Uddhav-Raj Thackeray: संकट के दौर से गुजरती राजनीति में उद्धव और राज ठाकरे एकजुट होने के लिए तैयार!
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 21, 2025 05:15 IST2025-04-21T05:15:16+5:302025-04-21T05:15:16+5:30
Uddhav Thackeray-Raj Thackeray: शिवसेना ठाकरे गुट के पास लगभग 15 विधायक ही बचे, जो वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 20 हो गए.

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Uddhav Thackeray-Raj Thackeray: संकट के दौर से गुजरती अपनी राजनीति में शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) एकजुट होने के लिए तैयार हो चले हैं. हालांकि इस पहल का शिवसेना ठाकरे गुट के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है, लेकिन मनसे नेता संदीप देशपांडे ने उद्धव ठाकरे की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है. दरअसल वर्ष 2019 के चुनाव के बाद से ही शिवसेना मुश्किल दौर से गुजर रही है. वह जिस विचारधारा और व्यवहार के लिए पहचानी जाती थी, उसे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ गठबंधन सरकार बनाकर तिलांजलि दे दी गई है. उसके बाद पार्टी की फूट में शिवसेना ठाकरे गुट के पास लगभग 15 विधायक ही बचे, जो वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 20 हो गए.
यद्यपि स्थितियों में अधिक अंतर नहीं आया, फिर भी विधायकों के कम होने से कांग्रेस और राकांपा भी उससे छिटकने लगे. इस स्थिति में राज्य के अनेक स्थानीय निकायों के होने वाले चुनावों का मुकाबला करना आसान नहीं है. संभव है कि कांग्रेस और राकांपा का शरद पवार गुट अनेक स्थानों पर अपनी क्षमता अनुसार चुनाव लड़ें. इस स्थिति में स्वाभाविक गठबंधन की तलाश की जा सकती है.
इस खोज में कोई पुराना साथी मिल जाए तो और भी अच्छा हो सकता है. इसीलिए उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के शब्दों को बड़ी आसानी के साथ पकड़ कर अपना उत्तर भी दे दिया है. वहीं दूसरी ओर राज ठाकरे पार्टी चलाते हुए कई उतार-चढ़ाव देख चुके हैं. वह अप्रत्यक्ष गठबंधन और प्रत्यक्ष विरोध दोनों कर चुके हैं. उनकी सभी भूमिकाओं का परिणाम सामने है.
अब अंतिम उपाय पुराने साथीदार से हाथ मिलाना हो सकता है. आश्चर्यजनक यह है कि एक तरफ राज ठाकरे राज्य के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मिलते हैं, तो दूसरी ओर उद्धव ठाकरे की ओर हाथ बढ़ाते हैं. इसी बीच उद्धव ठाकरे के सुपुत्र आदित्य ठाकरे राज ठाकरे के बारे में यह कहने से नहीं चूकते कि उनकी शिंदे से मुलाकात की वजह मुंबई महानगर पालिका चुनाव थी, जिसके बाद हिंदी का मुद्दा उछाल कर मनसे के अरमानों को हवा दी गई तथा दूसरी ओर बिहार चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की इच्छा पूरी की गई.
स्पष्ट है कि एक साक्षात्कार और एक सार्वजनिक कार्यक्रम सालों का वैमनस्य दूर नहीं कर सकता है. चाहे राज ठाकरे महाराष्ट्र और मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए अपने झगड़े और विवाद किनारे रखने की बात कहें या महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दलों के मराठी लोगों से एक साथ एक पार्टी बनाने की बात करें.
दूसरी ओर उद्धव ठाकरे पहले समर्थन करना, फिर विरोध करना और बाद में समझौता करना, यह काम नहीं चलेगा जैसी चिंताओं को व्यक्त कर महाराष्ट्र के हितों के बीच आने वाले किसी भी व्यक्ति का न स्वागत, न साथ बैठने की शर्त रखें. कुल जमा दोनों को मालूम है कि पुराना दौर लौटना संभव नहीं है. मगर संकट में कुछ समझौतों से स्थितियां सुधर जाएं तो बुराई नहीं है. इसलिए अच्छा सोचना बुरा नहीं है.