वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः विपश्यना का होता है चमत्कारी प्रभाव
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 25, 2021 10:51 AM2021-10-25T10:51:36+5:302021-10-25T10:58:55+5:30
सूरत तो हम देखते हैं लेकिन सूरत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है- सीरत यानी स्वभाव! अपने स्वभाव को देखने की कला है-विपश्यना। यह कला गौतम बुद्ध ने दुनिया को सिखाई है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पटना में कहा कि लोग यदि विपस्सना करें तो उनकी कार्यक्षमता और प्रेम में वृद्धि होगी। राजनेताओं के मुख से ऐसे मुद्दों पर शायद ही कभी कुछ बोल निकलते हैं। रामनाथ कोविंद मेरे पुराने मित्न हैं। उनकी सादगी, विनम्रता और सज्जनता मुझे हमेशा प्रभावित करती रही थी। उसका रहस्य अब उन्होंने सबके सामने उजागर कर दिया है। वह है-विपस्सना, जिसका मूल संस्कृत नाम है- विपश्यना यानी विशेष तरीके से देखना। किसको देखना? खुद को देखना! दूसरों को तो हम देखते ही रहते हैं लेकिन खुद को कभी नहीं देखते। हां, कांच के आईने में अपनी सूरत जरूर रोज देख लेते हैं।
सूरत तो हम देखते हैं लेकिन सूरत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है- सीरत यानी स्वभाव! अपने स्वभाव को देखने की कला है-विपश्यना। यह कला गौतम बुद्ध ने दुनिया को सिखाई है। बुद्ध के पहले भी ध्यान की कई विधियां भारत में प्रचलित थीं। उनमें से कई विधियों का अभ्यास बचपन में मैं किया करता था लेकिन आचार्य सत्यनारायण गोयनका ने यह चमत्कारी विधि मुझे सिखाई लगभग 21 साल पहले। गोयनकाजी मुझे अपने साथ नेपाल ले गए और बोले, ‘आपको अब दस दिन मेरी कैद में रहना पड़ेगा’। उनके काठमांडू आश्रम में दर्जनों देशों के सैकड़ों लोग विपस्सना सीखने आए हुए थे। मैंने उन दस दिनों में मौन रख, एक समय भोजन किया और लगभग दस-दस घंटे रोज विपस्सना की। जब मैं दिल्ली लौटा तो मेरी पत्नी डॉ। वेदवती ने कहा कि आप बिल्कुल बदले हुए इंसान लग रहे हैं। यही बात उस आश्रम में मुङो लेने आए मेरे मित्न और नेपाल के विदेश मंत्नी चक्रबास्तोला ने कही। तीसरे दिन जब प्रधानमंत्नी गिरिजाप्रसाद कोइराला से भेंट हुई तो उन्होंने बताया कि खुद नेपाल नरेश वीरेंद्र विक्रम शाह उस आश्रम में गए थे और वे स्वयं भी वहां रहना चाहते थे तो उन्होंने वही कमरा खुलवाकर देखा, जिसमें मैं दस दिन रहा था।
राजा और रंक, कोई भी हो, विपश्यना मनुष्य को उच्चतर मनुष्य बना देती है। ऐसा क्या है, उसमें? वह सबसे सरल साधना है। आपको कुछ नहीं करना है। बस, आंख बंद करके अपने नथुनों को देखते रहिए। अपनी आने और जानेवाली सांस को महसूस करते रहिए। आपके चेतन और अवचेतन मन की सारी गांठें अपने आप खुलती चली जाएंगी। आप भारहीन हो जाएंगे। आपका मन आजाद हो जाएगा। आपको लगेगा कि आप सदेह मोक्ष को प्राप्त हो
गए हैं।