वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ये पुलिसिया राज नहीं है, अंधाधुंध गिरफ्तारियों पर लगनी चाहिए रोक

By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 13, 2022 01:27 PM2022-07-13T13:27:53+5:302022-07-13T13:27:53+5:30

पुलिस वाले आज भी चाहे जिसको गिरफ्तार कर लेते हैं, बस उसके खिलाफ एक एफआईआर होनी चाहिए, जबकि कानून के अनुसार सिर्फ उन्हीं लोगों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए जिनके अपराध पर सात साल से ज्यादा की सजा हो.

Ved pratap Vaidik blog: Indiscriminate arrests should be stopped | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ये पुलिसिया राज नहीं है, अंधाधुंध गिरफ्तारियों पर लगनी चाहिए रोक

अंधाधुंध गिरफ्तारियों पर लगनी चाहिए रोक (फाइल फोटो)

सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार से दो-टूक शब्दों में कहा है कि वह लोगों की अंधाधुंध गिरफ्तारी पर रोक लगाए. भारत की जेलों में बंद लगभग 5 लाख कैदियों में से 4 लाख ऐसे हैं, जिनके अपराध अभी तक सिद्ध नहीं हुए हैं. अदालत ने उन्हें अपराधी घोषित नहीं किया है. 

ऐसे लोगों पर मुकदमे अगले 5-10 साल तक चलते रहते हैं और उनमें से ज्यादातर लोग बरी हो जाते हैं. हमारी अदालतों में करोड़ों मामले बरसों झूलते रहते हैं और लोगों को न्याय बहुत देर से मिलता है. अंग्रेजों के जमाने में गुलाम भारत पर जो कानून लादे गए थे, वे अब तक चले आ रहे हैं. 

स्वतंत्र भारत की सरकारों ने कुछ कानून जरूर बदले हैं लेकिन अब भी पुलिस वाले चाहे जिसको गिरफ्तार कर लेते हैं, बस उसके खिलाफ एक एफआईआर लिखी होनी चाहिए, जबकि कानून के अनुसार सिर्फ उन्हीं लोगों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए जिनके अपराध पर सात साल से ज्यादा की सजा हो. यानी मामूली अपराधों का संदेह होने पर किसी को पकड़कर जेल में डालने का मतलब तो यह हुआ कि देश में पुलिस का राज है. इसी की कड़ी आलोचना जजों ने दो-टूक शब्दों में की है.

इस ‘पुलिस राज’ में कई लोग निर्दोष होते हुए भी बरसों जेल में सड़ते रहते हैं. सरकार भी इन कैदियों पर करोड़ों रु. रोज खर्च करती रहती है. इन्हें जमानत तुरंत मिलनी चाहिए. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-41 कहती है कि किसी भी दोषी व्यक्ति को पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है लेकिन हमारी अदालतें कई बार कह चुकी हैं कि किसी व्यक्ति को तभी गिरफ्तार किया जाना चाहिए जबकि यह शक हो कि वह भाग खड़ा होगा या गवाहों को बिदका देगा या प्रमाणों को नष्ट करवा देगा. 

इस वक्त तो कई पत्रकारों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को हमारी जेलों में ठूंस दिया जाता है. वे जब अपने मुकदमों में बरी होते हैं तो उनके यातना-काल का हर्जाना उन्हें गिरफ्तार करवाने वालों से क्यों नहीं वसूला जाता? जमानत के ऐसे कई मामले आज भी अधर में हैं, जिन्हें बरसों हो गए हैं. 

दुनिया के अन्य लोकतंत्रों जैसे अमेरिका और ब्रिटेन में अदालतें और जांच अधिकारी यह मानकर चलते हैं कि जब तक किसी का अपराध सिद्ध न हो जाए, उसे अपराधी मान उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए. हमारे कानूनों में संशोधन होना चाहिए ताकि नागरिक स्वतंत्रता की सच्चे अर्थों में रक्षा हो सके.

Web Title: Ved pratap Vaidik blog: Indiscriminate arrests should be stopped

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