उपराष्ट्रपति चुनावः खाली मतपत्रों में है संदेश?, खाली दिखने वाले वोट अर्थहीन नहीं हैं, गहरा अर्थ!
By हरीश गुप्ता | Updated: September 17, 2025 05:16 IST2025-09-17T05:16:49+5:302025-09-17T05:16:49+5:30
Vice Presidential Election: एनडीए के सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले उम्मीद से 15 ज्यादा. इंडिया गठबंधन को भारी नुकसान हुआ, अपने दावे के 315 के बजाय वे 300 वोट ही जुटा पाए.

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Vice Presidential Election: उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की जीत में किसी को शंका नहीं थी, लेकिन यह एक रोमांचक चुनाव बन गया. 767 सांसदों ने वोट दिया, जिनमें से 15 मतपत्र रद्द कर दिए गए. लेकिन सनसनी तो उन चार मतपत्रों ने पैदा की, जो पूरी तरह से खाली छोड़ दिए गए थे - कहीं एक भी निशान नहीं. स्याही गायब, लेकिन संदेश जोरदार! आंकड़े अपनी कहानी खुद बयां करते हैं. एनडीए के सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले उम्मीद से 15 ज्यादा. इंडिया गठबंधन को भारी नुकसान हुआ, अपने दावे के 315 के बजाय वे 300 वोट ही जुटा पाए.
हर तरफ उंगलियां उठ रही हैं: लेकिन जब इंडिया गठबंधन जवाब ढूंढने में लगा है, एनडीए के खेमे में बेचैनी बढ़ रही है. चार खाली मतपत्र संयोग कम और जानबूझकर दिए गए संकेत ज्यादा लगते हैं - सांसद सतर्क रहते हुए ‘भविष्य के आकाओं’ के साथ सौदेबाजी का इशारा कर रहे हैं. रहस्य गहराता जा रहा है: ये अदृश्य खिलाड़ी कौन हैं, और ये कल के लिए कौन सा खेल रच रहे हैं?
सोशल मीडिया पर अफवाहों की बाढ़ आ गई थी कि कुछ एनडीए सांसद अपने ही गठबंधन को धोखा देंगे. ऐसा हुआ नहीं. बल्कि, इस विश्वासघात ने एक अलग और ज्यादा सूक्ष्म रूप ले लिया. खाली वोटों ने दोनों खेमों को उलझन में डाल दिया है, और एक ऐसा राजनीतिक रहस्य पैदा कर दिया है जिसको लेकर उत्सुकता थमने का नाम नहीं ले रही. फिलहाल, कोई नाम नहीं बता रहा है. लेकिन दिल्ली के सत्ता के गलियारों में एक बात तो तय है - खाली दिखने वाले वोट अर्थहीन नहीं हैं, उनका गहरा अर्थ है!
जिंदादिल धनखड़ की वापसी, पर सवाल बरकरार
पिछले हफ्ते सीपी राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करते समय जगदीप धनखड़ किसी भी तरह से एकांतप्रिय व्यक्ति नहीं लग रहे थे. खुशमिजाज, मुस्कुराते और ऐसे बातें करते हुए जैसे कुछ हुआ ही न हो, पूर्व उपराष्ट्रपति इस समारोह के सबसे बड़े आकर्षण थे. धनखड़ ने 21 जुलाई को राज्यसभा में पूरा दिन बिताने के बाद इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था.
दक्षिण दिल्ली के एक फार्महाउस में स्थानांतरित होने के बाद, धनखड़ अपनी लय में लौट आए हैं - हास-परिहास, चाय की चुस्कियां. बस एक चीज की कमी है और वह है उनकी खास जबान. इस्तीफे की असली वजह पर धनखड़ चुप हैं. सूत्रों का कहना है कि वे लुटियंस दिल्ली में टाइप 8 बंगले के आवंटन का इंतजार कर रहे हैं. वे खबरों में बने रहेंगे.
आस्तिक बनते वामपंथी, तृणमूल की दुर्गा पूजा
भारतीय राजनीति एक दिव्य मोड़ ले रही है. लंबे समय से नास्तिकता की ध्वजवाहक रही माकपा अब भगवान अयप्पा का आह्वान कर रही है. 20 दिसंबर को, पिनाराई विजयन सरकार सबरीमाला के पास पंबा में वैश्विक अयप्पा समागम का आयोजन करेगी - 2018 के बाद से यह एक नाटकीय यू-टर्न है, जब उसने मंदिर में युवतियों के प्रवेश की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया था,
जिसकी भारी आलोचना हुई थी. चुनावों के नजदीक आते ही, वामपंथी स्पष्ट रूप से जख्मों पर मरहम लगाने और भक्तों को लुभाने के लिए उत्सुक हैं. बंगाल में, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस दुर्गा पूजा पर दोगुना जोर दे रही है. पूजा के आयोजकों के लिए राज्य सहायता बढ़ाकर 1.1 लाख रु. प्रति आयोजन कर दी गई है, यानी इस साल 500 करोड़ रु. खर्च होंगे,
जबकि भाजपा के ‘जय श्री राम’ के नारे को मंद करने के लिए ‘जय मां दुर्गा’ और ‘जय जगन्नाथ’ के नारे लगाए जा रहे हैं. बंगाल के वामपंथी नेता भी दुर्गा पूजा पंडालों में जाने लगे हैं और इस त्यौहार को ‘धर्म नहीं, संस्कृति’ के रूप में पेश कर रहे हैं. केरल से लेकर कोलकाता तक, धर्मनिरपेक्ष दल अब पवित्रता में शरण पा रहे हैं.
75 वर्षीय वाजपेयी बनाम 75 वर्षीय मोदी
भाजपा के सफर में यह एक दुर्लभ संयोग है. पार्टी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में 75 वर्ष के हुए थे और तब वे पद पर थे. उनका जन्मदिन उत्साह के साथ मनाया गया था, लेकिन इसका नेतृत्व मुख्यतः पार्टी के कुछ नेताओं और उनके परिवार ने किया था - रक्तदान शिविरों, मीडिया में श्रद्धांजलि और विशेष लेखों के माध्यम से. अब, जब 17 सितंबर को नरेंद्र मोदी 75 वर्ष के हो रहे हैं,
तो यह पैमाना कहीं अधिक बड़ा है. जब वाजपेयी 75 वर्ष के हुए, तो उन्होंने अपनी प्रसिद्ध टिप्पणी : ‘मैं न टायर्ड हूं और न रिटायर्ड हूं’ से पद छोड़ने की अटकलों को शांत किया था. हालांकि मोदी को कभी ऐसी दुविधा का सामना नहीं करना पड़ा. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इस बहस को पहले ही रोक दिया, और यह सवाल उठने से बहुत पहले ही दिल्ली में इसे स्पष्ट कर दिया था.



