शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में आएगा सुधार !
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 22, 2025 07:08 IST2025-08-22T07:08:23+5:302025-08-22T07:08:29+5:30
मुझे याद नहीं पड़ता कि सरसंघचालक ने इससे पहले इन दो प्रमुख क्षेत्रों के बारे में ऐसी तथ्यात्मक टिप्पणियां की हों.

शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में आएगा सुधार !
अभिलाष खांडेकर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत द्वारा हाल ही में दिए गए इस बयान से शायद कोई भी असहमत नहीं हो सकता कि भारत में शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई हैं. हालांकि इस पर पहले ही बात होनी चाहिए थी, लेकिन डॉ. भागवत द्वारा उठाया गया मुद्दा त्वरित ध्यान देने योग्य है, इसलिए महत्वपूर्ण टिप्पणियों के लिए मैं उनका तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूं, जिनसे देश में अपेक्षित बदलाव आएंगे.
इंदौर में एक अस्पताल के उद्घाटन के दौरान व्यक्त की गई उनकी बेबाक राय कई मायनों में महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, यह दुनिया के सबसे बड़े ‘सांस्कृतिक’ संगठन के शताब्दी वर्ष के दौरान आई है. मुझे याद नहीं पड़ता कि सरसंघचालक ने इससे पहले इन दो प्रमुख क्षेत्रों के बारे में ऐसी तथ्यात्मक टिप्पणियां की हों. दूसरा, पूरे भारत में निजी शिक्षा संस्थानों की बढ़ती संख्या को रोक पाना नामुमकिन सा लगता है और इसने गरीबों की तो बात ही छोड़िए, मध्यम वर्ग के लिए भी शिक्षा को बेहद महंगा बना दिया है, इसलिए सरकारी स्तर पर इसमें सुधार की तुरंत आवश्यकता है.
तीसरा, निजी क्षेत्र से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण पुराने सरकारी स्कूल और कॉलेज धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से बाहर होते जा रहे हैं. इसलिए शिक्षा के निजीकरण में छात्रों से ली जा रही महंगी फीस पर कुछ प्रभावी अंकुश लगाने होंगे.
एक समय था जब भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को व्यावसायिक अवसरों के बजाय किसी भी सरकार का अनिवार्य कर्तव्य माना जाता था. आज, बिना किसी शैक्षणिक पृष्ठभूमि के लोग भी प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों के कुलपति, कुलाधिपति, डीन और निदेशक जैसे प्रमुख पदों पर बैठे हैं. शिक्षा के निजीकरण ने छात्रों और शिक्षकों को (नौकरी के रूप में) बेहतर अवसर प्रदान किए होंगे, लेकिन इस क्षेत्र का सारा संचालन गड़बड़ है.
मध्यप्रदेश में प्रति वर्ष 5% महाविद्यालय फीस बढ़ा सकने का नियम था लेकिन फी नियामक आयोग ने एक वर्ष में 62% फीस बढ़ा दी, यानी चार वर्ष में 250% तक निजी विश्वविद्यालय की फीस बढ़ाई गई. अब भागवत जी भी करें तो क्या करें? इसके अलावा, अनेक विदेशी विश्वविद्यालय भारत में अपनी शाखाए खोल रहे हैं और भारतीय संस्थानों से बेहतर होने का दावा कर रहे हैं.
रियल एस्टेट डेवलपर्स अब अस्पताल श्रृंखलाओं के मालिक बन गए हैं जो विभिन्न अनैतिक तरीकों से मरीजों को निचोड़ रहे हैं. उनके लिए चिकित्सा सेवा गौण लगती है, पैसा कमाना उनका पहला और सबसे बड़ा उद्देश्य दिखता है.
बड़े-बड़े राजनेता और रसूखदार नौकरशाह सरकारी अस्पतालों में सेवाओं की बुरी गुणवत्ता और अन्य स्थितियों के कारण शायद ही कभी इलाज कराने जाते हैं. निजी अस्पताल बीमा वाले मरीजों पर नजर रख रहे हैं और डॉक्टर व अन्य लोग उन्हें मोटी कमाई के लिए निशाना बना रहे हैं. यह सब बंद होना चाहिए.
उत्तर प्रदेश में 1952 में शुरू हुआ संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर सस्ती शिक्षा प्रदान करने का एक सराहनीय प्रयास था. लेकिन इसमें ज्यादातर बच्चे कम आय वर्ग के होते हैं. वे उन निजी विद्यालयों से प्रतिस्पर्धा कम ही कर पाते हैं जो भारी फीस लेते हैं और जिनके पास विशाल बुनियादी ढांचा होता है.
अगर डॉ. भागवत की बात को मानना है तो सत्ता में बैठे नौकरशाहों और राजनेताओं को सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज करवाना चाहिए. उनके बच्चों को भी सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाना चाहिए, जो निजी संस्थानों की तुलना में सस्ते हैं. इससे शायद शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा. लेकिन क्या ऐसा होगा?
संघ की स्थापना 1925 में कुछ देशभक्तों द्वारा की गई थी, जिनमें डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. मुंजे भी शामिल थे, जो उस समय हिंदू धर्म और जीवन पद्धति की रक्षा करना चाहते थे. अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे और देश विश्वयुद्ध के तुरंत बाद इतिहास के एक अराजक दौर से गुजर रहा था.
बहरहाल, डॉ. भागवत ने जो गंभीर चिंता जताई है, वह काफी प्रासंगिक है और इसे प्राथमिकता के आधार पर संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसे कई अन्य मुद्दे और क्षेत्र हैं जिनमें संघ सिर्फ चिंता जताने के अलावा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. शताब्दी वर्ष इस बात पर आत्मचिंतन करने का सही समय है कि संगठन ने समाज को सही दिशा दिखाने के लिए क्या किया है. संघ का समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव है ऐसा माना जाता है, इसलिए मैं यह लिख रहा हूं.
शिक्षा और स्वास्थ्य की बात करें तो चूंकि संघ प्रमुख ने इस गंभीर समस्या की ओर इशारा किया है, कम से कम भाजपा सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सस्ती शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा की दिशा में ठोस काम करें. दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा आदि की सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोनों क्षेत्रों में लूट बंद हो जिस पर भागवत चिंतित दिखते हैं. मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना जरूरी है या नए कानून बनाए जाएं.
संघ को भी अपनी सरकारों के साथ इन मुद्दों को आगे बढ़ाना चाहिए, छोड़ना नहीं चाहिए. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वास्थ्य और शिक्षा वास्तव में उस ‘विकसित भारत’ के लिए महत्वपूर्ण घटक हैं जिसकी परिकल्पना इसके शीर्ष स्वयंसेवकों में से एक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 2047 के लिए कर रहे हैं.
कथित आंतरिक मतभेदों के बावजूद भाजपा सरकारों को अपने अधिक सुसंस्कृत मातृ संगठन - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - के प्रति सकारात्मक होकर शिक्षा व स्वास्थ्य में सुधार लाने हेतु काम करना होगा.