ब्लॉग: प्रजातियों के विलुप्त होने से मंडराता खतरा, मनुष्यों के अस्तित्व के लिए ये शुभ संकेत नहीं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 27, 2022 05:46 PM2022-12-27T17:46:07+5:302022-12-27T17:46:38+5:30

धरती पर बदलाव इतनी तेजी से हो रहे हैं कि दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. यह एक ऐसी भयावह चीज है जो पिछले एक करोड़ साल में नहीं हुई है.

Threat of extinction of species not a good sign for existence of humans | ब्लॉग: प्रजातियों के विलुप्त होने से मंडराता खतरा, मनुष्यों के अस्तित्व के लिए ये शुभ संकेत नहीं

प्रजातियों के विलुप्त होने से मंडराता खतरा (प्रतीकात्मक तस्वीर)

धरती से जिस तेजी से जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, वह बेहद चिंताजनक है क्योंकि उनका खत्म होना हम मनुष्यों के अस्तित्व के लिए भी शुभ संकेत नहीं है. दरअसल इको सिस्टम में कोई भी कड़ी टूटती है तो पूरी श्रृंखला पर उसका असर पड़ता है और हम मनुष्य भी उसी श्रृंखला का हिस्सा हैं. 

पिछले दो सौ सालों में पेड़-पौधों की 800 प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं. जबकि वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार वर्ष 1500 से अब तक जानवरों की 881 प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं. लेकिन अब जो होने की आशंका जताई जा रही है वह बेहद भयानक है. 

कहा जा रहा है कि धरती पर वर्तमान में बदलाव इतनी तेजी से हो रहे हैं कि दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. यह एक ऐसी भयावह चीज है जो पिछले एक करोड़ साल में नहीं हुई है. इस धरती पर किसी भी जीव को विकसित होने में करोड़ों-अरबों साल लगते हैं और वह अपने पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के साथ गुंथा होता है. सिर्फ एक प्रजाति के विलुप्त होने से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र हिल जाता है. 

पिछले कुछ दशकों में पर्यावरण किस तेजी से अस्थिर और तबाह हुआ है, वह हम देख ही रहे हैं. ऐसे में जब लाखों प्रजातियां विलुप्त होंगी तो उससे मचने वाली भयानक तबाही की शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती. प्रत्येक जीव का पारिस्थितिकी तंत्र में कितना अहम स्थान है, इसे चीन के ‘गौरैया सफाया अभियान’ से समझा जा सकता है. 

1958 में चीन के सर्वोच्च नेता माओ ने चार जीवों को मारने का अभियान शुरू किया था- मक्खी, मच्छर, चूहे और गौरैया. इसमें से गौरैया को मारने का अभियान उन्हें बहुत महंगा पड़ा था. उनका कहना था कि गौरैया खेतों में अनाज और फल खा जाती है, इसलिए उन्होंने पूरे देशवासियों को उन्हें मारने के काम पर लगा दिया. कई गौरैया को लोगों ने गुलेल से मार गिराया. लेकिन उनका सफाया करना इतना आसान नहीं था, वे उड़ कर दूसरी जगह बैठ जाती थीं. 

इसके लिए स्कूल-कॉलेज के छात्र, सरकारी कर्मचारी-अधिकारी और पार्टी के कार्यकर्ता दिन भर बर्तन, पतीले बजाते थे ताकि गौरैया कहीं बैठने न पाएं और भूख-प्यास व थकान से मर जाएं. बहुत सारी गौरैया का इस तरह से सफाया कर दिया गया था. लेकिन इसके बाद जो हुआ उसकी वहां किसी ने कल्पना नहीं की थी. 

गौरैया जिन छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़ों, टिड्डों को खा जाती थीं, वे बड़े होकर फसल को नुकसान पहुंचाने लगे. टिड्डियों की फौज ने तो पूरी की पूरी फसल को चट कर डाला और चीन में भयावह अकाल पड़ गया. आखिर में वहां सोवियत संघ से ढाई लाख गौरैयों की खेप मंगवानी पड़ी थी. 

इस एक उदाहरण से ही समझा जा सकता है कि वर्तमान में समूची मानव जाति के सामने कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है. सवाल यह है कि क्या हम सचमुच खतरे की पूरी भयावहता को समझते हुए उससे निपटने के लिए कदम उठा रहे हैं?

Web Title: Threat of extinction of species not a good sign for existence of humans

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