विजय दर्डा का ब्लॉग: न जीत न हार, भाईचारे की हमेशा बहती रहे बयार
By विजय दर्डा | Published: November 10, 2019 06:23 AM2019-11-10T06:23:51+5:302019-11-10T06:23:51+5:30
मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवतजी की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं और उनके कथन का स्वागत भी करता हूं कि यह फैसला न किसी की जीत है और न किसी की हार है. न उत्सव होना चाहिए और न ही दुखी होना चाहिए. मोदीजी ने बहुत सही ट्वीट किया है कि रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, यह समय हम सबके लिए भारतभक्ति का है.
तो जिसका वर्षो से इंतजार था, वह घड़ी आखिर आ ही गई. एक ऐसा कानूनी विवाद जो 134 वर्षो से ज्यादा समय से चल रहा था, उस पर इस देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दे दिया. पांच जजों की संविधान पीठ ने पूरी वैज्ञानिकता के आधार पर एकमत से फैसला सुनाया है. राम जन्मस्थान का अधिकार रामलला को दिया है और मंदिर निर्माण के लिए सरकार को तीन महीने के भीतर ट्रस्ट बनाने के लिए कहा है. मस्जिद के लिए अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को देने के आदेश भी दिए गए हैं.
निश्चित रूप से न्याय मिलना तो महत्वपूर्ण होता ही है, उससे भी महत्वपूर्ण होता है कि न्याय कैसे मिला और उसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई. सर्वोच्च न्यायालय ने आर्कियोलॉजिकल सव्रे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को प्रमुख आधार माना. निश्चय ही यह अत्यंत संतुलित और समग्र फैसला है. मुस्लिम पक्षकार स्व. हाशिम अंसारी के सुपुत्र और मौजूदा पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा भी है कि जो फैसला हुआ वह बेहतर है. मेरी कोई हार नहीं. अब कोई विवाद नहीं. मैं अंसारीजी की भावनाओं की कद्र करता हूं.
मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवतजी की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं और उनके कथन का स्वागत भी करता हूं कि यह फैसला न किसी की जीत है और न किसी की हार है. न उत्सव होना चाहिए और न ही दुखी होना चाहिए. मोदीजी ने बहुत सही ट्वीट किया है कि रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, यह समय हम सबके लिए भारतभक्ति का है. मैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रशंसा करना चाहूंगा जिन्होंने न्यायालय का फैसला आने के तत्काल बाद कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक बुलाई और न्यायालय के फैसले के सम्मान की बात की. इसके साथ ही राम मंदिर बनाने के पक्ष में अपनी मंशा जाहिर की और देशवासियों से अपील की कि सांप्रदायिक सौहाद्र्र बनाए रखें.
मैं भाजपाशासित राज्यों और कांग्रेसशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और खास तौर पर ममता बनर्जी की प्रशंसा करता हूं कि उन्होंने अपने-अपने राज्यों में सांप्रदायिक सौहाद्र्र के लिए पुरजोर माहौल बनाया ताकि कुछ अप्रिय न घटे. यह वाकई संतोष की बात है कि विभिन्न राज्यों की पुलिस और खुफिया तंत्र ने अपना दायित्व पूरी दक्षता के साथ निभाया. इसका परिणाम यह हुआ कि फैसले के बाद सोशल मीडिया पर उन्मादी हरकतें नहीं हुईं. बात-बात पर उतावला होने वाला सोशल मीडिया फैसले के बाद खामोश नजर आया.
मेरी स्पष्ट मान्यता है कि धर्म हमारी आस्था है. हम अपनी आस्था का सम्मान करते हैं, दूसरा अपनी आस्था का सम्मान करता है. दरअसल हर किसी की आस्था का सम्मान होना चाहिए. लेकिन जब देश की बात हो तो हमें अपनी आस्था से ऊपर उठकर राष्ट्रधर्म को तवज्जो देनी चाहिए. हमारा भारत इस मामले में भाग्यशाली है जहां हर नागरिक के लिए देश सबसे पहले क्रम पर आता है. हम किसी भी धर्म को मानें, आराधना की किसी भी पद्धति में विश्वास करें लेकिन जब देश की बात आती है तो हम सब एक हैं. इस एकता का सबसे बड़ा कारण हमारा भाईचारा है. यही हमारी असली ताकत है. हमें इस ताकत को हर हाल में संभाले रखना है.
भाईचारे का एक अप्रतिम उदाहरण मैं आपको बताता हूं. राम मंदिर के पक्षकार परमहंस रामचंद्र दास और बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाशिम अंसारी ने न्यायालय में करीब साठ वर्षो तक मुकदमा लड़ा लेकिन दोनों बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे. यहां तक कि वे एक ही रिक्शे में सवार होकर न्यायालय जाया करते थे और एक ही रिक्शे में वापस आया करते थे. लोगों को बड़ा आश्चर्य होता था लेकिन वे कहते थे कि हमारी लड़ाई वैचारिक है, इससे दोस्ती क्यों प्रभावित होनी चाहिए? अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अयोध्या में उनकी दोस्ती के किस्से अब भी मशहूर हैं. शाम को घर लौटकर दोनों साथ में ताश भी खेलते थे लेकिन कभी मंदिर-मस्जिद की बात नहीं करते थे. इतिहास में कई ऐसे किस्से भी मिल जाएंगे जब किसी मंदिर के लिए किसी मुस्लिम शासक ने जागीर दे दी तो कभी हिंदुओं ने मस्जिद निर्माण के लिए जगह दे दी. इतिहास में एक घटना यह भी है कि अठारहवीं शताब्दी में एक मंदिर को तोड़ने के लिए जब बहुत से कट्टरपंथी एकत्र हो गए थे तो बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने सेना भेजी थी. इस सेना ने सैकड़ों कट्टरपंथियों को मार गिराया था.
कहने का आशय यह है कि गंगा-जमुनी तहजीब इस देश की सबसे बड़ी ताकत रही है. हमें यह ताकत बनाए रखनी है. खास तौर पर इस संवेदनशील वक्त में हमें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. किसी भी चिनगारी को हवा देने की हर हरकत को हमें रोकना होगा ताकि हमारी सामाजिक समरसता न बिगड़े और न हमारे भाईचारे पर कोई असर हो. हम गर्व से कहें- सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा.