वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अदालत को फिर आगे आना पड़ा
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 5, 2019 05:41 IST2019-02-05T05:41:15+5:302019-02-05T05:41:15+5:30
शिवकुमार त्रिपाठी नामक एक प्रबुद्ध नागरिक की याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने उ.प्र. के मुख्य सचिव को कठघरे में खड़ा किया है.

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अदालत को फिर आगे आना पड़ा
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की एक खबर ने आज मुङो बहुत खुश कर दिया है. खबर यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अनूपचंद्र पांडेय को अदालत की अवमानना करने का नोटिस भेजा है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत की अवमानना कैसे की है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अगस्त 2015 को एक आदेश जारी किया था, जिसके मुताबिक प्रदेश के सभी चुने हुए जन-प्रतिनिधियों, सरकारी कर्मचारियों और न्यायपालिका के सदस्यों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में ही पढ़ना पड़ेगा. अदालत ने यह भी कहा था कि इस नियम का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया जाए. सरकार से वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को यदि किसी निजी स्कूल में पढ़ाता है तो वहां भरी जाने वाली फीस के बराबर राशि वह सरकारी खजाने में जमा करवाएगा और उसकी वेतन-वृद्धि तथा पदोन्नति भी रोकी जा सकती है.
इस आदेश का पालन करने के लिए अदालत ने छह माह का समय दिया था लेकिन साढ़े तीन साल निकल गए. न तो अखिलेश यादव और न ही योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कोई कदम उठाया. अब शिवकुमार त्रिपाठी नामक एक प्रबुद्ध नागरिक की याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने उ.प्र. के मुख्य सचिव को कठघरे में खड़ा किया है.
आप पूछ सकते हैं कि इस फैसले से मैं इतना खुश क्यों हूं? क्योंकि यह सुझाव 2015 में मैंने अपने एक लेख में दिया था. उसमें मैंने सरकारी लोगों के इलाज के मामले में भी यही नियम लागू करने की बात कही थी. मैं हमेशा कहता हूं कि विचार की शक्ति परमाणु बम से भी ज्यादा होती है. यदि शिक्षा और स्वास्थ्य के मामलों में इस विचार को सरकारें लागू कर दें तो भारत के स्कूलों और अस्पतालों की हालत रातोंरात सुधर सकती है. शिक्षा से मन प्रबल होता है और स्वास्थ्य-रक्षा से तन सबल होता है. ऐसे प्रबल और सबल राष्ट्र को विश्व की महाशक्ति बनने से कौन रोक सकता है?