वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंदी को जबरदस्ती नहीं प्रेम से आगे बढ़ाएं

By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 24, 2020 12:29 AM2020-08-24T00:29:05+5:302020-08-24T00:29:05+5:30

महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के प्रणोता थे लेकिन गांधीजी और लोहियाजी क्रमश: ‘यंग इंडिया’ और ‘मैनकाइंड’ पत्रिका अंग्रेजी में निकालते थे. उनके बाद इस आंदोलन को देश में मैंने चलाया लेकिन मैं जवाहरलाल नेहरू विवि और दिल्ली में विवि में जब व्याख्यान देता था तो मेरे कई विदेशी और तमिल छात्नों के लिए मुङो अंग्रेजी ही नहीं, रूसी और फारसी भाषा में भी बोलना पड़ता था.

Vedapratap Vedic blog over tamilnadu hindi case: Forcibly pursue Hindi with love | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंदी को जबरदस्ती नहीं प्रेम से आगे बढ़ाएं

तमिलनाडु में हिंदी-विरोधी आंदोलन इतने लंबे अर्से से चला आ रहा है कि तमिल लोग दूसरे प्रांतों के लोगों के मुकाबले हिंदी कम समझते हैं.

आयुष मंत्नालय के सचिव राजेश कोटेचा ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है. द्रमुक की नेता कनिमोझी ने मांग की है कि सरकार उन्हें तुरंत निलंबित करे, क्योंकि उन्होंने कहा था कि जो उनका भाषण हिंदी में नहीं सुनना चाहे, वह बाहर चला जाए. वे देश के आयुर्वेदिक वैद्यों और प्राकृतिक चिकित्सकों को संबोधित कर रहे थे. इस सरकारी कार्यक्र म में विभिन्न राज्यों के 300 लोग भाग ले रहे थे. उनमें 40 तमिलनाडु से थे. तमिलनाडु में हिंदी-विरोधी आंदोलन इतने लंबे अर्से से चला आ रहा है कि तमिल लोग दूसरे प्रांतों के लोगों के मुकाबले हिंदी कम समझते हैं.

ऐसे में क्या करना चाहिए? कोटेचा को चाहिए था कि वे वहां किसी अनुवादक को अपने पास बिठा लेते. वह तमिल में अनुवाद करता चलता, जैसा कि संसद में होता है. दूसरा रास्ता यह था कि वे संक्षेप में अपनी बात अंग्रेजी में भी कह देते. लेकिन उनका यह कहना कि जो उनका हिंदी भाषण नहीं सुनना चाहे, वह बाहर चला जाए, उचित नहीं है. यह सरकारी नीति के तो विरुद्ध है ही, मानवीय दृष्टि से भी यह ठीक नहीं है.

महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के प्रणोता थे लेकिन गांधीजी और लोहियाजी क्रमश: ‘यंग इंडिया’ और ‘मैनकाइंड’ पत्रिका अंग्रेजी में निकालते थे. उनके बाद इस आंदोलन को देश में मैंने चलाया लेकिन मैं जवाहरलाल नेहरू विवि और दिल्ली में विवि में जब व्याख्यान देता था तो मेरे कई विदेशी और तमिल छात्नों के लिए मुङो अंग्रेजी ही नहीं, रूसी और फारसी भाषा में भी बोलना पड़ता था. हमें अंग्रेजी भाषा का नहीं, उसके वर्चस्व का विरोध करना है.

राजेश कोटेचा का हिंदी में बोलना इसलिए ठीक मालूम पड़ता है कि देश के ज्यादातर वैद्य हिंदी और संस्कृत भाषा समझते हैं. लेकिन तमिलभाषियों के प्रति उनका रवैया थोड़ा व्यावहारिक होता तो बेहतर रहता. उनका यह कहना भी सही हो सकता है कि कुछ हुड़दंगियों ने फिजूल ही माहौल बिगाड़ने का काम किया लेकिन सरकारी अफसरों से यह उम्मीद की जाती है कि वे अपनी मर्यादा का ध्यान रखें.

यों भी कनिमोझी और तमिल वैद्यों को यह तो पता होगा कि कोटेचा हिंदीभाषी नहीं हैं. उन्हीं की तरह वे अहिंदीभाषी गुजराती हैं. उनको निलंबित करने की मांग बिल्कुल बेतुकी है. यदि उनकी इस मांग को मान लिया जाए तो देश में पता नहीं किस-किस को निलंबित होना पड़ेगा. कोटेचा ने कहा था कि मैं अंग्रेजी बढ़िया नहीं बोल पाता हूं, इसलिए मैं हिंदी में बोलूंगा. कनिमोझी जैसी महिला नेताओं को चाहिए कि वे तमिल को जरूर आगे बढ़ाएं लेकिन अंग्रेजी के मायामोह से मुक्त हो जाएं.
 

Web Title: Vedapratap Vedic blog over tamilnadu hindi case: Forcibly pursue Hindi with love

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