वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजद्रोह का आरोप बहुत सोच-समझ कर लगाएं

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 5, 2021 10:00 IST2021-03-05T10:00:15+5:302021-03-05T10:00:15+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला के मामले में अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने साफ किया कि सरकार के खिलाफ बोलना राजद्रोह नहीं हो जाता है.

Vedapratap Vedic blog: Supreme Court Judgement on Farooq Abdullah sedition case | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजद्रोह का आरोप बहुत सोच-समझ कर लगाएं

फारूक अब्दुल्ला मामले में सुप्रीम कोर्टा का फैसला (फाइल फोटो)

Highlights सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया- सरकार के विरुद्ध बोलने को राजद्रोह की संज्ञा देना अनुचित 'फारूक अब्दुल्ला पर राजद्रोह का आरोप लगाना और उन्हें संसद से निकालने की मांग बचकाना'

सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. फारूक अब्दुल्ला के मामले में जो फैसला दिया है, वह देश में बोलने की आजादी को बुलंद करेगा. यदि किसी व्यक्ति को किसी नेता या साधारण आदमी की किसी बात पर आपत्ति हो तो वह दंड संहिता की धारा 124ए का सहारा लेकर उस पर राजद्रोह का मुकदमा चला सकता है. 

ऐसा ही मुकदमा फारूक अब्दुल्ला पर दो लोगों ने चला दिया. उनके वकील ने फारूक पर आरोप लगाया कि उन्होंने धारा 370 को वापस लाने के लिए चीन और पाकिस्तान की मदद लेने की बात कही है और भारतीय नेताओं को ललकारा है कि क्या कश्मीर तुम्हारे बाप का है? 

याचिकाकर्ताओं का वकील अदालत के सामने फारूक के बयान को ज्यों-का-त्यों पेश नहीं कर सका लेकिन उसने अपने तर्क का आधार बनाया एक भाजपा-प्रवक्ता के टीवी पर दिए गए बयान को. फारूक अब्दुल्ला ने धारा 370 को हटाने का कड़ा विरोध जरूर किया था लेकिन उन्होंने और उनकी पार्टी ने उन पर लगे आरोप को निराधार बताया. 

अदालत ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति सरकार के विरुद्ध कुछ बोलता है तो उसे राजद्रोह की संज्ञा देना अनुचित है.

इसी तरह के मामलों में कंगना रणावत और दिशा रवि को भी फंसा दिया गया था. यह ठीक है कि आप फारूक अब्दुल्ला, राहुल गांधी या दिशा रवि जैसे लोगों के कथनों से बिल्कुल असहमत हों और वे सचमुच आक्रमक और निराधार भी हों तो भी उन्हें आप राजद्रोह की संज्ञा कैसे दे सकते हैं? 

जहां तक फारूक अब्दुल्ला का सवाल है, उनकी भारत-भक्ति पर संदेह करना बिल्कुल अनुचित है. वे बहुत भावुक व्यक्ति हैं. मैं उनके पिता शेख अब्दुल्ला को भी जानता रहा हूं और उनको भी. देश में कई मुसलमान कवि रामभक्त और कृष्णभक्त हुए हैं लेकिन आपने क्या कभी किसी मुसलमान नेता को रामभजन गाते हुए सुना है? 

ऐसे फारूक अब्दुल्ला पर राजद्रोह का आरोप लगाना और उन्हें संसद से निकालने की मांग करना बचकाना गुस्सा ही माना जाएगा. अब जरूरी यह है कि दंड संहिता की धारा 124ए का दुरुपयोग तत्काल बंद हो. 

1974 के पहले इस अपराध को सिर्फ नॉन—काग्जिनेबल माना जाता था यानी सिर्फ सरकार ही मुकदमा चला सकती थी, वह भी खोजबीन और प्रमाण जुटाने के बाद और हिंसा होने की आशंका हो तभी. यह संशोधन अब जरूरी है. 

फारूक अब्दुल्ला पर यह मुकदमा दो लोगों ने चलाया है. ऐसे फर्जी मामलों में 2019 में 96 लोग गिरफ्तार हुए लेकिन उनमें से सिर्फ 2 लोगों को सजा हुई. इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने इन दो मुकदमाबाजों पर 50 हजार रु. का जुर्माना ठोंक दिया है.

Web Title: Vedapratap Vedic blog: Supreme Court Judgement on Farooq Abdullah sedition case

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