वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: इंसानियत की मिसाल बनने वालों का हो सम्मान
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 15, 2022 01:54 PM2022-02-15T13:54:53+5:302022-02-15T13:54:53+5:30
भोपाल की घटना ने सिद्ध किया है कि इंसानियत से बड़ी कोई चीज नहीं है. मजहब, जाति, हैसियत वगैरह इंसानियत के आगे सब कुछ बहुत छोटे हैं.
मौत के मुंह में फंसे लोगों की जान बचाने के किस्से अक्सर सुनने में आते रहते हैं. कुएं में गिरे बच्चों को बाहर निकाल लाने, धंसे मकानों में से लोगों को बाहर खींच लाने, डूबते हुए बच्चों को बचा लाने आदि की खबरें हम पढ़ते ही रहते हैं. हमारे देश में ऐसे बहादुर लोगों की कोई कमी नहीं है लेकिन भोपाल का किस्सा तो रोंगटे खड़े कर देने वाला है.
पुराने भोपाल में रेल की पटरियां कुछ ऐसी बनी हुई हैं कि उन्हें पैदल पार किए बिना आप एक तरफ से दूसरी तरफ जा ही नहीं सकते. न तो वहां कोई भूमिगत रास्ते हैं, न ही पटरियों के ऊपर पुल बने हैं. ऐसी ही पटरी पार करके स्नेहा गौड़ नामक एक 24 साल की लड़की दूसरी तरफ जाने की कोशिश कर रही थी.
उस समय पटरी पर 24 डिब्बों वाली मालगाड़ी खड़ी थी. जैसे ही स्नेहा ने दो डिब्बों के बीच की खाली जगह में पांव धरे, मालगाड़ी अचानक चल पड़ी. वह वहीं गिर गई. उसे गिरता देखकर एक 37 वर्षीय अनजान आदमी भी कूदकर उस पटरी पर लेट गया. उसका नाम है मोहम्मद महबूब.
महबूब ने उस लड़की का सिर अपने हाथ से दबाए रखा ताकि वह उठने की कोशिश न करे. यदि उसका सिर जरा भी ऊंचा हो जाता तो रेल के डिब्बे से वह पिस जाता. स्नेहा का भाई पटरी के दूसरी तरफ खड़ा-खड़ा चिल्ला रहा था. उसके होश उड़े हुए थे. उसे स्नेहा शांत करना चाहती थी लेकिन वह खुद गड़बड़ न कर बैठे इसलिए महबूब बार-बार उसे कह रहा था- ‘‘बेटा, तू डर मत, मैं हूं.’’ रेल निकल गई और दोनों बच गए.
A teenage girl attempted suicide by jumping in front of a goods train.
— Siraj Noorani (@sirajnoorani) February 11, 2022
But a young man Mehboob jumped to save the teenager, dropped the girl in the middle of the track, then the train went over. Both are safe. #MadhyaPradesh#Bhopal@anilscribe 📽️ pic.twitter.com/XZVLBVjXF2
मोहम्मद महबूब ने अपनी जान पर खेलकर एक बेटी की जान बचाई. उसे कितना ही बड़ा पुरस्कार दिया जाए, कम है. मैं तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहूंगा कि महबूब का नागरिक सम्मान किया जाना चाहिए. महबूब एक गरीब बढ़ई है. उसके पास मोबाइल फोन तक नहीं है. वह एक सात-सदस्यीय परिवार का बोझ ढोता है.
स्नेहा की रक्षा का यह किस्सा रेल मंत्रालय को भी सावधान कर रहा है. उसे चाहिए कि भोपाल जंक्शन से डेढ़ किमी दूर स्थित इस एशबाग नामक स्थान पर वह तुरंत एक पुल बनवाए. इस स्थान पर पिछले साल इसी तरह 18 मौतें हुई हैं. यदि रेल मंत्रालय इस मामले में कुछ ढिलाई दिखा रहा है तो मप्र की सरकार क्या कर रही है?
इस घटना ने सिद्ध किया है कि इंसानियत से बड़ी कोई चीज नहीं है. मजहब, जाति, हैसियत वगैरह इंसानियत के आगे सब कुछ बहुत छोटे हैं. हमारे देश में सांप्रदायिकता फैलाने वाले इस घटना से सबक ले सकते हैं.