प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: यूजीसी के इस नए फैसले से अब अनुभवजन्य ज्ञान को भी मिलेगा सम्मान
By प्रमोद भार्गव | Published: August 27, 2022 12:26 PM2022-08-27T12:26:11+5:302022-08-27T12:31:05+5:30
यूजीसी के इस ‘शिक्षक संकाय’ के तहत जिन प्राध्यापकों को नियुक्त होगी उन के पास विशेषज्ञता सिद्ध करने के लिए 15 वर्ष का अनुभव आवश्यक होना चाहिए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का यह फैसला क्रांतिकारी है, जिसके अंतर्गत अब उच्च शिक्षण संस्थानों में एक नई श्रेणी ‘शिक्षक संकाय’ के अंतर्गत प्रतिष्ठित विषय विशेषज्ञों के रूप में ऐसे प्राध्यापक नियुक्त किए जाएंगे, जिनके पास प्रोफेसर बनने की पात्रता तो नहीं होगी लेकिन वे संबंधित विषय के क्षेत्र में औपचारिक पात्रता, अनुभव और प्रकाशन संबंधी अर्हताएं रखते होंगे. उनके पास विशेषज्ञता सिद्ध करने के लिए 15 वर्ष का अनुभव आवश्यक होगा.
किन क्षेत्रों में होगी नियुक्ति
योजना के प्रारूप के मुताबिक इन विशेषज्ञों को अनुबंध के आधार पर विज्ञान, अभियांत्रिकी, मीडिया, साहित्य, उद्यमिता, सामाजिक विज्ञान, ललित कला, लोकसेवा और सशस्त्र बल आदि क्षेत्रों में नियुक्ति दी जाएगी.
यूजीसी की 560वीं बैठक में यह निर्णय लिया गया है. इसे सितंबर माह में ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ (पेशेवर प्राध्यापक) रूप में अधिसूचित किया जाएगा. पीएचडी जैसी पात्रता भी अनिवार्य नहीं रह जाएगी.
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत के यह उपाय किए जा रहे है
शिक्षण संस्थानों में स्वीकृत कुल पदों में से दस प्रतिशत पदों की नियुक्ति इस योजना के अंतर्गत की जाएगी. फिलहाल देशभर में पत्रकारिता के विवि में पेशेवर पत्रकार इसी आधार पर न केवल अध्यापन का कार्य कर रहे हैं, बल्कि कुलपति भी बने हुए हैं. नई शिक्षा नीति के अंतर्गत ये उपाय किए जा रहे हैं.
भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन शालेय शिक्षा व कुशल-अकुशल की परिभाषाओं से ज्ञान को रेखांकित किए जाने के कारण महज कागजी काम से जुड़े डिग्रीधारी को ही ज्ञान का अधिकारी मान लिया गया है.
कुछ आविष्कारों को ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ ने मिल चुकी है मान्यता
कुछ साल पहले खबर आई थी कि मंगलुरु के किसान गणपति भट्ट ने नारियल और सुपारी के पेड़ों पर चढ़ने वाली बाइक बनाने में सफलता प्राप्त की है. इसी तरह द्वारिका प्रसाद चौरसिया नाम के एक युवक ने पानी पर चलने के लिए जूते बनाए हैं. इन दोनों आविष्कारों को ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ ने मान्यता भी दी है.
इस प्रतिष्ठान के प्रोफेसर अनिल गुप्ता और उनकी टीम देश में मौजूद ऐसे लोगों को खोज रहे हैं, जो कम मूल्य के ज्यादा उपयोगी उपकरण बनाने में दक्ष हैं. इस अनूठी खोज यात्रा के जरिये यह टीम देश भर में 25 हजार ऐसे आविष्कार खोज चुकी है, जो गरीब लोगों की मदद के लिए बनाए गए हैं.
7 ऐसे कम पढ़े-लिखे भारतीय लोगों के आविष्कारों को फोर्ब्स पत्रिका में मिली है जगह
इसके पहले फोर्ब्स पत्रिका भी ऐसे 7 भारतीयों की सूची जारी कर चुकी है, जिन्होंने ग्रामीण पृष्ठभूमि और मामूली पढ़े-लिखे होने के बावजूद ऐसी नवाचारी तकनीकें ईजाद की हैं, जो समूचे देश में लोगों के जीवन में आर्थिक स्तर पर क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं.
लेकिन डिग्री को ज्ञान का आधार मानने वाली हमारी सरकार नौकरशाही की अब तक ऐसी जकड़बंदी में रही है कि वह इन अनूठी खोजों को आविष्कार ही नहीं मानती, क्योंकि इन लोगों ने अकादमिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है.
बिल गेट्स की कहानी हमें क्या सिखाती है
माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के मालिक और दुनिया के प्रमुख अमीर बिल गेट्स गणित में बेहद कमजोर थे. इस विषय में दक्षता हासिल करने की बजाय वे गैरॉज में अकेले बैठे रहकर कुछ नया सोचा करते थे. तब उनके पास कम्प्यूटर नहीं था, लेकिन विलक्षण सोच थी, जिसने कम्प्यूटर की कृत्रिम बुद्धि के रूप में माइक्रो सॉफ्टवेयर का आविष्कार किया.
यदि बिल गणित में उच्च शिक्षा हासिल करने में अपनी मेधा को खपा देते तो सॉफ्टवेयर की कल्पना मुश्किल थी. मदन मोहन मालवीय ने जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय को स्थापित किया तब उन्होंने विषय विशेषज्ञों को ही संस्थान का प्राध्यापक और रीडर बनाया था.
योगयता के आधार पर मिलती है जगह
रामचंद्र शुक्ल (इंटर), श्याम सुंदर दास (बीए) अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध (मिडिल) थे, लेकिन इनकी योगयता के आधार पर इन्हें विभाग प्रमुख बनाया गया. इसी तरह स्नातक नहीं होने के बावजूद देवेंद्र सत्यार्थी को प्रकाशन विभाग की पत्रिका ‘आजकल’ का संपादक बनाया गया था.
प्रसिद्ध लेखक आर.के. नारायण दसवीं कक्षा में अंग्रेजी में अनुत्तीर्ण हो गए थे, लेकिन कालांतर में यही आर.के. नारायण अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक बने. डॉ. राधाकृष्णन ने कहा है कि नौकरियों में उपाधि को महत्व नहीं देकर विषय की परीक्षा लेनी चाहिए.
कम पढ़े-लिखे लोग ही काफी तरक्की किए है
यदि कोई व्यक्ति विषय में पारंगत है तो उसे नौकरी में लेना चाहिए. लेकिन नौकरशाही ने इन विद्धानों के कथनों और प्रयोगों को नकार मैकाले की डिग्री आधारित पद्धति को आजादी के बाद भी बनाए रखा.
जाहिर है, संकल्प के धनी व परिश्रमी लोग औपचारिक शिक्षा के बिना भी अपनी योग्यता साबित कर सकते हैं. उपाधि पढ़ाई-लिखाई निर्धारित संकायों का प्रमाण जरूर होती है, किंतु वह व्यक्ति की समग्र प्रतिभा और बहुआयामी योग्यता का पैमाना नहीं हो सकती.