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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बिना हृदय परिवर्तन के न हो धर्म परिवर्तन

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: November 16, 2022 12:42 IST

वास्तव में धर्मांतरण-विरोधी कानून तमिलनाडु, ओडिशा और मप्र की सरकारों ने बनाए हैं लेकिन इनमें और अन्य प्रदेशों में भी ढेरों संगठन धर्म का नहीं, राजनीति का रास्ता पकड़े हुए हैं।

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ठळक मुद्देगांधीजी ने 1935 में कहा था कि 'अगर मैं कानून बना सकूं तो मैं धर्मांतरण पर निश्चित ही रोक लगा दूंगा।'केंद्र सरकार जितनी सख्ती से और जल्दी रोक लगाए उतना अच्छा है।भारत जैसे प्राचीन राष्ट्रों में ज्यादातर धर्मांतरण डंडे या थैली या कुर्सी के जोर पर हुआ है, जैसा कि आजकल राजनीतिक दल-बदल होता है। 

भारत में कोई स्वेच्छा से अपना धर्म बदलना चाहे तो यह उसका मौलिक अधिकार है लेकिन मैं पूछता हूं कि ऐसे कितने लोगों को आपने कोई नया धर्म अपनाते हुए देखा है, जिन्होंने उस धर्म के मर्म को समझा है और उसे शुद्ध भाव से स्वीकार किया है? दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत लोग तो इसीलिए किसी पंथ या धर्म के अनुयायी बन जाते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उसे मानते थे। 

जो समूह में धर्म-परिवर्तन होता है, उसके लिए या तो विशेष परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं या फिर धर्म-परिवर्तन का कारण होता है- लालच, भय, जबर्दस्ती, ठगी, मजबूरी। भारत जैसे प्राचीन राष्ट्रों में ज्यादातर धर्मांतरण डंडे या थैली या कुर्सी के जोर पर हुआ है, जैसा कि आजकल राजनीतिक दल-बदल होता है। 

इसी के विरुद्ध हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि वह इस अनैतिक धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या उपाय कर रही है? वास्तव में धर्मांतरण-विरोधी कानून तमिलनाडु, ओडिशा और मप्र की सरकारों ने बनाए हैं लेकिन इनमें और अन्य प्रदेशों में भी ढेरों संगठन धर्म का नहीं, राजनीति का रास्ता पकड़े हुए हैं। इसीलिए गांधीजी ने 1935 में कहा था कि 'अगर मैं कानून बना सकूं तो मैं धर्मांतरण पर निश्चित ही रोक लगा दूंगा।' 

यदि कोई अपने धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करना चाहे तो उसको उसकी पूरी छूट होनी चाहिए, जैसे कि 100 साल पहले तक भारत में विद्वानों के बीच खुलकर शास्त्रार्थ हुआ करते थे लेकिन आजकल धर्म की चर्चा सिर्फ बरगलाने के उद्देश्य से होती है। यह धर्म की सेवा नहीं है। इस पर केंद्र सरकार जितनी सख्ती से और जल्दी रोक लगाए उतना अच्छा है। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हमारे नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी भी तरह का प्रतिबंध उचित होगा लेकिन धर्मांतरण की स्वतंत्रता के नाम पर अधर्म की गुलामी को क्यों चलने दिया जाए?

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