विजय दर्डा का ब्लॉग: बेमिसाल हौसले की बदौलत हम जग जीतेंगे

By विजय दर्डा | Published: November 8, 2021 10:04 AM2021-11-08T10:04:49+5:302021-11-08T10:06:10+5:30

जानकारों की मानें तो दिवाली के अवसर पर 1 लाख 25 हजार करोड़ का व्यवहार हुआ. बाजार ने 15 टन सोना खरीद लिया और हीरा उद्योग की तो बल्ले-बल्ले थी.

Vijay Darda Blog: Diwali amid challenges, India Will Win world with Perseverance | विजय दर्डा का ब्लॉग: बेमिसाल हौसले की बदौलत हम जग जीतेंगे

बेमिसाल हौसले की बदौलत भारत हर चुनौती पर हासिल करेगा जीत

जब से होश संभाला तब से मैंने दिवाली को जैसे दिल दे दिया! यह त्यौहार मुझे बहुत लुभाता है क्योंकि यह ऊर्जा का त्यौहार है. धार्मिक दृष्टि से तो इस त्यौहार का अपना महत्व है ही, वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो ऊर्जा के बगैर जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती. जो जितनी ऊर्जा से भरा है, वह उतना ही कामयाब होने की सामथ्र्य रखता है. 

दिवाली नई उम्मीदों का त्यौहार है. जिंदगी से अंधेरे को रुख्सत करने की चाहत और उजाले की शक्ति का सबसे शानदार प्रतीक है. इसीलिए मैं दिवाली बिल्कुल परंपरागत अंदाज में मनाता हूं और खुशियों में डूब जाता हूं.

पिछले साल की दिवाली पर कोरोना महामारी की काली छाया छाई हुई थी. मगर हमारे हौसले का कमाल देखिए कि उससे उबरने में हमें ज्यादा वक्त नहीं लगा. इस साल की दिवाली में हम सबने अपनी खुशियों का बेपनाह इजहार किया. ये हौसला हमें खुशियों की रौशनी से मिला. मैंने महसूस किया कि लोगों ने बड़े दिल के साथ अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अपने हाथ खोल दिए. जिसकी जितनी शक्ति थी, उसने बाजार को उतना जरूर संभाला. 

निश्चित रूप से इसमें सरकार का तो योगदान है ही लेकिन आम आदमी की चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूं क्योंकि बाजार तभी ज्यादा मजबूत होता है जब आम आदमी पैसे खर्च करे. आपने देखा कि लोगों ने खूब कार खरीदी, दोपहिया वाहनों की खूबी बिक्री हुई. कपड़े से लेकर ड्रायफ्रूट तक का बाजार गर्म रहा. 

जानकारों की मानें तो दिवाली के अवसर पर 1 लाख 25 हजार करोड़ का व्यवहार हुआ. बाजार ने 15 टन  सोना खरीद लिया और हीरा उद्योग की तो बल्ले-बल्ले थी. जानकार कह रहे हैं कि हीरा उद्योग के लिए 75 साल में पहली बार व्यापार का इतना सुहाना और शानदार मौसम आया..!

इस दिवाली मुझे एक खास सामाजिक बदलाव नजर आया. लोगों ने उन लोगों की दिवाली बेहतर बनाने की कोशिश की जिनके पास कुछ भी नहीं है. लोगों ने ऐसे लोगों को भोजन दिया, कपड़े दिए, मिठाइयां बांटी. बहुत से लोग उन स्थानों पर गए जहां बेसहारा वृद्ध और अनाथ बच्चे रहते हैं. हमारे समाज की यह परंपरा भी रही है लेकिन कोरोना महामारी से जंग ने रिश्तों की मिठास को बढ़ाया है. 

कमजोरों के प्रति सहयोग की भावना बढ़ाई है. मैंने महसूस किया कि रेहड़ी वालों से इस बार लोगों ने मोलभाव नहीं किया और उन्हें दो पैसे ज्यादा देने की कोशिश की. आपने भी जरूर इस तरह सहयोग के हाथ आगे बढ़ाए होंगे. मुझे यह भी बहुत अच्छा लगा कि पटाखों का कानफोड़ू शोर इस बार ज्यादा सुनाई नहीं पड़ा. कुछ लोगों ने हमेशा की तरह पटाखे फोड़े लेकिन वह भी केवल प्रतीकात्मक ही था. 
ज्यादातर लोगों ने पटाखों से पूरी तरह परहेज किया ताकि पटाखों का जहरीला धुआं लोगों की जान से खिलवाड़ न कर पाए. जाहिर सी बात है कि लोगों ने वातावरण और जलवायु का ध्यान रखा.

और हां, पिछले वर्षो की तरह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर सैनिकों के साथ दिवाली मनाने सीमा पर जा पहुंचे. 2014 से यह सिलसिला जारी है. इस बार वे नौशेरा सेक्टर में थे. हर भारतवासी को इस बात पर गर्व होता है कि उसके प्रधानमंत्री सैनिकों के साथ ही दिवाली मनाते हैं. 

प्रधानमंत्री देश के प्रतिनिधि हैं इसलिए यह मानना चाहिए कि पूरा देश जवानों के साथ दिवाली की खुशियों में शरीक है. हमारे जवान सारी प्राकृतिक आपदा को ङोलते हुए सीमा की रक्षा करते हैं. देश और तिरंगे के सम्मान की रक्षा के लिए वे प्राणों को न्यौछावर कर देने में भी नहीं हिचकते. अपने परिवार से दूर, माता-पिता, बीवी-बच्चों से दूर इन जवानों का वास्तविक रूप से कोई त्यौहारों नहीं होता. दिवाली हो, ईद हो, क्रिसमस हो, बैसाखी हो या होला-मोहल्ला हो, वे सीमा पर डटे रहते हैं. 

ऐसे में पीएम उनके साथ जाकर दिवाली मनाते हैं तो वे सैनिकों और अर्धसैनिक बल के जवानों के भीतर हौसला भरते हैं, ऊर्जा और उमंग भरते हैं. जब वे ओलंपिक में भारत का मान बढ़ाकर लौटे खिलाड़ियों से मिलते हैं तो उसमें भी हौसला अफजाई का भाव होता है. यह भाव होना भी चाहिए. हमारे किसानों और उद्योगों के लिए भी यही भाव जब देश में दिखाई देता है तो खुशी होती है. खिलाड़ी तिरंगे के लिए खेलते हैं. 

किसान पूरे देश को अनाज, फल और सब्जी उपलब्ध कराने के फ्रंट पर लड़ता है. उसके सामने सूखा, बाढ़ और कीटों के हमले प्राकृतिक आपदा ही तो हैं! कभी हम अनाज के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाए खड़े रहते थे, अब हम सीना ताने खड़े हैं. हमारे उद्योग तमाम परेशानियों के बावजूद रोजगार के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं. मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के मोदीजी के नारे को चरितार्थ कर रहे हैं. चौतरफा फ्रंट पर ऊर्जा भरना, नई रौशनी देना आसान काम नहीं है.

मुझे अच्छा लगा कि मोदीजी हिमालय की गोद में देवी-देवताओं के पास हाजिरी लगा रहे हैं और अपनी संस्कृति की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर वेटिकन सिटी में पोप से मोहब्बत के साथ गले मिल रहे हैं. यही तो हमारे देश की तासीर है. हम अपने इसी अंदाज के लिए सर्वधर्म समभाव, एकता में अनेकता और वसुधैव कुटुम्बकम् वाला देश कहलाते हैं. 

अभी लोकमत समूह ने नागपुर में इसीलिए राष्ट्रीय अंतरधर्मीय सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें सभी धर्मो के आध्यात्मिक गुरुओं ने भाग लिया और शांति तथा सद्भाव का संदेश दिया. वास्तव में हमारी खासियत ही यही है कि सब रंग हमारा है. सब धर्म हमारा है. सब हमारे हैं. ये जग हमारा है. यहां रहने वाले सभी लोग हमारे हैं. हम सम्मान देना जानते हैं. हम भारतवासी  खुशियाली फैलाना जानते हैं.

Web Title: Vijay Darda Blog: Diwali amid challenges, India Will Win world with Perseverance

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