अफवाहों के चलते बढ़ती हिंसा
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 8, 2018 10:16 AM2018-07-08T10:16:54+5:302018-07-08T10:16:54+5:30
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-वरुण कपूर
इंटरनेट ने दुनिया भर में नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने में काफी योगदान दिया है। लेकिन फायदे के साथ-साथ समस्याएं भी आती हैं। यह कॉलम इसी तरह के एक मुद्दे को समर्पित है, जो न सिर्फ सामाजिक शांति के लिए खतरा बन रहा है, बल्कि कई निदरेष नागरिकों की जान भी ले चुका है। बेशक मैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की बात कर रहा हूं, खासकर व्हॉट्सएप की, जो झूठी अफवाहें फैलाने का माध्यम बन रहा है। इनमें से कुछ अफवाहें हानिरहित भी हो सकती हैं, लेकिन कुछ बहुत घातक होती हैं।
भारत में चार लोगों में से एक के पास स्मार्टफोन है। लेकिन 1.3 अरब की आबादी वाले देश में 30 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन होना एक बहुत बड़ा आंकड़ा है। फरवरी 2017 में जारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में स्मार्टफोन रखने वाले 20 करोड़ लोग टेक्स्टिंग, वॉइस मैसेजिंग और वीडियो कॉलिंग के लिए व्हॉट्सएप की सेवाओं का उपयोग करते हैं। लेकिन गलतफहमी और अफवाहें फैलाने के लिए इस मंच का उपयोग बढ़ रहा है और देश में इसके घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
हाल के दिनों के अनुभव दिखाते हैं कि धार्मिक आधार पर घृणा फैलाने और किसी समुदायविशेष को नुकसान पहुंचाने के लिए इस मंच का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। बहुत ही कम समय में बहुत बड़ी संख्या में लोगों तक संदेश पहुंच रहे हैं (जिसे वायरल होना कहा जाता है)। और इस तरह के उपकरणों या सेवाओं का पहली बार उपयोग करने वालों के प्रोफाइल का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हुआ है कि उन्होंने व्हॉट्सएप पर जो कुछ भी पढ़ा, देखा या सुना था उस पर विश्वास कर लिया। एक बार विश्वास कर लेने के बाद वे वैसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे जैसा कि उन्हें राजनीतिक या धार्मिक रूप से उत्प्रेरित करने वाले चाहते थे।
लेकिन आजकल इस तरह की अफवाहों का अंजाम बहुत ही भयानक घटनाओं के रूप में हो रहा है। लोगों में उन्माद पैदा करने वाली अफवाहें फैलाने का तरीका बहुत सरल है। जैसे, कह दिया जाए कि बच्चा चुराने वाली टोली क्षेत्र में सक्रिय है और वे बच्चों को गायब कर रहे हैं! बच्चों की सुरक्षा मनुष्य की प्रमुख प्रवृत्तियों में से एक है और उन्हें खतरा पैदा होने की बात सुनकर सामान्य इंसान की प्रतिक्रिया अक्सर क्रूरता की हद तक पहुंच जाती है। यही कारण है कि कई निदरेष लोगों की हत्या हो रही है।
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आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले सिर्फ एक साल में देश के दस राज्यों में 31 लोगों की जान सिर्फ इसलिए गई है क्योंकि यह अफवाह फैला दी गई थी कि वे बच्चा चोर गिरोह के सदस्य थे। इस सभी घटनाओं में समानता यह है कि इन दुर्भावनापूर्ण अफवाहों को फैलाने वाला माध्यम व्हाट्सएप था। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित तमिलनाडु रहा है जहां कई निदरेष नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। असम के करबी आंगलोंग में बच्चा चोरी की अफवाह में दो बाहरी लोगों को मार डाला गया। त्रिपुरा में तीन लोगों की हत्या की गई और जब जागरूकता फैलाने के लिए राज्य के संस्कृति विभाग ने एक व्यक्ति को भेजा तो उसकी भी ऐसी ही अफवाह के चलते हत्या कर दी गई। महाराष्ट्र के धुलिया में पांच लोगों को व्हाट्सएप में फैली ऐसी ही अफवाह के चलते मार डाला गया। इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद भी अफवाहें थमी नहीं हैं और देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी वारदातों की कई खबरें सामने आ रही हैं।
इसका समाधान सभी कमजोर क्षेत्रों में पहले से पुलिस व्यवस्था करने में निहित है। ऐसी अफवाहों की जानकारी मिलते ही पुलिस को तत्काल कदम उठाना चाहिए और दोषियों को पकड़ने तथा नागरिकों में उन्माद फैलने से रोकना चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में व्हॉट्सएप समूहों की उचित निगरानी भी पुलिस द्वारा की जानी चाहिए। इसके अलावा सामान्य नागरिकों को व्हॉट्सएप सामग्री की सत्यता के प्रति जागरूक करना भी जरूरी है। उन्हें जानना चाहिए कि एक शोध से पता चला है कि व्हॉट्सएप पर 70 प्रतिशत सामग्री झूठी है। इसलिए उन्हें ऐसी सामग्री पर अनावश्यक प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए और कम से कम हिंसक तो नहीं होना चाहिए।