ऐसे नराधमों को फांसी दी जाए
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 4, 2018 04:44 PM2018-08-04T16:44:26+5:302018-08-04T16:44:26+5:30
राजनीतिक स्तर पर एक अजीब-सी चुप्पी छाई हुई है। यह चुप्पी ऐसा संदेश दे रही है मानो यह कोई ध्यान देने लायक घटना ही नहीं है। नेताओं को फुर्सत कहां है? वे अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं।
वेदप्रताप वैदिक
बिहार के मुजफ्फरपुर में एक अनाथालय की बच्चियों के साथ जो बलात्कार की घटनाएं हुई हैं, वे रोंगटे खड़े कर देती हैं। उन घटनाओं का जैसा ब्यौरा अखबारों और टीवी चैनलों पर आ रहा है, उसे पढ़-देखकर हर भारतीय का माथा शर्म से झुका जा रहा है। लेकिन राजनीतिक स्तर पर एक अजीब-सी चुप्पी छाई हुई है। यह चुप्पी ऐसा संदेश दे रही है मानो यह कोई ध्यान देने लायक घटना ही नहीं है। नेताओं को फुर्सत कहां है? वे अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं।
यह अनाथालय या आश्रय-स्थल सरकारी वित्त-पोषित है और वहां की 42 में से 34 बच्चियों ने रो-रोकर यह रहस्य खोला है कि उस आश्रय-स्थल का संचालक उन पर कैसे-कैसे अत्याचार करता था। जिस लड़की ने भी उसके बलात्कार या व्यभिचार का विरोध किया, उसे भूखों मार दिया जाता था, नशे की दवाई खिलाकर बेहोश कर दिया जाता था और एक-दो लड़कियों की तो हत्या करके उन्हें गुपचुप जमीन में गाड़ दिया गया था।
इस आश्रय-स्थल के इस कुकर्म का पता तब चला, जब मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की आडिट रिपोर्ट में इस यौन-शोषण का विवरण छपा और उसे बिहार के समाज कल्याण मंत्नालय को सौंपा गया। यहां प्रश्न यही उठता है कि मुजफ्फरपुर के पत्नकार क्या करते रहे? बिहार के पत्नकारों के लिए क्या यह कांड एक शर्मनाक चुनौती सिद्ध नहीं हुआ? इस संस्था का संचालक ब्रजेश ठाकुर काफी पैसे और रसूखवाला आदमी है। क्या उसने सारे नेताओं और पत्नकारों को अपनी जेब में डाल रखा है? यह अच्छा हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस कांड पर ध्यान दिया है। यदि वह मुख्य अपराधी और उसके साथियों को अगस्त माह के अंत तक पटना के गांधी मैदान में फांसी पर लटका दे तो देश में ऐसी हरकत कोई दुबारा करने की हिम्मत नहीं करेगा।
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