वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नेताओं को सुननी होगी जनता की आवाज
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 5, 2021 10:51 AM2021-08-05T10:51:31+5:302021-08-05T10:52:28+5:30
लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च है और उनकी बात हर हाल में सुनी जानी चाहिए। गुजरात उच्च न्यायालय की ओर से एक मामले में आई टिप्पणी एक बार फिर इसी की तस्दीक करती है।
गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय ने एक स्थानीय मामले में ऐसी बात कह दी है, जिससे सिर्फ गुजरात ही नहीं, संपूर्ण भारत का लोकतंत्र मजबूत होता है. उन्होंने गोधरा के एक नागरिक प्रवीणभाई को तो न्याय दिलाया ही, साथ-साथ उन्होंने देश के नेता और पुलिसतंत्र के कान भी खींचे हैं.
हुआ यह कि गोधरा के विधायक और जिलाधीश को प्रवीणभाई पर यह गुस्सा था कि वे बार-बार उन पर आरोप लगाते हैं कि वे आम लोगों की शिकायतें भी सुनने को तैयार नहीं होते. जनता के आवश्यक और वैधानिक काम को पूरा कराना तो और भी दूर की बात है.
गोधरा के विधायक और सरकारी अधिकारी उनसे इतने ज्यादा नाराज हुए कि विधायक सी.के. राओलजी के पुत्र से उनके खिलाफ एफआईआर थाने में दर्ज करवा दी गई. उसी रपट के आधार पर उन्हें एक पुलिस एक्ट के तहत जिला बदर या तड़ीपार का आदेश दे दिया गया. प्रवीणभाई को अदालत की शरण में जाना पड़ा.
अभी अदालत ने इस मामले में अपना अंतिम फैसला नहीं सुनाया है लेकिन पहली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति उपाध्याय ने सरकार से कहा है कि ‘आपको रजवाड़े नहीं चलाने हैं. यह लोकतंत्र है. आप लोगों को बोलने से नहीं रोक सकते.’
उन्होंने जिलाधीश और स्थानीय विधायक को फटकार लगाई और कहा कि आपके स्थानीय लोग यदि आपसे सवाल नहीं पूछेंगे तो किससे पूछेंगे? अपने नागरिकों का पक्ष लेने के बजाय जिलाधीश ने विधायक के बेटे के दबाव में आकर तड़ीपार का आदेश जारी कैसे कर दिया? इस आदेश को, जो कि गुजरात पुलिस एक्ट (1951) की धारा 56 (9) के तहत जारी किया गया था, अदालत ने निरस्त कर दिया है. इस धारा के अंतर्गत उन लोगों को शहर या गांव-निकाला दे दिया जाता है, जिनके वहां रहने से सांप्रदायिक दंगों या अराजकता फैलने की आशंका हो.
अब इन नेताओं और नौकरशाहों से कोई पूछे कि नागरिकों की शिकायतों, आग्रहों या आरोपों से उनके शहर की कौनसी शांति भंग होती है? हां, उनकी मानसिक शांति जरूर भंग होती है. इसीलिए किसी मतदाता की व्यक्तिगत शिकायत सुनना और उसे दूर करना तो बड़ी बात है, आजकल जनता दरबार की परंपरा भी लगभग समाप्त है. मैं तो कहता हूं कि प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्री सप्ताह में एक-दो दिन खुला जनता-दरबार जरूर लगाएं, ऐसा पक्का प्रावधान सारे देश में लागू किया जाए. चुने जाने के बाद नेता जनसेवक से जनमालिक बन जाते हैं.
नौकरशाहों और नेताओं की जुगलबंदी के नक्कारखाने में जनता की आवाज मरियल तूती बनकर रह जाती है. अगर कोई तूती थोड़ा भी बोल पड़ती है तो नेता और नौकरशाह उसका गला दबाने के लिए टूट पड़ते हैं.