वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: दिल्ली से सीखें राज्य सरकारें
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 3, 2019 11:36 AM2019-08-03T11:36:03+5:302019-08-03T11:36:03+5:30
यदि किसी घर में 201 यूनिट से 400 यूनिट तक बिजली खर्च होती है तो उसे आधा बिल ही चुकाना होगा. इस नई रियायत का सीधा फायदा दिल्ली के लगभग 60 लाख उपभोक्ताओं को मिलेगा. प्रत्येक घर और दुकान को 600 रु. से 1000 रु. तक हर महीने बचत होगी.
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ऐसा ऐतिहासिक काम कर दिखाया है, जिसका अनुकरण भारत की सभी प्रांतीय सरकारों को तो करना ही चाहिए, हमारे पड़ोसी देशों की सरकारें भी उससे प्रेरणा ले सकती हैं. ‘आप’ की इस सरकार ने दिल्लीवासियों के लिए 200 यूनिट प्रति माह की बिजली का बिल माफ कर दिया है.
यदि किसी घर में 201 यूनिट से 400 यूनिट तक बिजली खर्च होती है तो उसे आधा बिल ही चुकाना होगा. इस नई रियायत का सीधा फायदा दिल्ली के लगभग 60 लाख उपभोक्ताओं को मिलेगा. प्रत्येक घर और दुकान को 600 रु. से 1000 रु. तक हर महीने बचत होगी. इतना ही नहीं, दिल्ली प्रदेश की बिजली की खपत भी घट जाएगी क्योंकि हर आदमी कोशिश करेगा कि वह 200 के बाद एक यूनिट भी न बढ़ने दे. जो 400 यूनिट बिजली जलाएंगे, वे भी अपनी खपत पर सख्त निगरानी रखेंगे ताकि उन्हें आधे पैसों से ज्यादा न देने पड़ें.
दिल्ली के विपक्षी दलों, भाजपा और कांग्रेस का इससे नाराज होना स्वाभाविक है. लेकिन उनके इस आरोप में कोई दम नहीं है कि केजरीवाल सरकार लोगों में मुफ्तखोरी की आदत डाल रही है. क्या उनके मंत्रियों, विधायकों और सांसदों ने उन्हें मुफ्त मिलने वाली बिजली का कभी बहिष्कार किया है? उनका यह कहना सही हो सकता है कि यह अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया का चुनावी पैंतरा है. अगर ऐसा है तो भी इसमें गलत क्या है?
इन दोनों बड़ी पार्टियों के पास केंद्र और राज्यों की कई सरकारें हैं. इन्होंने भी ऐसा पैंतरा क्यों नहीं मार लिया? सभी पार्टियां चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के पैंतरे मारती हैं. अब यह आरोप लगाने का कोई तुक नहीं है कि दिल्ली की आप सरकार ने पहले बिजली के दामों में फेरबदल कर 850 करोड़ रु. लूट लिए और अब वह वही पैसा बांटकर जनता को बेवकूफ बना रही है.
लोकतांत्रिक सरकारें दावा करती हैं कि वे लोककल्याणकारी होती हैं. तो क्या यह उनका न्यूनतम कर्तव्य नहीं है कि वे जनता को हवा, दवा, पानी और बिजली आसान से आसान कीमत पर उपलब्ध करवाएं? मेरा बस चले तो मैं इस सूची में हर नागरिक के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और मनोरंजन को भी जुड़वा दूं.