वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: दूर होनी चाहिए गलतफहमी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 10, 2020 07:26 AM2020-02-10T07:26:19+5:302020-02-10T07:26:19+5:30
प्रधानमंत्नी का यह आश्वासन बिल्कुल समयानुकूल और सराहनीय है कि इस नए कानून से किसी भी भारतीय नागरिक (मुसलमान भी) को कोई नुकसान नहीं होनेवाला है. लेकिन मैं पूछता हूं कि यही बात मोदी और अमित शाह मुसलमान नेताओं को बुलाकर उनके गले क्यों नहीं उतारते?
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने संसद में सोमवार को जो भाषण दिया, उससे भारत के मुसलमान संतुष्ट होंगे या नहीं, यह कहना मुश्किल है लेकिन यह मानना पड़ेगा कि उनका भाषण काफी प्रभावशाली, खोजपूर्ण और रोचक था.
विपक्षी नेताओं ने भी कुछ तर्क अच्छे दिए लेकिन मोदी के सामने कोई भी टिक नहीं सका. भारत का विपक्ष कितना कमजोर है, यह कल की संसद की कार्रवाई देखने से पता चलता है. सारी बहस का केंद्रीय मुद्दा था- नया नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर लेकिन विपक्ष की सारी ताकत देश को यह बताने में लगी रही कि सरकार ने नागरिकता का पटाखा इसलिए फोड़ा है कि जनता का ध्यान उसकी आर्थिक कठिनाइयों से मोड़ दिया जाए.
यह तर्क या अनुमान ठीक हो सकता है लेकिन उसने नागरिकता कानून के विरुद्ध क्या ऐसे तर्क दिए हैं, जिन्हें हम अकाट्य कह सकें या जिन्हें सुनकर सरकार इस कानून में उचित संशोधन करने के लिए तैयार हो जाए?
प्रधानमंत्नी का यह आश्वासन बिल्कुल समयानुकूल और सराहनीय है कि इस नए कानून से किसी भी भारतीय नागरिक (मुसलमान भी) को कोई नुकसान नहीं होनेवाला है. लेकिन मैं पूछता हूं कि यही बात मोदी और अमित शाह मुसलमान नेताओं को बुलाकर उनके गले क्यों नहीं उतारते?
देश में उगे दर्जनों शाहीन बागों में जाकर भाजपा और संघ के लोग प्रदर्शनकारियों से सीधा संवाद क्यों नहीं करते? जिन सांसदों ने इस कानून के पक्ष में वोट दिया है, क्या उन्होंने जरा भी सोचा होगा कि यह इतने गहरे असंतोष का कारण बन जाएगा और यह अधमरे विपक्ष में जान डाल देगा?
ऐसा इसलिए हुआ है कि असम में 19 लाख लोगों की नागरिकता अधर में लटक गई है. मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू भी डर गए क्योंकि असम में नागरिकता सूची के बाहरवालों में लाखों हिंदू भी हैं.
पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को शरण देने का कोई विरोध नहीं कर रहा है लेकिन उसमें मुसलमानों का नाम हटा देने से गलतफहमी का बाजार अपने आप गर्म हो गया है. यह गलतफहमी डरावनी है. अब सरकार चाहे तो संसद के वर्तमान सत्न में ही भूल-सुधार कर सकती है.