PM Narendra Modi-Elon Musk: एलन मस्क ढिंढोरा पीट रहे, पीएम नरेंद्र मोदी ने चुपचाप किया?
By हरीश गुप्ता | Updated: November 21, 2024 05:31 IST2024-11-21T05:31:50+5:302024-11-21T05:31:50+5:30
US Election Results 2024: आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2012 में केंद्र सरकार ने संगठित कार्यबल के 8.5% को रोजगार दिया, जो 1994 के 12.4% से कम था.

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US Election Results 2024: क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी अरबपति एलन मस्क की राह पर चल रहे हैं, जिन्हें डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी सरकार के आकार में कटौती करने का काम सौंपा है? बिल्कुल नहीं. 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही मोदी केंद्र सरकार के आकार को छोटा करने और फिजूलखर्ची में कटौती करने के लिए उत्सुक रहे हैं. उन्होंने लंबे समय तक सरकार में रिक्त पदों को नहीं भरा और नौकरशाही को अनुशासित करने के लिए कुछ कठोर कदम उठाए, जिससे सही संकेत गए. ऐसा नहीं है कि उनके पूर्ववर्तियों ने इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया.
Great meeting you today @elonmusk! We had multifaceted conversations on issues ranging from energy to spirituality. https://t.co/r0mzwNbTyNpic.twitter.com/IVwOy5SlMV
— Narendra Modi (@narendramodi) June 21, 2023
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2012 में केंद्र सरकार ने संगठित कार्यबल के 8.5% को रोजगार दिया, जो 1994 के 12.4% से कम था. निश्चित रूप से, मोदी के शासन में यह आंकड़ा काफी कम हुआ है. संसद में दिए गए एक जवाब के अनुसार, 1 जुलाई 2023 तक, केंद्र सरकार के 48.67 लाख कार्यरत कर्मचारी और 67.95 लाख सेवानिवृत्त कर्मचारी थे.
मोदी ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को वापस लाने के दबाव के आगे भी घुटने नहीं टेके, हालांकि कुछ भाजपा शासित राज्य सरकारों ने राजनीतिक मजबूरियों के चलते ओपीएस को वापस लागू कर दिया.
मोदी सार्वजनिक रूप से यह दावा नहीं कर सकते कि वे सरकार का आकार छोटा कर देंगे, जैसा कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी टीम द्वारा किया जा रहा है.
भारत में यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है, जहां जनसंख्या बहुत अधिक है और बढ़ती बेरोजगारी का किसी भी सरकार की स्थिरता पर सीधा असर पड़ता है. मोदी सरकार 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद दो प्रमुख सहयोगियों पर निर्भर है और कठोर निर्णय चुपचाप ले रही है.
उन्होंने तेजी से बदलती तकनीकी दुनिया में ‘बाबुओं’ को प्रशिक्षित करने के लिए नौकरशाही में अपने ‘कर्मयोगी’ विजन को लागू करने के लिए 2021 में इंफोसिस के पूर्व सीईओ एसडी शिबू लाल की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था. वे बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र से अनुबंध के आधार पर प्रतिभाओं को लाने की प्रणाली को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं, हालांकि यह सफल नहीं रहा है. कारण! नौकरशाही इस मजबूती से सिस्टम में समाई है कि बाहरी व्यक्ति के लिए टिक पाना मुश्किल है.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम दुधारू गाय बने!
सार्वजनिक उपक्रमों को लाभदायक उपक्रमों में बदलने की प्रधानमंत्री मोदी की योजना 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद सफल हुई है. 2021 में सार्वजनिक उद्यम चयन बोर्ड (पीईएसबी) का नेतृत्व करने वाली पहली निजी क्षेत्र की विशेषज्ञ मल्लिका श्रीनिवासन की नियुक्ति ने एक नए युग का संकेत दिया.
श्रीनिवासन निजी क्षेत्र की कंपनी ट्रैक्टर्स एंड फार्म इक्विपमेंट (टैफे) लिमिटेड की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक थीं. पीईएसबी में उनके नेतृत्व ने प्रमुख प्रबंधकीय पदों के लिए चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मोदी उनके काम से इतने प्रसन्न हैं कि उन्होंने उनका कार्यकाल 65 वर्ष की आयु सीमा से आगे नवंबर 2025 तक एक और साल के लिए बढ़ा दिया.
नियमों में संशोधन किया. पीईएसबी का काम केंद्र सरकार के तहत 300 से अधिक सार्वजनिक उपक्रमों में प्रमुख नियुक्तियां करना है और उनमें से अधिकांश भारी घाटे में चल रहे थे. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भले ही मोदी सरकार पर अंबानी और अडानी जैसे पूंजीपतियों के लिए काम करने का आरोप लगाया हो.
लेकिन मोदी ने उनमें से अधिकांश को लाभ कमाने वाली कंपनियों में बदल दिया है, न कि उन्हें पहले की तरह सस्ते में बेचा है. विपक्ष ने मोदी सरकार पर अपने पूर्ववर्तियों द्वारा बनाए गए 23 सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने का भी आरोप लगाया, जिसमें एयर इंडिया का सबसे बड़ा निजीकरण भी शामिल है, जो दो दशकों से घाटे में चल रहा था.
शेयरों को किस्तों में भारी कीमत पर बेचने और लाभांश अर्जित करने से सरकार की झोली में पैसा आया है. यह अलग बात है कि चुनावी वर्ष होने के कारण सरकार 2023-24 में अपने विनिवेश कार्यक्रम को पूरा करने में असमर्थ रही. ऐसी खबरें हैं कि नीति आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र की आठ प्रमुख उर्वरक कंपनियों को क्रमिक तरीके से बेचने की सिफारिश की थी.
लेकिन सरकार ने इसमें देरी की क्योंकि वह घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ बंद संयंत्रों को फिर से खोल रही है. सरकार का लक्ष्य आयातित उर्वरकों पर अपनी निर्भरता कम करना और संयंत्रों को बेचने से पहले उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है. उम्मीद है कि यूरिया आयात में उम्मीद से पहले ही 30 प्रतिशत की कटौती हो जाएगी. उर्वरक सब्सिडी को पहले ही वित्त वर्ष 2024 में 1,88,894 करोड़ रुपए से घटाकर वित्त वर्ष 2025 में 1,64,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है.
मोदी सरकार में दोहरे प्रभार की भरमार
मोदी सरकार ने खर्च कम करने के लिए एक और तरीका अपनाया है. उसने एक नौकरशाह या नेता को न सिर्फ दोहरा प्रभार बल्कि चार-चार विभाग, कंपनियां या मंत्रालय देने शुरू कर दिए हैं. वह लंबे समय से बड़ी संख्या में कंपनियों को बिना प्रमुख के रख रही है और दूसरे विभाग का प्रभार किसी और विभाग के प्रभारी नौकरशाह को दे रही है.
खबरों की मानें तो तीन दर्जन से ज्यादा नौकरशाह दोहरे या तिहरे प्रभार संभाल रहे हैं. इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया की स्वतंत्रता प्रभावित होती है. ताजा मामला भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) का है, जो खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मानकों को विनियमित करने वाला एक महत्वपूर्ण निकाय है.
गुजरात कैडर की आईएएस अधिकारी और पूर्व वाणिज्य सचिव रीता तेवतिया के नवंबर 2021 में सेवानिवृत्त होने के बाद से अध्यक्ष का पद तीन साल से खाली पड़ा है. अब स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव अतिरिक्त प्रभार संभाल रही हैं. सरकार में इस बात को लेकर घोर असमंजस की स्थिति है कि एफएसएसएआई का अध्यक्ष किसे बनाया जाए, किसी नौकरशाह को या वैज्ञानिक को. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी के नाम की सिफारिश की गई थी, लेकिन शीर्ष अधिकारी चाहते थे कि एफएसएसएआई का नेतृत्व कोई वैज्ञानिक या इस क्षेत्र का विशेषज्ञ करे.
एक वैज्ञानिक के नाम की भी सिफारिश की गई थी और एसीसी से उम्मीद थी कि वह इसे मंजूरी दे देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सुश्री श्रीवास्तव से पहले केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण एफएसएसएआई का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे. एक अन्य स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा भी एफएसएसएआई के प्रमुख थे.