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लोकपाल गठन पर टालमटोल की कोशिश

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 8, 2018 16:01 IST

2014 में भाजपा गठजोड़ सरकार के प्रचंड जनादेश से सत्ता में आने के बाद ये नौबत आई।

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-शशिधर खानबहुप्रचारित और बहुआंदोलित लोकपाल गठन अब सरकार या विपक्ष के लिए कोई मुद्दा नहीं रहा। सत्तारूढ़ दल समेत किसी भी पार्टी को इस चर्चा में दिलचस्पी नहीं है कि लोकपाल एक्ट बनने के चार साल बीत जाने के बावजूद लोकपाल गठन किन कारणों से कहां अटका है। केंद्र की भाजपा गठजोड़ सरकार के लिए मुश्किलें ये हैं कि लोकपाल गठन पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार का जवाब देने में आए दिन कोई-न-कोई ऐसी समस्या बतानी पड़ती है, जिसका समाधान प्रस्तुत करना संभव न हो।

दरअसल लोकपाल एक्ट पास होने के बाद ही ठंडे बस्ते में चला गया। 2014 में भाजपा गठजोड़ सरकार के प्रचंड जनादेश से सत्ता में आने के बाद ये नौबत आई। मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाले कांग्रेस गठजोड़ शासन के 10 साल के कार्यकाल के दौरान लोकपाल आंदोलन लगातार चला और सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा बना रहा। 2013 में आखिरकार संसद में लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट पारित हुआ। एक जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति ने मंजूरी दी और 16 जनवरी को लोकपाल एक्ट लागू हो गया। मई, 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, भाजपा गठजोड़ की सरकार बनी और उसी के बाद   लोकपाल ठंडे बस्ते के अंदर डाल दिया गया। 

एक गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी। अब सुप्रीम कोर्ट के चलते बस्ता गर्म होता रहता है, लेकिन लोकपाल गठन प्रक्रिया बस्ते में ही है। अब यह चर्चा पहले की तरह जनता के बीच नहीं पहुंचती। सरकार को गठन में कोई रुचि नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार लोकपाल गठन के रास्ते में आ रही ‘अड़चनें’ बताकर सुप्रीम कोर्ट की नोटिसों का जवाब देने की जिम्मेदारी मात्र निभा रही है।

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लोकपाल गठन के लटके मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट जज रंजन गोगोई और जस्टिस आर. भानुमति की पीठ ने इस बार कड़ा रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 17 जुलाई से पहले सरकार को यह स्पष्ट करने को कहा है कि लोकपाल गठन के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाने हैं और निश्चित समय-सीमा भी बतानी है। यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट आदेश की अवमानना पर चल रही है और उसमें भी केंद्र सरकार ‘टालो, पल्ला झाड़ो’ नीति से काम चलाना चाहती है। 17 जुलाई को सरकार को अपना पक्ष रखना है मगर उसके पहले ही सुप्रीम कोर्ट को सारी जानकारी देनी है। सरकार के सामने अब समस्या है ‘माकूल’ जवाब की।

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