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विजय दर्डा का ब्लॉग: लुटेरे अस्पतालों की नकेल कसना बहुत जरूरी

By विजय दर्डा | Updated: May 24, 2021 13:42 IST

कोरोना संकट के भयावह दौर में कई डॉक्टरों, नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ ने दिन-रात ड्यूटी कर मानवता का परिचय दिया है. वहीं, इसी बीच कई अस्पतालों द्वारा मरीजों को लूटने की बात भी सामने आई है.  

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हमारी संस्कृति में डॉक्टर को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है. उनसे सेवा-भाव और मानवता की उम्मीद की जाती है और इस महामारी के दौरान न केवल डॉक्टरों बल्कि नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ ने भी गजब की मानवता का परिचय दिया है. 

मैं ऐसे सैकड़ों डॉक्टरों को जानता हूं, ऐसी नर्सो के बारे में लगातार खबरें पढ़ रहा हूं जिन्होंने पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं लिया है. महीनों से घर नहीं गए हैं. अपने बच्चों से नहीं मिले हैं. दो-दो, तीन-तीन शिफ्टों में काम कर रहे हैं. जो मिला वह खाकर काम चला रहे हैं. लक्ष्य बस इतना है कि किसी तरह मरीज की जान बच जाए. 

ऐसे में जब खबर आती है कि कुछ अस्पताल मरीजों को लूट रहे हैं तो मन अशांत हो जाता है. यह सवाल जेहन को कुरेदने लगता है कि कोई इंसान या कोई संस्थान इतना नीचे कैसे गिर सकता है? ये लोग तो उन डॉक्टरों की सेवा भावना को भी धक्का पहुंचा रहे हैं जिन्होंने इस महामारी में अपनी जान की बाजी लगा दी.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना की दूसरी वेव से जंग लड़ते हुए 400 से ज्यादा डॉक्टरों ने अपनी जान कुर्बान कर दी. यदि पहली वेव का आंकड़ा भी जोड़ लें तो यह संख्या 900 से ज्यादा है. आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि कितनी नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ की जानें गई होंगी. हजारों की संख्या में डॉक्टर, नर्स और चिकित्साकर्मी कोरोना से संक्रमित हुए लेकिन डॉक्टरों ने, नर्सो ने या दूसरे चिकित्साकर्मियों ने बगैर भयभीत हुए मरीजों की सेवा जारी रखी.  

आप थोड़ी देर के लिए पीपीई किट पहन कर देखिए, पसीने से तरबतर हो जाएंगे. अब जरा सोचिए कि ये लोग आठ-दस घंटों तक कैसे पीपीई किट पहनकर काम करते होंगे? खासकर ऐसे माहौल में कि जरा सी चूक हुई और कोरोना ने दबोचा! मैं तहेदिल से ऐसे सेवाभावी डॉक्टरों, नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ को सलाम करता हूं.

ऐसे सभी लोगों के प्रति देश हमेशा ऋणी रहेगा लेकिन जिन लोगों ने इस महामारी को लूट का माध्यम बना लिया है, पैसा कमाने का जरिया मान लिया है उन्हें न लोग माफ करेंगे और न कभी भगवान माफ करेगा. मैंने इसी कॉलम में लिखा भी था कि आप लाख पैसा कमा लें लेकिन कभी ऐसा दिन भी तो आ सकता है जब उसके उपभोग के लिए आप ही न बचें! क्यों यह लूट मचा रहे हैं? 

मैं नागपुर का एक किस्सा बता रहा हूं. एक व्यक्ति शहर के बड़े अस्पताल में कोरोना के उपचार के लिए भर्ती हुआ. अगले चार-पांच दिनों में उसकी स्थिति इतनी सुधर गई कि वह घर जा सकता था लेकिन अस्पताल ने कहा कि पैसा तो पूरे 14 दिन का देना पड़ेगा क्योंकि आप पैकेज के तहत भर्ती हुए थे! महामारी जब उफान पर पहुंच गई तो कुछ अस्पतालों ने पैकेज बना लिए. चूंकि बेड नहीं मिल रहे थे तो लोगों को मुंहमांगी कीमत देनी पड़ी. 

यह हालत केवल नागपुर में नहीं बल्कि देश के हर हिस्से में थी. नोएडा में तो अलग ही कहानी उभर कर सामने आई. कुछ अस्पतालों ने कुछ बेरोजगार युवकों को फर्जी पॉजीटिव रिपोर्ट बनाकर अस्पताल में भर्ती कर लिया ताकि बेड फुल दिखाया जा सके. इसके लिए उन युवाओं को भुगतान भी किया जा रहा था. जब कोई वास्तविक मरीज आता तो उससे मोलभाव करके लाखों रुपए लिए जाते और एक फर्जी मरीज को हटाकर उसकी जगह असली मरीज का उपचार शुरू होता था. 

अधिकारियों ने छापा मारा तब इसका भंडाफोड़ हुआ. लेकिन मुद्दे की बात है कि उस अस्पताल के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई, यह अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. मेरा तो मानना है कि ऐसे अस्पताल संचालकों को तत्काल जेल की कोठरी में डाल देना चाहिए. जब तक सख्त और तत्काल कार्रवाई नहीं होगी तब तक स्वास्थ्य क्षेत्र के ये लुटेरे भयभीत नहीं होंगे.

मौत का मेला लगा हैलुटेरों की किस्मत खुली हैबड़े बेखौफ हैं ये लुटेरेकोई है जो रोके इन्हें?

ऐसा हो ही नहीं सकता कि जो बात आम आदमी को पता है वह सरकार में बैठे लोगों को पता नहीं हो कि किस कदर लूट मची है? कितना फर्जीवाड़ा हो रहा है? सब पता है लेकिन स्वास्थ्य सेवाएं हमारी प्राथमिकता में हैं ही नहीं. 

खैर, अब तक जो हुआ उसे भूल जाइए और नए सिरे से शुरुआत कीजिए. सबसे पहले तो हमें डॉक्टर बनाने की प्रक्रिया को आसान तथा खर्च को न्यूनतम करना होगा. क्यों नहीं हम ज्यादा मेडिकल कॉलेज खोलते हैं और ज्यादा डॉक्टर तैयार करते हैं? आज यदि कोई व्यक्ति करोड़ों खर्च करके डॉक्टर बनता है और करोड़ों खर्च करके अस्पताल खोलता है, मशीनें खरीदता है तो उसके दिमाग में यह बात रहती ही होगी कि खर्च की वसूली कितनी जल्दी हो जाए.  

सवाल यह है कि यदि कोई मशीन महंगी है तो उसे चार डॉक्टर मिलकर क्यों नहीं खरीदते? इससे मरीजों को भी भला होगा. मेरा सवाल है कि यदि कैपिटल इन्वेस्टमेंट 100 करोड़ का है तो क्या एक ही दिन में वसूल लोगे? सरकार को पूरी नीति तैयार करनी होगी. दवाई कंपनियों का ऑडिट भी करना होगा.

इसके अलावा सरकारी और निजी क्षेत्र के सभी अस्पतालों को सभी जरूरी संसाधनों से सुसज्जित करना चाहिए और सबको एक जैसा इलाज मिले यह सुनिश्चित हो, चाहे वह गरीब हो या अमीर हो. 

आप अमीरों से ज्यादा पैसा और गरीबों से कम पैसा ले सकते हैं लेकिन सुविधाएं तो दोनों को एक जैसी ही मिलनी चाहिए. जिस तरह दुनिया के विकसित देशों ने अपने नागरिकों को इंश्योर्ड कर रखा है, वैसी ही व्यवस्था हमें भी करनी चाहिए. वहां विभिन्न  टैक्स के साथ ही बीमा राशि ले लेते हैं ताकि सबका मुफ्त इलाज हो.  

एक बात मैं और कहना चाहता हूं और वह है कोरोना से मौत के आंकड़े की. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी कहा है कि जो आधिकारिक आंकड़े सामने आए हैं, वास्तविक आंकड़ा उससे तीन गुना ज्यादा हो सकता है.

भारत में तो यह बात कई महीनों से कही जा रही है. सरकार जो आंकड़े बताती है उससे ज्यादा लोगों का दाह संस्कार हो रहा है या दफनाए जा रहे हैं. जिन्हें यह भी मयस्सर नहीं, वे नदी में बहाए जा रहे हैं या रेत में दफनाए जा रहे हैं. हर ओर बेहाली का आलम है..! मन्न खिन्न है और भावनाएं सुन्न हैं. उम्मीद करें, हालत जल्दी सुधरे.

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