करतारपुर गलियारे का उद्घाटन नौ नवंबर को होना है और ऐसी खबरें सामने आ रही हैं, जो कई संदेहों को पुष्ट करती हैं. जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान ने गुरु नानक देवजी के इस पवित्न स्थान को भारतीयों के लिए खोलने में उत्साह दिखाया तो कुछ भारतीय नेताओं ने कहा था कि यह पाकिस्तानी फौज के इशारे पर किया गया काम है. खालिस्तानी नेताओं के हाथ मजबूत करने में इस गलियारे का उपयोग किया जाएगा. यह संदेह तब फिर उभरा जब बालाकोट-कांड के बावजूद पाकिस्तान ने इस गलियारे की तैयारी को नहीं रोका.
दूसरी तरफ, भारत सरकार की आपत्ति का ध्यान रखते हुए पाकिस्तान ने करतारपुर कमेटी से पाकिस्तान के एक अलगाववादी सिख नेता को हटा दिया. इससे लगा कि इमरान खान सचमुच एक नया पाकिस्तान गढ़ रहे हैं और वे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. उन्होंने पाकिस्तान के कई गुरुद्वारों और हिंदू मंदिरों का जीर्णोद्धार करने और हिंदुओं के प्रति सहिष्णुता के व्यवहार की अपील भी की.
पूर्व प्रधानमंत्नी डॉ. मनमोहन सिंह और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने करतारपुर गलियारे को दिलों को जोड़नेवाले पुल की संज्ञा दी थी. लेकिन दो-तीन दिन पहले पाकिस्तान के सूचना मंत्नी ने जो वीडियो जारी किया है, उसमें जरनैल सिंह भिंडरांवाले, शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह खालसा के फोटो भी चमक रहे हैं.
ये वे लोग हैं जो 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मारे गए थे. इसके कारण उन लोगों की आवाज को बल मिलता है, जो कह रहे हैं कि यह गलियारा अलगाववादियों की मदद के लिए खोला जा रहा है.
पाकिस्तान की सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह इन सब अलगाववादी संगठनों पर लगाम लगाए और ऐसे कड़े इंतजाम करे कि करतारपुर का इस्तेमाल बेजा ढंग से न हो. इसके उद्घाटन के अवसर पर जो भारतीय जत्था पाकिस्तान पहुंच रहा है, उसका भाव-भीना स्वागत करके पाकिस्तान को अपनी मेहमाननवाजी का सिक्का जमा देना चाहिए.
यदि पाकिस्तान इस रास्ते पर दृढ़तापूर्वक चलता रहेगा तो भारत के सिर्फ सिखों में ही नहीं, हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों में भी उसकी इज्जत बढ़ेगी.