भर सांस के लिए जिस धरती पर तड़प रहा था जॉर्ज, वह अमेरिका जो पूरी दुनिया में मानवाधिकार का झंडा लेकर खड़ा रहता है. उसे अपने भीतर का घिनौना नस्लवाद और रंगभेद क्या नजर नहीं आता है? कोरोना के इस भीषण संकट के दौर में भी यदि पूरे अमेरिका में केवल काले ही नहीं गोरे लोग भी गुस्से में बाहर निकल आए हैं तो इसका मतलब है कि समस्या गंभीर है.

इधर भारत में हथिनी की हत्या ने तो इंसानियत को मिट्टी में मिला दिया है. हमारी संस्कृति प्रकृति को पूजने वाली है लेकिन इंसान आज पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहा है. नदियों और पहाड़ों को तबाह कर रहा है. जंगलों को नष्ट कर रहा है. शेर हो या हाथी या फिर कोई और जंगली जानवर, मनुष्य उनकी जगह पर कब्जा कर रहा है तो वे इंसानी बस्तियों की ओर आएंगे ही! इसी का असर है कि मानव संकट में है. आपने देखा न! लॉकडाउन के दौरान जब इंसानी हस्तक्षेप कम हुआ तो वातावरण कितना साफ हो गया! इंसान को अपनी हवस रोकनी होगी और मानवीयता दिखानी होगी, तभी हम बेहतर कल की उम्मीद कर सकते हैं.

लॉकडाउन में उड़ी अपनेपन की धज्जियां

अभी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की जो दुर्दशा हुई वह मानवता को हिला देने वाला मसला है. भूखे-प्यासे वे सड़कों पर चले जा रहे थे, रेल पटरियों पर चले जा रहे थे. पैरों में छाले पड़ गए थे. कोई बच्चा अपने माता-पिता को ठेले पर बिठाकर सैकड़ों किलोमीटर की कठिन यात्र कर रहा था. महात्मा गांधी कहा करते थे कि मनुष्य में ही भगवान बसता है. गरीबों के लिए दरिद्रनारायण शब्द का उपयोग भी उन्होंने किया था लेकिन इस पूरे दौर में मानवता की बहुत कमी नजर आई. अपनेपन की धज्जियां उड़ गईं.  

आखिर हममें से कितने लोग हैं जो अपने यहां काम करने वाले घरेलू सेवकों का ध्यान ठीक से रखते हैं? क्या कभी उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं या फिर यह पूछते हैं कि घर पर कोई परेशानी तो नहीं है? कभी ऐसा करके देखिए, आपको सुकून मिलेगा और खुद के इंसान होने पर गर्व भी होगा. अभी कुछ दिन पहले   मैंने नागपुर में अपने निवास पर काम करने वाले स्वीपर से लेकर खाना बनाने वाले और ड्राइवर सहित सभी लोगों के साथ खाना खाया. मैंने उनके प्रति आभार जताया कि आप हमारा कितना ध्यान रखते हैं. हम आपका और आप हमारे परिवार हैं. ठीक उसी दिन मुंबई में मेरे बेटे देवेंद्र, बहू रचना और पोते आर्यमन ने मिलकर खाना बनाया. मेन्यू भी जबर्दस्त था. मेरा छोटा पोता शिवान भी सहयोग कर रहा था.

मेरे घर में काम करने वाले सभी सेवकों को उसी डायनिंग टेबल पर खाना खिलाया जिस पर हम लोग खाना खाते हैं. खाना बनाने वाले महाराज को मेरी कुर्सी पर जब बिठाया तो वे बैठने को तैयार नहीं थे. बड़ी मुश्किल से सहमे-सहमे से बैठे. मेरे बेटे-बहू और पोतों ने उनकी प्लेटें भी धोईं और कृतज्ञता जताई.  यह सब हमारे पारिवारिक संस्कारों के कारण संभव हुआ. बाबूजी और बाई(मां) ने हमें हमेशा यही सिखाया कि छोटा बड़ा कोई नहीं होता. सबसे बड़ी मानवता होती है. आप कितने भी बड़े हो जाएं यदि मानवता नहीं है तो ऐसी संपन्नता का क्या मतलब है? हम ढेर सारे अनुसंधान  कर लें, चांद-सितारों से बातें कर लें लेकिन जब तक गरीबों की त्रासदी और उनके मन की बात न समझ लें तब तक अपनी बात समझाने का कोई मतलब ही नहीं है!

मानवता ही सबसे बड़ा धर्म

हम सर्वधर्म समभाव में विश्वास करने वाले धर्मनिरपेक्ष लोग हैं लेकिन कई बार इसमें व्यवधान पैदा करके मानवता पर हमला करने की नापाक कोशिशें की जाती हैं. हालांकि ऐसे दौर में भी सुकून मिलता है जब मानवीयता और इंसानियत के कुछ बेहतरीन उदाहरण सामने आते हैं.

लुधियाना के पास का एक गांव. वहां के अब्दुल साजिद ने अपने दोस्त वीरेंद्र कुमार की बेटी की शादी खुद उसका पिता बनकर हिंदू रीति-रिवाज से कराई. केरल की एक मस्जिद में हवन करके एक हिंदू वर-वधू ने सात फेरे लिए. मुस्लिम समाज ने वधू के लिए तोहफे का इंतजाम किया. वर-वधू ने इमाम के पैर छूकर आशीर्वाद लिए. गुजरात के एक मुस्लिम परिवार ने अपने हिंदू मित्र पंड्याजी का दाह-संस्कार किया. अरमान ने बाल मुंडाए और धोती जनेऊ पहनकर अपने अब्बा के दोस्त की कपाल क्रिया की. ऐसा तब होता है जब व्यक्ति में इंसानियत कूट-कूट कर भरी होती है और मजहब का वह सही अर्थ समझ लेता है. ऐसी सच्ची मानवता बची रहेगी तो हम सब बचे रहेंगे. यह वक्त एकजुट होकर मानवता को बचाने का है. मानवता हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी धरोहर है.

Web Title: Vijay Darda's blog over george floyd death & elechant murder: If humanity stays alive then everyone will be alive

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