जीएसटी के मामले में मोदी सरकार की हालत वही हो गई थी, जो हालत किसी यजमान की हवन करते वक्त कभी-कभी हो जाती है यानी हवन करते-करते हाथ जल जाते हैं. जीएसटी इसलिए लाया गया था कि लोगों को अपने खरीदे हुए माल पर कम टैक्स देना पड़े और सरकारों और व्यापारियों का सिरदर्द भी कम हो जाए. नोटबंदी के बाद जीएसटी ने इतना कीचड़ फैला दिया कि मोदी की नाव फंसने लगी. तीनों हिंदी राज्यों में हार का वह बड़ा कारण रहा है. जो व्यापारी समाज भाजपा की ताकत रहा है, उसकी रीढ़ तोड़ने का काम नोटबंदी और जीएसटी ने कर दिया. लेकिन मुङो खुशी है कि सरकार जीएसटी को सुधार रही है.
अब जीएसटी कौंसिल ने 17 चीजों और 6 सेवाओं पर लगनेवाले टैक्सों को घटा दिया है. यानी जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि 99 प्रतिशत वस्तुएं अब सबसे ज्यादा टैक्स (28 प्रतिशत) से मुक्त कर दी गई हैं. इस कदम से सरकार को 5500 करोड़ रु. का घाटा होगा. अब भी 28 वस्तुएं ऐसी हैं, जिन पर टैक्स की दर 28 प्रतिशत है. मुङो कुछ व्यापारियों ने बताया कि अभी तक कुछ चीजों पर इतने विचित्न ढंग से जीएसटी लगाया गया है कि हमको अपने नेताओं पर हंसी आने लगे. जैसे छोले और भटूरे आप अलग-अलग खाएं तो आपको 18 प्रतिशत टैक्स देना होगा और साथ-साथ खाएं तो 12 प्रतिशत. कपड़ों में लगनेवाली जिप में चेन और स्लाइडर पर यह बात लागू होती है. फ्रोजन सब्जियां (बर्फ में जमी हुई) कौन लोग खाते हैं और कितने लोग खाते हैं? उन पर टैक्स माफ करने का तुक समझ में नहीं आता.
टैक्स की आमदनी का सीधा फायदा गरीबों को मिले यह जरूरी है. जीएसटी के हिसाब की प्रणाली को भी इतना सरल बनाया जाना चाहिए कि गांव के अनपढ़ व्यापारी को भी कोई दिक्कत न हो. यह भी अच्छा है कि विभिन्न राज्यों की टैक्स-प्रणालियों के विवादों को निपटाने के लिए एक केंद्रीकृत संस्था बनाई जा रही है. देर आयद, दुरुस्त आयद!