वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अन्नदाता किसान की सुध कब लेंगे?
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 1, 2018 03:50 IST2018-12-01T03:50:06+5:302018-12-01T03:50:06+5:30
भारत जैसे देश में किसानों की दुर्दशा का मूल कारण यह है कि सत्ता के गलियारों में उनकी आवाज को गुंजानेवाला कोई नहीं है. वे गरीब हैं, ग्रामीण हैं, अल्प-शिक्षित हैं, प्राय: छोटी जातियों के हैं. उनका कोई ऐसा अखिल भारतीय संगठन नहीं है.

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अन्नदाता किसान की सुध कब लेंगे?
मुंबई के बाद अब दिल्ली में किसानों का जोरदार प्रदर्शन हो रहा है. इस बार सारे भारत से 200 किसान संगठन एक साथ दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी मांगें गुंजा रहे हैं. जब चौधरी चरण सिंह सत्ता में थे तो लग रहा था कि देश के इन अन्नदाताओं की सुध लेने वाला आ गया है लेकिन उनकी सत्ता इतने कम दिन चली कि उस दौरान कुछ ठोस नहीं हो सका. चौधरी देवीलाल उप-प्रधानमंत्नी पद तक भी पहुंचे लेकिन उस समय भी सत्ता की उठापटक ने ऐसी शक्ल अख्तियार की कि ये किसान नेता भी देश के करोड़ों किसानों के दुख दूर नहीं कर सके.
भारत जैसे देश में किसानों की दुर्दशा का मूल कारण यह है कि सत्ता के गलियारों में उनकी आवाज को गुंजानेवाला कोई नहीं है. वे गरीब हैं, ग्रामीण हैं, अल्प-शिक्षित हैं, प्राय: छोटी जातियों के हैं. उनका कोई ऐसा अखिल भारतीय संगठन नहीं है. किसानों के जो बेटे संसद में पहुंचते हैं, वे शहरी हवा के दीवाने बन जाते हैं. उनमें इतना दम नहीं होता कि वे अपनी पार्टियों के नेताओं पर दबाव डालें और उनसे किसानों की दशा सुधारने को कहें. यों देखा जाए तो आज भी देश में किसान समुदाय किसी भी समुदाय से बड़ा है लेकिन देश का पेट भरने वाला अन्नदाता किसान खुद भूखा मरता है.
लाखों किसान आत्महत्या के लिए मजबूर होते हैं. अपना इलाज करवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते हैं. दवा के अभाव में वे दम तोड़ देते हैं. उनके बच्चों की शिक्षा की कोई ठीक-ठाक व्यवस्था नहीं होती. वे गांव और खेती छोड़कर शहरों की तरफ दौड़ लगाते हैं और झोपड़पट्टियों में रहकर पशुओं की जिंदगी बिताते हैं. यदि उन्हें आप वापस गांवों की तरफ लौटाना चाहते हो तो फसलों के दाम बढ़ाइए. लागत मूल्य से कम से कम डेढ़ गुना दाम दिलवाइए. उन्हें बीज, सिंचाई और खाद की सुविधाएं उपलब्ध करवाइए. उन्हें शिक्षा और चिकित्सा सुलभ करवाइए.