वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: तंगहाल मजदूरों को और ज्यादा न करें परेशान
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 6, 2020 07:09 AM2020-05-06T07:09:07+5:302020-05-06T07:09:07+5:30
जिन मजदूरों की जेबें खाली हैं, उनसे रेल-किराया मांगा जा रहा है और एक वक्त के खाने के 50 रु. ऊपर से उन्हें भरने पड़ रहे हैं. इसके विपरीत विदेशों से जिन लोगों को लाया गया है, उनको मुफ्त की हवाई-यात्ना, मुफ्त का खाना और भारत पहुंचने पर मुफ्त में रहने की सुविधाएं भी दी गई हैं. क्या यह शर्म की बात नहीं है? खास तौर से तब जबकि ‘प्रधानमंत्नी परवाह करते हैं’ (पीएम केयर्स फंड) में सैकड़ों करोड़ रु. जमा हो रहे हैं. किसकी परवाह की जा रही है? संपन्न लोगों की? जो भूखे-प्यासे गरीब लोग हैं, उनकी परवाह कौन करेगा?
भारत सरकार ने यह फैसला देर से किया लेकिन अच्छा किया कि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए रेलगाड़ियां चला दीं. यदि बसों की तरह रेलगाड़ियां भी गैरसरकारी लोगों के हाथ में होतीं या राज्य सरकारों के हाथ में होतीं तो वे उन्हें कब की चला देते. करोड़ों मजदूरों की घर-वापसी हो जाती और अब तक काम पर लौटने की उनकी इच्छा भी बलवती हो जाती. लेकिन अब जबकि रेलगाड़ियां चल रही हैं, बहुत ही शर्मनाक और दर्दनाक नजारा देखने को मिल रहा है.
जिन मजदूरों की जेबें खाली हैं, उनसे रेल-किराया मांगा जा रहा है और एक वक्त के खाने के 50 रु . ऊपर से उन्हें भरने पड़ रहे हैं. इसके विपरीत विदेशों से जिन लोगों को लाया गया है, उनको मुफ्त की हवाई-यात्ना, मुफ्त का खाना और भारत पहुंचने पर मुफ्त में रहने की सुविधाएं भी दी गई हैं.
इसमें कोई बुराई नहीं है. यह अच्छी बात है लेकिन ये लोग कौन हैं? ये वे प्रवासी भारतीय हैं, जो विदेशों में काम करके पर्याप्त पैसा कमाते हैं लेकिन इनके मुकाबले हमारे नंगे-भूखे मजदूरों से सरकार रेल-किराया वसूल कर रही है. क्या यह शर्म की बात नहीं है? खास तौर से तब जबकि ‘प्रधानमंत्नी परवाह करते हैं’ (पीएम केयर्स फंड) में सैकड़ों करोड़ रु. जमा हो रहे हैं. किसकी परवाह की जा रही है? संपन्न लोगों की? जो भूखे-प्यासे गरीब लोग हैं, उनकी परवाह कौन करेगा?
यदि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन वंचितों के लिए आवाज उठाई तो इसमें उन्होंने गलत क्या किया? यदि इसे आप राजनीतिक पैंतरेबाजी कहते हैं तो मैं इस पैंतरेबाजी का स्वागत करता हूं. इसका असर अच्छा हुआ है. कई कांग्रेसी और गैरकांग्रेसी राज्यों ने अपने-अपने यात्रियों का खर्च खुद करने की घोषणा कर दी है.
रेल मंत्नालय को अब यही देखना है कि वह इन करोड़ों मजदूरों की यात्ना को सुरक्षित ढंग से संपन्न करवा दे. यदि यात्ना की इस भगदड़ और गहमागहमी में कोरोना फैल गया तो देश के सामने मुसीबतों का नया पहाड़ उठ खड़ा होगा.
मजदूरों की घर वापसी तो हो रही है लेकिन इसके साथ जुड़ी दो समस्याओं पर सरकार को अभी से रणनीति बनानी होगी. एक तो जो मजदूर अपने गांव पहुंचे हैं, उनमें से बहुत-से फिर से शहरों में लौटना बिल्कुल भी नहीं चाहते. उनका कहना है कि गांव में रहेंगे, चाहे कम कमाएंगे लेकिन मस्त रहेंगे. यदि यह प्रवृत्ति बड़े पैमाने पर चल पड़ी तो शहरों में चल रहे कल-कारखानों का क्या होगा? इसके विपरीत ये 5-7 करोड़ मजदूर यदि अपने गांवों से वापस काम पर लौटना चाहेंगे तो क्या होगा? वे कैसे आएंगे, कब आएंगे और क्या तब तक उनकी नौकरियां कायम रहेंगी? या वे कारखाने भी तब तक कायम रह पाएंगे या नहीं? गांव पहुंचे हुए लोगों में यदि कोरोना फैल गया तो सरकार क्या करेगी?