विजय दर्डा का ब्लॉग: घर के षड्यंत्रकारियों ने की है कांग्रेस की दुर्दशा

By विजय दर्डा | Published: August 30, 2020 02:01 PM2020-08-30T14:01:19+5:302020-08-30T14:03:09+5:30

 कांग्रेस आज दुर्दशा के जिस दलदल में फंसी हुई है उसके लिए कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के भीतर का वह षड्यंत्रकारी सिंडिकेट जिम्मेदार है जिसने शीर्ष नेतृत्व को हमेशा ही भ्रमित किया है. दुर्भाग्य यह है कि नेतृत्व इन षड्यंत्रकारियों के जाल में फंसा है. यह वाकई दुर्भाग्यजनक है कि जिन्हें जमीनी हकीकत का अंदाजा तक नहीं है वे सिपहसालार बने बैठे हैं

Vijay Darda blog over congress situation: conspirators of house told plight of Congress | विजय दर्डा का ब्लॉग: घर के षड्यंत्रकारियों ने की है कांग्रेस की दुर्दशा

2019 का चुनाव हारे हुए एक साल से ज्यादा हो गए लेकिन अभी तक इस बात पर विचार नहीं हुआ कि आगे की राह क्या है?

 कांग्रेस की दुर्दशा किसी भी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के लिए दुखदायी है क्योंकि लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना बहुत जरूरी है वर्ना सरकार हुक्मरान बन जाती है. लोकतांत्रिक विचारधारा का प्रबल समर्थक होने के कारण इस कॉलम में मैं लगातार लिखता रहा हूं कि कांग्रेस का सशक्त होना समय की मांग भी है और राष्ट्र के हित में भी है.

एक साल से ज्यादा हो गए, पार्टी के पास स्थायी अध्यक्ष नहीं है. 2019 का चुनाव हारे हुए एक साल से ज्यादा हो गए लेकिन अभी तक इस बात पर विचार नहीं हुआ कि आगे की राह क्या है? पार्टी से युवा पीढ़ी के नेताओं का मोहभंग हो रहा है क्योंकि वे हाशिए पर हैं. देश के युवाओं का भी मोहभंग हो रहा है. ज्योतिरादित्य सिंधिया जा चुके हैं. सचिन पायलट ने विद्रोही मुद्रा दिखाई है. अशोक चव्हाण, संदीप दीक्षित, मिलिंद देवड़ा, जतिन प्रसाद और उन जैसे युवा नेताओं को अगली पंक्ति में होना चाहिए था लेकिन वे उपेक्षित हैं. क्या पार्टी को यह समझ में नहीं आ रहा है कि एक पीढ़ी अचानक तैयार नहीं होती! वर्षों लगते हैं नेतृत्व के लिए अगली पीढ़ी तैयार करने में!

हाथ से निकलता चला गया कांग्रेस का गढ़  

जो कांग्रेस इस देश के दिल की धड़कन हुआ करती थी वह उत्तरप्रदेश में 31 साल से, पश्चिम बंगाल में 43 साल से, तमिलनाडु में 53 साल से, बिहार में 30 साल से, ओडिशा में 20 साल से और गुजरात में 25 साल से सत्ता से बाहर क्यों है? कांग्रेस का गढ़ माना जाने वाला महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश भी हाथ से निकलता चला गया. पंद्रह साल बाद कांग्रेस मध्यप्रदेश की सत्ता में आई जरूर लेकिन आपसी झगड़े के कारण पंद्रह महीने भी नहीं टिकी! यह सब अपरिपक्व लोगों के कारण हुआ. सवाल है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव 23 साल से क्यों नहीं हुए? जो पार्टी 2009 में लोकसभा की 206 सीटें जीती थी, वह 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटों पर सिमट गई?

विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि 2004 से 2009 के बीच मनमोहन सिंह का कार्यकाल बहुत अच्छा रहा. रोजगार गारंटी योजना, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार और सूचना का अधिकार लोगों को इसी दौर में मिला. लोग कांग्रेस से खुश थे लेकिन दूसरे कार्यकाल 2009 से 2014 के बीच ‘घोटालों की गूंज’ सुनाई देने लगी. कॉमनवेल्थ गेम, 2जी, कोल, आदर्श सोसायटी, रेलवे घोटाला जैसे मामले उछलने लगे. कांग्रेस ने कई केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों  के इस्तीफे करवाए. खुद ही ऐसा वातावरण बना दिया कि सरकार भ्रष्ट और निकम्मी भी है जबकि हकीकत यह थी कि पार्लियामेंट और जनता के बीच इस मामले को ठीक से कांग्रेस रख ही नहीं सकी. यह सब सोनिया गांधी को अंधेरे में रखकर किया जा रहा था साथ ही मनमोहन सिंंह को फंसाया जा रहा था. टॉप पोजीशन में बैठे लोग यह कर रहे थे.  भाजपा के उच्च पदस्थ एक नेता ने मुझसे कहा भी था कि कांग्रेसियों को हो क्या गया है? हमारा तो काम है इश्यू उठाना, विरोध करना लेकिन कांग्रेसी बैकफुट पर क्यों है? मुझे आश्चर्य होता है.!

सोनिया के नेतृत्व में दो बार सत्ता में आई कांग्रेस 

जहां तक सोनिया जी का सवाल है तो उन्होंने अपने स्तर पर कांग्रेस को बेहतर तरीके से संभाला. उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी दो बार सत्ता में भी आई. वे फ्रंट पर थीं और उन्होंने जो नीतियां बनाई थीं उन्हीं पर वोट भी मिले. यूपीए ने 2004 में प्रधानमंत्री पद के लिए उनके सामने प्रस्ताव रखा था जिसे  स्वीकार नहीं करके उन्होंने त्याग का बड़ा उदाहरण पेश किया लेकिन कांग्रेसियों ने अपने झगड़े में उस त्याग को भी मलिन कर दिया. जब  राहुल गांधी को भाजपा की ओर से घेरा जा रहा था, राजनीतिक दृष्टि से फंसाया जा रहा था, उस समय में भी ये षड्यंत्रकारी नेता आनंद की बांसुरी बजा रहे थे. दरअसल भाजपा को यह भय था कि राहुल यदि सफल हो गए तो उसे नुकसान होगा. इसलिए भाजपा ने राहुल को प्रभावहीन नेतृत्व वाला नेता साबित करने की कोशिश की. राहुल गांधी के आसपास ऐसे युवा नेताओं का जमघट था जो अच्छी अंग्रेजी तो बोलते थे लेकिन जमीन से उनका कोई लेना-देना नहीं था. भाजपा ने राहुल की केवल ट्विटर पर बयान देने वाले नेता की छवि बना दी. राहुल गांधी युवा हैं और युवाओं का आकर्षण उनके प्रति होना चाहिए लेकिन इसमें नरेंद्र मोदी सफल हो गए.

जब कुछ लोगों के व्यवधान से मनमोहन सिंह परेशान हो गए तो उन्होंने कहा कि राहुल को पीएम बना दीजिए लेकिन राहुल ने मना कर दिया. बाद में वे लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने को भी तैयार नहीं हुए. इस कारण उनकी क्षमता सामने नहीं आ पाई. यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि शीर्ष नेतृत्व को भ्रमित करने में षड्यंत्रकारी सफल होते रहे हैं. जिन्हें जमीनी हकीकत का जरा सा भी अंदाजा नहीं है वे सिपहसालार बन गए. यही कारण है कि कई पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री, एमपी और विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा या फिर क्षेत्रीय पार्टियों में चले गए. आज हालत यह है कि कांग्रेस, महिला कांग्रेस, युवक कांग्रेस,  एनएसयूआई, सेवादल,  और इंटक जैसी संस्थाएं प्रभावहीन हैं. 

जब जागो तब सवेरा! 

इनके नेताओं का जमीन से रिश्ता नहीं है. बस कुर्सी चाहिए. इंदिरा जी की 100वीं जयंती कब आई और चली गई, पता ही नहीं चला. यहां तक कि यूपी के एक सांसद ने राज्यसभा में राजीव गांधी के चरित्र हनन की कोशिश की तो जया बच्चन ने उसका मुंह बंद किया. कांग्रेसी नेता बैठकर सुन रहे थे. इसके ठीक विपरीत आरएसएस और भाजपा ने खुद से जुड़े संगठनों को बहुत मजबूत किया  है. देश-विदेश में नरेंद्र मोदी के साथ ही अपनी विचारधारा के महापुरुषों की छवि को चमकाने में  कोई कसर नहीं छोड़ी है.  

यह उनका हक भी है लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस क्यों नहीं कर रही है? मेरा आकलन है कि घर में कोई सच बोलता नहीं इसलिए सब गुमराह रहते हैं. सब सपनों की दुनिया में रहते हैं. भाजपा ने भारत को कब अपना बना लिया, कांग्रेसियों को पता ही नहीं चला. लेकिन वक्त अभी भी बीता नहीं है. जब जागो तब सवेरा! भारतीय लोकतंत्र के लिए कांग्रेस का फिर से खड़ा होना बहुत जरूरी है. इसके लिए निर्वाचित युवा अध्यक्ष और उसके साथ जमीनी हकीकत को समझने वाली टीम बहुत जरूरी है. सोनिया जी के दम में जब तक दम है तब तक उन्हें कांग्रेस का मार्गदर्शन करते रहना चाहिए. बिना उनके आज विकल्प भी नहीं है. 

Web Title: Vijay Darda blog over congress situation: conspirators of house told plight of Congress

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