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विजय दर्डा का ब्लॉग: जंग उनकी लेकिन मुश्किलें हमारी बढ़ीं..!

By विजय दर्डा | Updated: February 28, 2022 08:46 IST

रूस-यूक्रेन जंग का असर व्यापार पर तो होगा ही. सबसे ज्यादा असर पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों में भीषण उछाल के कारण पड़ेगा. भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है.

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यूक्रेन पर रूसी हमले ने यूरोप के सामने तो संकट खड़ा किया ही है, भारत की मुश्किलें बहुत बढ़ा दी हैं.  मुश्किलें कितनी लंबी होंगी, अभी कहना मुश्किल है लेकिन इतना तय है कि इस जंग का खामियाजा हमें लंबे अरसे तक भुगतना होगा. दुनिया में साख रखने वाली जापानी कंपनी नोमुरा होल्डिंग्स ने अपनी रिपोर्ट में बड़े स्पष्ट तौर पर लिखा है कि भारत उन देशों में शामिल है जिस पर इस जंग का सबसे बुरा असर पड़ने वाला है. यह स्पष्ट तौर पर दिख भी रहा है.

भारत पर क्या असर पड़ेगा इसकी चर्चा करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि नाटो देशों और रूस के बीच झगड़ा थमने वाला नहीं है. रूस तब तक नहीं रुकेगा जब तक कि नाटो के विस्तार पर रोक न लग जाए. दरअसल सोवियत संघ पर नकेल कसने के लिए अमेरिका और यूरोप के देशों ने नाटो यानी नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन की स्थापना 1949 में की थी. 1991 में जब सोवियत रूस का विघटन हुआ तो 15 नए देश बन गए. रूस उनमें सबसे प्रमुख था. 

रूस को घेरने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में नाटो ने सोवियत संघ से अलग हुए देशों को नाटो में मिलाने के लिए प्रलोभन दिया. लातविया, एस्टोनिया, लिथुआनिया जैसे देश उसके साथ हो लिए. यहां तक कि सोवियत संघ के सहयोगी रहे बुल्गारिया, रोमानिया और स्लोवाकिया जैसे देश भी नाटो का हिस्सा हो गए. इस दौरान पुतिन खून का घूंट पीते रहे लेकिन रूस की शक्ति को तेजी से बढ़ाते भी रहे. जब यूक्रेन ने भी नाटो के साथ जाने की पहल की तो उनके सब्र का बांध टूट गया और यूक्रेन पर ये हमला उसी का नतीजा भी है. रूस ने अमेरिका और नाटो को घुटने के बल ला दिया है. यूक्रेन अकेला पड़ गया.

अब आप देखिए कि हम पर इसका क्या असर होने वाला है. सोवियत संघ और उसके बाद उसकी जगह लेने वाला रूस हमेशा से हमारा निकटतम  सहयोगी रहा है और आज सैन्य शक्ति में यदि हम ऊंचे मुकाम पर हैं तो यह रूस के सहयोग से ही संभव हो पाया है. मगर हाल के वर्षो में अमेरिका के साथ हमारी घनिष्ठता बढ़ी है और भारत के लिए मौजूदा दौर में दोनों को साधना आसान नहीं होगा. 

फिलहाल भारत ने बड़े धैर्य से काम लिया है. न रूस का समर्थन किया है और न यूक्रेन का. पिछले सप्ताह जो बाइडेन की प्रेस ब्रीफिंग में उनसे पूछा गया कि यदि भारत और अमेरिका बड़े रक्षा साझीदार हैं तो दोनों देश क्या रूस के मामले में एक साथ हैं? बाइडेन  केवल इतना कह पाए कि ‘अमेरिका भारत से बात करेगा. अभी तक पूरी तरह से इसका कोई समाधान नहीं निकला है.’ 

वैसे ऐसा लगता है कि भारत किसी भी कीमत पर अपनी तटस्थता बनाए रखेगा क्योंकि भारत का विश्वास पंचशील में है. तो सवाल यह है कि रूस पर अमेरिका और दुनिया के दूसरे देश जो प्रतिबंध लगाएंगे, उससे भारत प्रभावित होगा? करीब 65 से 70 प्रतिशत रक्षा सामग्री हम रूस से खरीदते हैं. चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए रूस ने हमें मिसाइल रक्षा प्रणाली एस-400 की पहली खेप भी दी है और घातक राइफल भारत में ही बनाने का समझौता भी हुआ है. मगर हमें यह नहीं भूलना होगा कि अमेरिका के साथ हमारी घनिष्ठता ने रूस को चीन के साथ ला दिया है और पाकिस्तान के साथ सैन्य कवायद का कारण भी बना है. 

बहरहाल, भारत के लिए आज की स्थिति में अमेरिका से ज्यादा रूस के साथ की जरूरत है. भारत और रूस के बीच चूंकि रुपयों में कारोबार होता है इसलिए इसे जारी रखने में कोई दिक्कत भी नहीं होगी. तो क्या अमेरिका भारत पर भी गुस्सा उतारेगा? हालांकि ऐसा लगता नहीं है क्योंकि रूस पर पहले से लगे प्रतिबंधों के मामले में भारत को लेकर अमेरिका चुप ही रहा है. एस-400 के मामले में उसने तुर्की पर तो प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन भारत से कुछ नहीं कहा. अमेरिका की दिक्कत यह है कि चीन की नकेल कसने के लिए उसे भारत का साथ चाहिए. इसलिए मुङो लगता है कि कूटनीति के स्तर पर कुछ परेशानी तो होगी लेकिन भारत उसका सामना कर लेगा.

भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी महंगाई पर काबू पाना क्योंकि रूस के साथ हमारे व्यापारिक संबंध तो हैं ही, यूक्रेन से भी हम काफी आयात-निर्यात करते हैं. पिछले साल भारत ने रूस को 19,649 करोड़ रु. का निर्यात किया और 40,632 करोड़ रु. का आयात किया. यूक्रेन को भारत ने 3,338 करोड़ रु. का निर्यात किया और 15,865 करोड़ रु. का आयात किया. यूक्रेन से हम पेट्रोलियम पदार्थो के अलावा दवाई के लिए कच्च माल, सूरजमुखी का तेल, जैविक रसायन, प्लास्टिक, लोहा, इस्पात आदि मंगाते हैं. 

जाहिर है कि जंग का असर इस व्यापार पर तो होगा ही. सबसे ज्यादा असर पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों में भीषण उछाल के कारण पड़ेगा. भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है. पेट्रोलियम की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 100 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर चुकी हैं. भारत के कई राज्यों में चुनाव हैं और सरकार पेट्रोलियम की कीमतों में इजाफे का रिस्क नहीं ले रही है लेकिन अगले महीने जैसे ही चुनाव खत्म होंगे, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग लगना ही लगना है.

मैं किसी रिपोर्ट में पढ़ रहा था कि पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों में यदि 10 प्रतिशत की भी वृद्धि होती है तो हमारी जीडीपी में करीब 0.2 प्रतिशत की गिरावट आ जाएगी. इसके साथ ही डॉलर की कीमतों में उछाल के कारण भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी. पहले से ही तंगहाल आर्थिक व्यवस्था के लिए हालात ठीक नहीं रहेंगे और इसका प्रतिकूल प्रभाव सीधे तौर पर हमारे विकास पर पड़ेगा. बड़ी सामान्य सी भाषा में कहूं तो डॉलर और पेट्रोल-डीजल महंगा होने का मतलब है कि महंगाई तेजी से बढ़ेगी. गरीब और मध्यम वर्ग की रोटी पर संकट आएगा. हमारे लघु और मध्यम उद्योगों के साथ व्यापार व्यवसाय भी चपेट में आएंगे. जंग वो लड़ रहे हैं और उसकी आग में हमें झुलसना पड़ेगा! 

मन में बस यही सवाल उठता है कि आखिर ये जंग होती ही क्यों है? यूक्रेन हो या रूस, कहीं भी बेगुनाहों की जान जाती है तो हम भारतीयों का दिल दुखता है क्योंकि हम पंचशील में विश्वास करते हैं. यहां मैं यह भी कहना चाहूंगा कि रूस-यूक्रेन की जंग में फंसे भारतीय नागरिकों को बिना देर किए सुरक्षित निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो पहल की वो वाकई सराहनीय है. यह हिंदुस्तान की संवेदनशीलता को दर्शाता है. और अंत में फिर यही सवाल कि आखिर ये दुनिया शांति व सद्भाव के साथ क्यों नहीं जीना चाहती..?

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