वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अखंड भारत या अखंड आर्यावर्त?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 24, 2021 12:53 PM2021-08-24T12:53:38+5:302021-08-24T12:53:38+5:30
भारत को केपल अंग्रेजों द्वारा शासित 1947 का अखंड भारत ही खड़ा नहीं करना है बल्कि सदियों पुराना आर्यावर्त पुनर्जीवित करना है, जिसे आजकल ‘दक्षेस’ भी कहा जाता है.
शिवसेना के सांसद संजय राऊत का यह कहना काफी अजीब सा है कि नाथूराम गोडसे ने गांधी की बजाय जिन्ना को मार डाला होता तो भारत-विभाजन शायद रुक जाता लेकिन राऊत भूल गए कि गांधीजी की हत्या विभाजन के ठीक साढ़े पांच महीने बाद हुई थी.
यदि भारत-विभाजन के पहले जिन्ना को मार दिया जाता तो खून-खराबा कितना ज्यादा होता, इसकी कल्पना भी किसी को है? खून-खराबा तो होता ही, पाकिस्तान 1947 की बजाय उसके पहले ही बन जाता. लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाना भी आश्चर्यजनक है.
14 अगस्त पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस है, जैसे कि 15 अगस्त हमारा है और दोनों देशों के प्रधानमंत्री इन दिवसों पर एक-दूसरे को बधाई संदेश
भेजते हैं.
राऊत ने मोदी से सवाल पूछा है कि आप यदि अखंड भारत चाहते हैं तो आप उसमें पाकिस्तान के मुसलमानों का क्या करेंगे? इसमें बांग्लादेश के मुसलमानों को राऊत क्यों भूल गए? सच्चाई तो यह है कि मालदीव और श्रीलंका के मुसलमान भी भारत के ही अंग थे.
यदि अखंड भारत वह है, जिस पर अंग्रेजों का राज था तो इन पड़ोसी देशों को भी उसमें जोड़ना पड़ेगा लेकिन अंग्रेजों द्वारा शासित भारत को अखंड भारत कहना हमारे प्राचीन इतिहास की उपेक्षा ही है. उसके अनुसार अखंड भारत नहीं, हमें आर्यावर्त की बात करनी चाहिए, जिसका जिक्र हमें महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, महर्षि दयानंद के कथनों और पांडवों-कौरवों तथा सम्राट अशोक के साम्राज्यों में मिलता है.
यह आर्यावर्त अराकान (म्यांमार) से खुरासान (ईरान) और त्रिविष्टुप (तिब्बत) से मालदीव तक फैला हुआ है. इसमें मध्य एशिया के पांचों गणतंत्र भी जोड़े जा सकते हैं.
भारत को सिर्फ अंग्रेजों द्वारा शासित 1947 का अखंड भारत ही खड़ा नहीं करना है बल्कि सदियों पुराना आर्यावर्त पुनर्जीवित करना है, जिसे आजकल ‘दक्षेस’ भी कहा जाता है. इस सारे दक्षिण और मध्य एशिया के क्षेत्र में यूरोप की तरह एक साझा बाजार, साझी संसद, साझी सरकार और साझा महासंघ बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए.
ऐसा महासंघ जो फिरकापरस्ती, जातिवाद, संकीर्ण राष्ट्रवाद, मजहबी उन्माद और तरह-तरह के भेदभावों से मुक्त हो. इसके लिए भारत आदर्श राष्ट्र है. भारत में हम अप्रतिम सहनशीलता और उदारता देखते हैं. यदि अखंड भारत का नारा देनेवाले लोग इन्हीं गुणों को बढ़ाएं तो निश्चय ही अखंड भारत ही नहीं, अखंड आर्यावर्त बनने में भी देर नहीं लगेगी.