मध्य प्रदेश की सरकार एक ऐसा काम कर रही है, जिसका अनुकरण देश की सभी सरकारों को करना चाहिए और केंद्रीय सरकार को इस मामले में विशेष पहल करनी चाहिए. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्नी कमलनाथ की कांग्रेस सरकार ने मिलावटखोरों की ऐसी-तैसी कर दी है.
पिछले डेढ़-दो हफ्तों से उसने विभिन्न शहरों, कस्बों और गांवों में छापे मारे हैं और दूध में मिलावट करने वाले दो व्यापारियों को पकड़ा है. इन लोगों के कारखाने में कास्टिक सोडा, यूरिया आदि कई घातक पदार्थो की बोरियां पकड़ी गई हैं. इनके दूध की जांच करने पर पता चला है कि उसमें घातक बीमारियां पैदा करनेवाले रसायन मिले हुए हैं. ऊपर से देखने पर जो बिल्कुल दूध-जैसा ही लगता है, वह तरल पदार्थ धीमे जहर से कम नहीं है.
अभी तक ऐसे प्रच्छन्न हत्यारों के लिए जो सजा का कानून है, वह भी शुद्ध मजाक है. सिर्फ 3 माह की सजा और 10 हजार रु. जुर्माना! जो हजारों रुपए रोज कमाता है, उसे सरकारी खर्च पर तीन माह की मौज कराने वाले कानून को एकदम कूड़े की टोकरी के हवाले किया जाना चाहिए.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्नी कमलनाथ और लोक-स्वास्थ्य मंत्नी तुलसी सिलावट को बधाई कि उन्होंने इन मिलावट के आरोपियों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया है. जाहिर है कि अब ये अपना जहरीला कारोबार बंद कर देंगे लेकिन यह गिरफ्तारी देश भर के उन हजारों मिलावटखोरों पर तभी असर करेगी जबकि इनमें से गंभीर अपराधियों को उम्र-कैद और मौत की सजा तक दी जाए और उनकी चल-अचल संपत्ति जब्त की जाए. इनकी न्यूनतम सजा 10 साल और हर्जाना 10 लाख रु. किया जाए. इस सजा का प्रचार भी जबर्दस्त होना चाहिए और सजा-ए-मौत जेल के अंदर नहीं, बल्कि शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर दी जानी चाहिए.
मिलावटखोर साधारण हत्यारा नहीं होता, वह सामूहिक हत्यारा होता है. मप्र ने बच्चों के साथ बलात्कार करनेवालों के लिए मौत की सजा का कानून बना दिया है तो वह इन सामूहिक हत्यारों के लिए सख्त कानून बनाकर सारे देश का मार्गदर्शन क्यों नहीं करता?