वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनीति में नए दौर की दस्तक

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 13, 2020 04:42 IST2020-02-13T04:42:42+5:302020-02-13T04:42:59+5:30

दिल्ली के चुनाव को वैसा प्रचार मिला जैसा किसी भी प्रादेशिक चुनाव को नहीं मिला है. यह लगभग राष्ट्रीय चुनाव बन गया था. राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को इस चुनाव ने दरी के नीचे सरका दिया है. अरविंद केजरीवाल के वचन और कर्म में भी अब नौसिखियापन नहीं रहा. एक जिम्मेदार राष्ट्रीय नेता की गंभीरता उनमें दिखाई पड़ने लगी है.

Ved Pratap Vaidik Blog: New era knock in politics | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनीति में नए दौर की दस्तक

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। (फाइल फोटो)

दिल्ली के चुनाव में भाजपा की हार देश में नई राजनीति की शुरु आत कर सकती है. मुझे 2013 के गुजरात विधानसभा के चुनाव की याद आ रही है. जब वहां चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे तो लोग मुझसे पूछने लगे कि मोदी की 5-10 सीटें कम हो रही हैं, फिर भी आप कह रहे हैं कि गुजरात का यह मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री के द्वार पर दस्तक देगा. यही बात आज मैं अरविंद केजरीवाल के बारे में कहूं, ऐसा मेरा मन कहता है. ‘आप’ पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में कुछ सीटें कम मिलीं तो भी उसका प्रचंड बहुमत है.

यह प्रचंड बहुमत तब है, जबकि भाजपा ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, अपनी पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी. नेताओं ने चुनाव-प्रचार के दौरान अपना स्तर जितना नीचे गिराया, उतना गिरता हुआ स्तर मैंने 65-70 साल में कभी नहीं देखा. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने जरूर अपनी मर्यादा गिरने नहीं दी. भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों से लेकर सैकड़ों विधायकों और सांसदों को झोंक दिया.

दिल्ली की जनता से 2 रु. किलो आटे तक का वादा किया लेकिन दिल्ली के लोग फिसले ही नहीं. भाजपा यहीं तक नहीं रुकी. उसने शाहीन बाग को अपना रथ बना लिया. उसने खुद को पाकिस्तान की खूंटी पर लटका लिया. उसने अरविंद केजरीवाल को धार्मिक ध्रुवीकरण की धुंध में फंसाने की भी कोशिश की लेकिन गुरु  गुड़ रह गए और चेला शक्कर बन गया. कर्म की राजनीति ने धर्म की राजनीति को पछाड़ दिया.  

दिल्ली के चुनाव को वैसा प्रचार मिला जैसा किसी भी प्रादेशिक चुनाव को नहीं मिला है. यह लगभग राष्ट्रीय चुनाव बन गया था. राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को इस चुनाव ने दरी के नीचे सरका दिया है. अरविंद केजरीवाल के वचन और कर्म में भी अब नौसिखियापन नहीं रहा. एक जिम्मेदार राष्ट्रीय नेता की गंभीरता उनमें दिखाई पड़ने लगी है. वे अपने शुरुआती साथियों को फिर से अपने साथ जोड़ें, राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिकारी विद्वानों और विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लें और अपनी रचनात्मक छवि बनाए रखें तो वह राष्ट्रीय पटल पर विकल्प के रूप में उभर सकते हैं.

Web Title: Ved Pratap Vaidik Blog: New era knock in politics

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