वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कश्मीर में अब आगे क्या करें
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 12, 2019 10:54 AM2019-08-12T10:54:36+5:302019-08-12T10:54:36+5:30
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के भाषण में कश्मीरियों के फायदे के जो मुद्दे उठाए गए हैं, वे अच्छे हैं लेकिन उनका उतना असर नहीं होगा, जितना कश्मीरी जनता पर उसके नेताओं के भाषणों, मंत्नणाओं, इशारों और उनकी अपनी सोच का होगा.
कश्मीर के सवाल पर भारत को रोज ही किसी न किसी राष्ट्र का समर्थन मिलता जा रहा है. अब तो रूस ने भी कह दिया है कि यह भारत का आंतरिक मामला है. पाकिस्तान का एक भी राष्ट्र ने खुलकर समर्थन नहीं किया है. तालिबान ने भी नहीं. अब पाकिस्तान के लिए सिर्फ एक ही उम्मीद बची है. और वह यह है कि कश्मीर में खून की नदियां बह जाएं और उसे सारी दुनिया में शोर मचाने का अवसर मिल जाए.
पहली बात तो यह कि ऐसा ही होगा, यह जरूरी नहीं है और ऐसा होने की आशंका हुई तो फिर इतनी फौज और पुलिस वहां क्या करेगी? उसका काम हिंसा करना या प्रतिहिंसा करना नहीं है लेकिन हिंसा को रोकना है. वह रोकेगी लेकिन हिंसा को रोकना ही काफी नहीं है.
पुलिस और फौज जमीन पर होनेवाली हिंसा को रोक सकती है लेकिन दिमाग के अंदर पलनेवाली हिंसा को रोकना उसके बूते के बाहर की चीज है. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के भाषण में कश्मीरियों के फायदे के जो मुद्दे उठाए गए हैं, वे अच्छे हैं लेकिन उनका उतना असर नहीं होगा, जितना कश्मीरी जनता पर उसके नेताओं के भाषणों, मंत्नणाओं, इशारों और उनकी अपनी सोच का होगा.
इसीलिए जरूरी है कि सरकारी नेताओं और कश्मीरी नेताओं के बीच हार्दिक संवाद हो. वे आगे की राह बताएं. पांच अगस्त को जो हो गया, वह वापस तो किसी हालत में नहीं हो सकता लेकिन संसद उसमें बहुत कुछ सुधार भी कर सकती है. वह पत्थर की लकीर नहीं है. हमारे विपक्षी नेता इस भ्रम में नहीं रहें कि वे कश्मीर के चूल्हे पर अपनी रोटियां सेंक पाएंगे. कांग्रेस अपने किए पर कितना पछता रही है.
उससे जरा सीखें. यह भी देखें कि भारत के कदम का विरोध करने के लिए पाकिस्तान के सारे सत्तारूढ़ और विरोधी दल एक हो गए हैं और भारत के दल एक-दूसरे पर आक्षेप कर रहे हैं. अजित डोभाल जैसे अफसरों पर हमें गर्व है लेकिन उनकी अपनी सीमाएं हैं. सरकार ने कश्मीर में अत्यंत गंभीर कदम तो उठा लिया है लेकिन आगे आनेवाले तूफान के मुकाबले की पता नहीं कितनी तैयारी है?