वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अफगानिस्तान में अमेरिकी हित

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 4, 2020 13:15 IST2020-03-04T13:15:25+5:302020-03-04T13:15:25+5:30

तालिबान के साथ हुए समझौते में अमेरिका ने अपने हितों की पूरी तरह से रक्षा की है लेकिन भारत के हितों का जिक्र तक नहीं है.

Ved Pratap Vaidik blog: American interest in Afghanistan | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अफगानिस्तान में अमेरिकी हित

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। (फाइल फोटो)

तालिबान के साथ अमेरिका ने दोहा में जैसे ही समझौता किया, मैंने लिखा था कि काणी के ब्याह में सौ-सौ जोखिमें. हमारी भारत सरकार ने उसका भरपूर स्वागत किया था. हमारे विदेश सचिव समझौते के एक दिन पहले काबुल पहुंच गए थे. वे राष्ट्रपति अशरफ गनी और वहां के प्रधानमंत्नी डॉ. अब्दुल्ला से भी मिले.

तालिबान के साथ हुए समझौते में अमेरिका ने अपने हितों की पूरी तरह से रक्षा की है लेकिन भारत के हितों का जिक्र तक नहीं है.

अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत ने जितना पैसा लगाया है, दुनिया के किसी भी देश ने नहीं लगाया है.

हमारे दूतावास और जरंज-दिलाराम सड़क पर हुए हमलों से हमारे दर्जनों इंजीनियरों, राजनयिकों और मजदूरों की बलि चढ़ी है. काबुल में क्या तालिबान के काबिज होते ही भारत को वहां से लौटना नहीं पड़ेगा?

एक सुझाव यह है कि अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद उस शून्य को भारत की फौजें भरें लेकिन भारत यह कभी नहीं करेगा. उसे यह कभी नहीं करना चाहिए.

जनवरी 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्नी बबरक कारमल ने रूसी फौजों के बदले भारतीय फौजों की मांग की थी. अमेरिकी राजनयिक भी यही कोशिश करते रहे. अब भी करेंगे.

भारत सावधान रहे, यह जरूरी है. हो सकता है कि अफगानिस्तान दुबारा गृह युद्ध में फंस जाए. तालिबान की इस्लामिक अमीरात और काबुल सरकार में तलवारें खिंच जाएं. इस समझौते की ईंटें उखड़नी शुरू हो गई हैं. इसका फायदा पाकिस्तान को जरूर मिलेगा लेकिन भारत अभी भी खाली हाथ है. उसके पास फिलहाल कोई भावी रणनीति नहीं है.

Web Title: Ved Pratap Vaidik blog: American interest in Afghanistan

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