वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: तो, ऐसा है अपना लोकतंत्र
By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 26, 2019 07:22 AM2019-04-26T07:22:20+5:302019-04-26T07:22:20+5:30
वर्तमान भाजपा सरकार को सिर्फ पड़े हुए वोटों का 31 प्रतिशत मिला था.
हम भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्न मानते हैं. मतदाताओं की संख्या के हिसाब से देखें तो यह बात ठीक है. और यह इस दृष्टि से भी ठीक है कि पिछले 72 साल से यह जस का तस चला आ रहा है. अन्य पड़ोसी देशों या कुछ अफ्रीकी देशों की तरह यहां कभी फौजी तख्ता-पलट नहीं हुआ. चुनाव बराबर होते रहे और राज-मुकुट शांतिपूर्वक एक सिर से दूसरे सिर पर सजते रहे. इतने लंबे-चौड़े और इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश में चुनाव करवाना किसी चमत्कार से कम नहीं है लेकिन यह चमत्कार इस देश में लगातार होता रहा है. तो भी क्या हम अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा या सबसे महान लोकतंत्न कह सकते हैं?
यह कहने के लिए हमें बहुत लंबा सफर तय करना पड़ेगा. देश के 60-70 या 80-90 करोड़ लोग जो वोट डालने जाते हैं, वे किस आधार पर अपना वोट डालते हैं? क्या उनका फैसला उस उम्मीदवार या उस पार्टी के गुण-दोष पर होता है? हां, कभी- कभी होता है लेकिन ज्यादातर उसका आधार जाति, संप्रदाय, मजहब, रिश्वत, शराब या लालच होता है. चुनाव-अभियान के नायकों को क्या हम कभी नीतियों, सिद्धांतों, सर्वहितकारी मुद्दों पर गंभीर चर्चा चलाते हुए देखते हैं? वे एक-दूसरे पर निरंकुश शब्दों में बेलगाम आरोप लगाते रहते हैं. राष्ट्रीय चुनावों का स्वरूप कभी-कभी मयखानों के दंगल-सा हो जाता है. यह तो दिखाई पड़ता है लेकिन हमारे लोकतंत्न के खोखलेपन को उजागर करनेवाले कई तथ्य बिल्कुल अदृश्य हैं.
पहला, भारत में आज तक एक भी संसद ऐसी नहीं चुनी गई, जिसके जीते हुए सदस्यों को 51 प्रतिशत वोट मिले हों. दूसरा, आज तक एक भी सरकार ऐसी नहीं बनी है, जिसे कुल वोटरों के 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हों. वर्तमान भाजपा सरकार को सिर्फ पड़े हुए वोटों का 31 प्रतिशत मिला था. तीसरा, आज तक भारत में नरसिम्हा राव के अलावा, एक भी प्रधानमंत्नी ऐसा नहीं हुआ, जो अपने चुनाव-क्षेत्न के कुल वोटरों के 50 प्रतिशत वोट से जीता हो. तो ऐसा है, अपना लोकतंत्न! इसे सुधारने के लिए क्या-क्या किया जाए, वह
फिर कभी!