वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ताइवान पर भारत की दुविधा

By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 20, 2020 01:02 PM2020-05-20T13:02:39+5:302020-05-20T13:02:39+5:30

कई पश्चिमी देश ताइवान को विश्व स्वास्थ्य संगठन में इसलिए भी बुलाना चाहते हैं कि कोरोना को लेकर चीन और उनके बीच भयंकर शीतयुद्ध चल पड़ा है. वे चीन से करोड़ों-अरबों डॉलरों का हर्जाना भी मांग रहे हैं और अमेरिका-जैसे राष्ट्र विश्व-स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान अधिकारियों को चीनपरस्त भी मानते हैं.

Ved Pratap Vaidik Blog: India's dilemma over Taiwan | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ताइवान पर भारत की दुविधा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

भारत की विदेश नीति के सामने एक बड़ी दुविधा आ फंसी है. भारत शीघ्र ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अध्यक्ष बनने वाला है. उसके पहले इस संगठन के संचालक मंडल की बैठक होने वाली है. इस बैठक में ताइवान पर्यवेक्षक की तरह शामिल हो, ऐसा कई देश चाहते हैं जबकि चीन इसके बिल्कुल विरुद्ध है, क्योंकि वह ताइवान को अपना एक प्रदेश भर मानता है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कई यूरोपीय देश और कुछ लातिनी अमेरिकी देश भी चाहते हैं कि ताइवान भी उस बैठक में भाग ले और इस विश्व संगठन को वह रहस्य बताए, जिनके चलते उसने कोरोना पर जबर्दस्त काबू पाया. यहां भारत के लिए सवाल यह है कि इस मुद्दे पर वह किसका समर्थन करे, चीन का या ताइवान का?

ताइवान ढाई करोड़ लोगों का देश है. कुछ वर्ष पहले एक सप्ताह के लिए मैं ताइवान सरकार का मेहमान भी रहा हूं. वहां के शीर्ष नेताओं और विद्वानों के साथ बातचीत करने पर पता चला कि ताइवानी लोग भारत से बहुत प्रेम रखते हैं. उनके संस्थापक नेता च्यांग-काई शेक से भारत का गहरा संबंध रहा है लेकिन भारत ने आज तक उसको राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी है. फिर भी दोनों देशों की राजधानियों में दोनों के आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र बने हुए हैं. पिछले 25 साल से ये केंद्र ही राजदूतावास की तरह काम कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताइवान को पर्यवेक्षक की हैसियत 2009 से 2016 तक मान्यता मिली हुई थी. चीन ने उस समय उसका विरोध इसलिए नहीं किया, क्योंकि ताइवान की तत्कालीन क्वोमिंतांग सरकार और चीन के संबंध ठीक-ठाक थे लेकिन 2016 में डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी की साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति चुन ली गईं, जो ताइवान को सार्वभौम और स्वतंत्न राष्ट्र घोषित करवाना चाहती थीं. पिछले दिनों चीन के खिलाफ ताइवान में अभूतपूर्व प्रदर्शन भी हुए थे.

कई पश्चिमी देश ताइवान को विश्व स्वास्थ्य संगठन में इसलिए भी बुलाना चाहते हैं कि कोरोना को लेकर चीन और उनके बीच भयंकर शीतयुद्ध चल पड़ा है. वे चीन से करोड़ों-अरबों डॉलरों का हर्जाना भी मांग रहे हैं और अमेरिका-जैसे राष्ट्र विश्व-स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान अधिकारियों को चीनपरस्त भी मानते हैं.

भारत दोनों पक्षों से अपने संबंध सहज रखना चाहता है. भावी अध्यक्ष के नाते वह किसी एक का पक्षधर बने, यह उचित नहीं है. बीच का एक रास्ता मेरे दिमाग में है लेकिन हमारे विदेश मंत्नालय के दिमाग में कई रास्ते होंगे. देखें, क्या होता है.

Web Title: Ved Pratap Vaidik Blog: India's dilemma over Taiwan

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