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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नए संसद भवन निर्माण की दूर होंगी आपत्तियां!

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 10, 2020 10:39 IST

नए संसद भवन के निर्माण को लेकर भूमिपूजन भले ही होने जा रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इसके निर्माण पर रोक लगा दी है. ऐसे में आगे इस विषय में बात कहां तक जाती है, ये देखना होगा.

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ठळक मुद्देप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 दिसंबर को नए संसद भवन के लिए कर रहे हैं भूमिपूजनसुप्रीम कोर्ट ने हालांकि फिलहाल भवन के निर्माण पर लगा दी है रोकनए संसद भवन के निर्माण खिलाफ सुप्रीम कोर्ट सहित कई अदालतों में दायर हुई हैं याचिकाएं

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के सिर पर एक चपत लगा दी है. उसने नए संसद भवन के निर्माण पर फिलहाल रोक लगा दी है. 10 दिसंबर को उसके लिए आयोजित भूमिपूजन को उसने नहीं रोका है लेकिन नए संसद भवन के निर्माण के लिए कई भवनों को गिराने, पेड़ों को हटाने और सारे क्षेत्रीय नक्शे को बदलने पर रोक लगा दी है.

10 दिसंबर को इस महत्वाकांक्षी योजना को अमल में लाने के लिए प्रधानमंत्री भूमिपूजन कर रहे हैं. इस पूरे निर्माण-कार्य पर लगभग 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे और इसे अगले दो साल में पूरा करने का विचार है. 

नए संसद भवन के दोनों सदनों में लगभग 1500 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी. अभी इस क्षेत्र में 39 मंत्रालय सिर्फ 17 भवनों में चल रहे हैं. नए निर्माण-कार्य में ऐसे दस विशाल भवन बनाए जाएंगे, जिनमें 51 मंत्रालय एक साथ चल सकेंगे. अभी सरकार को किराए के कुछ भवन लेने पड़ते हैं. 

उन पर एक हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च होता है. अंग्रेजों के बनाए ये सभी भवन अब 100 बरस पुराने पड़ गए हैं. नए भव्य भवनों को बनाने का संकल्प मोदी सरकार ने सभी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लिया है लेकिन इस संकल्प के खिलाफ लगभग 1200 आपत्तियां उठाई गई हैं. 

सर्वोच्च न्यायालय सहित कई अदालतों में विभिन्न लोगों ने याचिकाएं दायर की हैं. उनमें कई आरोप हैं, जैसे पेड़ गिराने की अनुमति पर्यावरण नियमों के विरुद्ध दी गई है और जमीन के इस्तेमाल की इजाजत गलत तरीके से ली गई है. सरकार ने यह इजाजत देने में अपने ही कई नियमों का उल्लंघन किया है. 

सर्वोच्च न्यायालय इस बात पर नाराज हुआ कि उसने सरकार से इन सब आपत्तियों पर सफाई मांगी लेकिन वह दिए बिना उसने 10 दिसंबर को भूमिपूजन की घोषणा कर दी.  

अदालत के वर्तमान रवैये से यह शंका पैदा होती है कि शायद इसकी अनुमति न मिले. अभी तो उसका तेवर यही है लेकिन सामान्य-बोध कहता है कि सरकार के इस संकल्प पर अदालत का फैसला आखिरकार भारी नहीं पड़ेगा.

टॅग्स :संसदसुप्रीम कोर्टनरेंद्र मोदी
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