भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: विश्व व्यापार पर पुनर्विचार हो

By भरत झुनझुनवाला | Published: April 16, 2020 02:37 PM2020-04-16T14:37:24+5:302020-04-16T14:37:24+5:30

चीन और भारत के इस संकट से बचे रहने का दूसरा कारण इन दोनों देशों की विश्व व्यापार पर कम निर्भरता है। आम तौर पर समझा जाता है कि चीन विश्व अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन चीन के जुड़ाव में परावलंबिता नहीं है।

The whole world should rethink about world trade | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: विश्व व्यापार पर पुनर्विचार हो

विश्व व्यापार पर पुनर्विचार हो! (फाइल फोटो)

Highlightsचीन पर विश्वास जताया है कि चीन इस संकट का सामना कर लेगा वहीं भारत की स्थिति पर उन्होंने प्रश्नचिह्न् लगाया है।विषय को समझने के लिए पहले यह देखना होगा कि चीन और भारत को अन्य देशों से अकाउंट ने अलग क्यों किया। 

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशंस कांफ्रेंस ऑन ट्रेड ऑन डेवलपमेंट यानी अकाउंट द्वारा विश्व की अर्थव्यवस्था पर नजर रखी जाती है। इस संस्था ने हाल में कहा है कि कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण चल रहे वैश्विक आर्थिक संकट से चीन निकल जाएगा और भारत के भी बचने की संभावना है।

जहां उन्होंने चीन पर विश्वास जताया है कि चीन इस संकट का सामना कर लेगा वहीं भारत की स्थिति पर उन्होंने प्रश्नचिह्न् लगाया है। विषय को समझने के लिए पहले यह देखना होगा कि चीन और भारत को अन्य देशों से अकाउंट ने अलग क्यों किया। 

यहां दिए कारण मेरी समझ से हैं, अकाउंट ने नहीं बताए हैं। दोनों देशों की पहली विशेष परिस्थिति यह है कि वृद्धों का अनुपात कम है। 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति भारत की जनसंख्या के मात्न 6 प्रतिशत हैं जबकि चीन के 11 प्रतिशत। फ्रांस, इटली, स्पेन, इंग्लैंड और अमेरिका में इनका अनुपात 15 से 23 प्रतिशत है। कोरोना का वृद्धों पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

चीन और भारत के इस संकट से बचे रहने का दूसरा कारण इन दोनों देशों की विश्व व्यापार पर कम निर्भरता है। आम तौर पर समझा जाता है कि चीन विश्व अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन चीन के जुड़ाव में परावलंबिता नहीं है। यानी उस जुड़ाव में चीन पर दूसरे देश निर्भर हैं न कि चीन दूसरे देशों पर निर्भर है। संकट से बचे रहने का तीसरा कारण है कि भारत और चीन ये दोनों बड़े देश हैं। इनमें अलग-अलग क्षेत्नों में अलग-अलग जलवायु है और विभिन्न प्रकार के कृषि एवं उत्पादित माल अलग-अलग क्षेत्नों में बनाए जा रहे हैं। इन देशों का विश्व व्यापार से संबंध टूटता है तो ये अपनी अधिकतम जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकते हैं।

बचे रहने का चौथा कारण इन देशों की ऊंची बचत दर है। भारत द्वारा अपनी आय का 30 प्रतिशत बचत किया जाता है जबकि चीन द्वारा 47 प्रतिशत। तुलना में फ्रांस, इटली, स्पेन, इंग्लैंड और अमेरिका की बचत दर 15 से 22 प्रतिशत है। बचत दर अधिक होने का अर्थ यह हुआ कि हमारे देश के परिवारों का सुरक्षा कवच ज्यादा कारगर है।

यदि हमारे परिवारों को रोजगार नहीं मिला या विश्व व्यापार में निर्यात न होने के कारण बेरोजगार हो गए तो इनके पास तुलना में अधिक समय बिना आय के काटने की क्षमता है। तुलना में विकसित देशों ने अपने नागरिकों को ऋण लेकर खपत करने को लगातार प्रोत्साहित किया है। इसलिए अमेरिका के कई राज्यों में कोरोना संकट के आने के साथ बेरोजगारी भत्ता की मांग करने वालों की संख्या दस गुना तक बढ़ गई है। ये लोग बेसहारा हो गए हैं चूंकि इनके पास अपनी बचत नहीं है।

इस परिप्रेक्ष्य में हमें विचार करना है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था को किस तरफ ले चलें जिससे अकाउंट द्वारा इंगित की गई संभावना को हम फलीभूत कर सकें। मेरी समझ से हमें विश्व व्यापार यानी वैश्वीकरण पर मूल रूप से पुनर्विचार करना चाहिए। इतना सही है कि विश्व व्यापार से हमें सस्ता माल उपलब्ध हो जाता है जैसे चीन में बने बल्ब और खिलौने।

मगर साथ-साथ हमारे कर्मियों के रोजगार समाप्त होते हैं और विश्व व्यापार से अधिक जुड़ाव होने के कारण हमारी आर्थिक सुरक्षा कमजोर पड़ती है। अत: हमें हर क्षेत्न में खुले व्यापार को अपनाने के स्थान पर केवल जरूरी क्षेत्नों में खुले व्यापार को अपनाना चाहिए। किसी समय स्वदेशी जागरण मंच का नारा था कि हमें कम्प्यूटर चिप्स चाहिए पोटेटो चिप्स नहीं। मैं समझता हूं कि वह विचार आज भी सही है।

हमने चौतरफा हर क्षेत्न में विश्व व्यापार को अपनाकर अपनी आर्थिक सुरक्षा को कमजोर बना दिया है। हम आज तमाम ऐसी वस्तुओं के लिए विश्व व्यापार पर निर्भर हो गए हैं जिन्हें हम अपने देश में स्वयं बना सकते थे यद्यपि हमारे देश में उत्पादन लागत थोड़ी अधिक पड़ती। मूल रूप से हमें आर्थिक सुरक्षा और सस्ते माल के बीच चयन करना है। यदि हम सस्ते माल के पीछे भागेंगे तो हम हर क्षेत्न में विश्व व्यापार को अपनाएंगे और कोरोना जैसे संकट से हम नहीं निकल पाएंगे क्योंकि हमारी जरूरत कि तमाम वस्तुओं के लिए हम दुसरे देशों पर निर्भर हो जाएंगे।

विश्व व्यापार के मंद पड़ने पर ये वस्तुएं हमें नहीं मिलेंगी। जैसे मान लीजिए कि तांबे के केवल के लिए हम विश्व बाजार पर निर्भर हो गए तो हमारे देश में ये केबल उपलब्ध नहीं होंगे और बिजली का काम कमजोर पड़ जाएगा। इसलिए हमें विश्व व्यापार के फैलाव से पीछे हटना चाहिए और यथासंभव अपनी जरूरत के माल को स्वयं बनाना चाहिए। यह कुछ महंगा पड़े तो भी बर्दाश्त करना चाहिए। हमारी आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना अधिक महत्वपूर्ण है। माल कुछ महंगा होगा तो चलेगा।

Web Title: The whole world should rethink about world trade

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