वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: दोष तो मतदाता का भी है!
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 2, 2019 07:21 AM2019-08-02T07:21:56+5:302019-08-02T07:21:56+5:30
हमारी राजनीतिक पार्टियों के नैतिक दिवालियेपन का साक्षात प्रतीक है- कुलदीप सेंगर! अदालत ने सरकार के कान तो खींच दिए हैं लेकिन यह समझ में नहीं आता कि हमारी जनता का चरित्र कैसा है ? ऐसे अपराधी चरित्र के नरपशुओं को चुनकर वह विधानसभा और संसद में कैसे भेजती है?
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उन्नाव में हुए बलात्कार के मामले में जिस तत्परता से कार्रवाई की है, उसने देश के सीने पर लगे घाव पर थोड़ा मरहम जरूर लगाया है. उप्र के विधायक कुलदीप सेंगर पर आरोप है कि 2017 में एक कम उम्र की लड़की के साथ उसने जो बलात्कार किया था और उस बलात्कार पर पर्दा डालने के लिए उसने कई नृशंस हत्याओं का सहारा लिया है, वैसा मर्मभेदी किस्सा तो पहले कभी सुनने में भी नहीं आया. जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ था, उसने इंसाफ का दरवाजा खटखटाने के खातिर पिछले साल उप्र के मुख्यमंत्री के घर के आगे आत्मदाह करने की कोशिश भी की थी.
उस विधायक पर आरोप है कि उस पीड़ित लड़की के साथ-साथ उसके उन सब रिश्तेदारों को भी वह मौत के घाट उतार देना चाहता है, जो उस कुकर्म के साक्षी रहे हैं या जो उस लड़की को न्याय दिलाने के लिए कमर कसे हुए हैं. लड़की के पिता को पुलिस से फर्जी मामले में गिरफ्तार करवाकर पहले ही मरवा दिया गया. लड़की का चाचा अभी जेल में है. वह लड़की, उसकी चाची और उसका वकील जिस कार से यात्रा कर रहे थे, उस कार को एक छिपे हुए नंबर के ट्रक ने इतनी जोर से टक्कर मारी कि बलात्कार की साक्षी वह चाची मर गई. पीड़िता और उसका वकील अभी भी मृत्यु-शय्या पर हैं. शंका है कि यह सारा षड़यंत्र सेंगर जेल में रहते हुए ही करवा रहा है. इस हत्याकांड में उप्र के एक मंत्री के दामाद का भी हाथ बताया जा रहा है.
ऐसा लगता है कि यह सारा मामला जातिवाद के चक्र में फंस गया है. उप्र की सरकार पर आरोप है कि उसने सारे मामले को ढील दे रखी है. वास्तव में विधायक सेंगर आजकल भाजपा का सदस्य रहा है. उसे पहले निलंबित किया गया था और अब उसे पार्टी से निकाला गया है. सेंगर पहले कांग्रेस में था, फिर वह बसपा में गया, फिर सपा में रहा और फिर 2017 में भाजपा में आया. हमारी राजनीतिक पार्टियों के नैतिक दिवालियेपन का साक्षात प्रतीक है- कुलदीप सेंगर! अदालत ने सरकार के कान तो खींच दिए हैं लेकिन यह समझ में नहीं आता कि हमारी जनता का चरित्र कैसा है ? ऐसे अपराधी चरित्र के नरपशुओं को चुनकर वह विधानसभा और संसद में कैसे भेजती है ?