शोभना जैन का ब्लॉग: समुद्री सुरक्षा की बढ़ती जरूरत और चुनौतियां 

By शोभना जैन | Published: August 13, 2021 02:37 PM2021-08-13T14:37:18+5:302021-08-13T14:55:10+5:30

दक्षिण चीन सागर के लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र पर चीन अपना संप्रभु क्षेत्र होने का दावा करता है. इसे लेकर विवाद भी रहा है और चीन से दूसरे देशों की तनातनी भी रही है.

the need and challenge to protect our oceans is a big deal for now time | शोभना जैन का ब्लॉग: समुद्री सुरक्षा की बढ़ती जरूरत और चुनौतियां 

दक्षिण चीन सागर में खड़े चीनी जहाज

Highlights दक्षिण सागर में चीन के बढ़ते प्रभुत्व के बीच पीएम की बैठक काफी अहम है बैठक के अहम पहलू सामुद्रिक सुरक्षा को बढ़ावा दिया जाए दूसरा जरूरी मुद्दा किस तरह से अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत बनाया जाए

बदलती दुनिया में समुद्री सुरक्षा की जरूरत और चुनौतियां दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं. खास तौर पर चीन जैसे देश की दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चौधराहट बढ़ रही है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वह अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस सप्ताह ‘समुद्री सुरक्षा’ जैसे अहम विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में रूस, अमेरिका सहित अन्य देशों की सक्रिय भागीदारी से पारित अध्यक्षीय वक्तव्य को ‘समुद्री सुरक्षा’ की दृष्टि से खासा अहम माना जा रहा है.

प्रस्ताव में इस बात पर बल दिया गया कि समुद्री सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सभी देश पालन करें, समुद्री सीमाओं का सम्मान करें और इस संबंध में सभी देश नियम आधारित व्यवस्था का सम्मान करें.

जाहिर है परिषद द्वारा पारित भारत का यह अध्यक्षीय वक्तव्य चीन को नागवार लगा है, जो दक्षिण चीन सागर समेत विभिन्न समुद्री क्षेत्रों पर अपना दावा जताता रहा है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है. हालांकि इस प्रस्ताव में प्रत्यक्ष रूप से चीन का नाम नहीं लिया गया, लेकिन चीन सागर क्षेत्र के जिक्र से वह तिलमिला उठा है.

चीन ने अपनी आरंभिक प्रतिक्रिया में कह भी दिया कि दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर चर्चा करने के लिए यह उचित स्थान नहीं है. दरअसल बैठक के दौरान पिछले कुछ समय से 36 के आंकड़े के संबंधों वाले अमेरिका और चीन के बीच टकराव भी दिखा. अमेरिका ने जोर देकर कहा कि वह दक्षिण चीन सागर में गैरकानूनी समुद्री दावों को आगे बढ़ाने के लिए उकसाने वाली कार्रवाई देख रहा है. इस पर बीजिंग ने जवाब दिया कि अमेरिका को इस मुद्दे पर गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करने का हक नहीं है.

वैसे यह पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी अध्यक्षता के कार्यकाल में भारत के किसी प्रधानमंत्री ने बैठक की खुद अध्यक्षता की. इस संवेदनशील मुद्दे पर पहली बार अकेले किसी एक देश ने बैठक का आयोजन किया. वियतनाम और इक्वाडोर गिनी ने पहले दो मर्तबा इस मुद्दे पर परिषद की बैठक बुलाने की कोशिश की थी लेकिन दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपनी अवांछित गतिविधियों में लगे चीन ने इन बैठकों के आयोजन में रोड़े डाले.

उल्लेखनीय है कि दक्षिण चीन सागर के लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र पर चीन अपना संप्रभु क्षेत्र होने का दावा करता है. सम्मेलन में उच्चस्तरीय वर्चुअल खुली बहस के बाद पारित भारत के अध्यक्षीय वक्तव्य में यू.एन.सी.एल.ओ.एस. जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के जरिये समुद्री गतिविधियों को संचालित और नजर रखने के साथ भारत ने सागर क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा तथा विकास की अवधारणा को अपनाने पर बल दिया जिसमें समुद्री सुरक्षा के लिए एक संपूर्ण ढांचा बनाने की बात है.

बैठक में पीएम मोदी ने वैध समुद्री व्यापार के रास्ते में आने वाली ऐसी रुकावटों को हटाने पर बल दिया जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का अंदेशा हो सकता है. दरअसल बैठक में चर्चा के दो अहम पहलू थे, किस तरह से सामुद्रिक सुरक्षा को बढ़ावा दिया जाए और दूसरा, किस तरह से अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत बनाया जाए.

गौरतलब है कि साल 2015 में भारत ने ‘सागर’ पहल की बात की थी. इसका उद्देश्य है- क्षेत्र में सभी के लिए वृद्धि और सुरक्षा. समंदर को पूरी दुनिया की साझा धरोहर बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि सभी देश निरंतर विकास की ओर अग्रसर हों लेकिन हमारी इस साझा धरोहर को आज कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. 

संयुक्त राष्ट्र के 15 देशों के इस उच्चस्तरीय निकाय की अध्यक्षता इस महीने भारत कर रहा है. यह पहला अवसर है, जब भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की है. बरसों पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता विजयलक्ष्मी पंडित ने की थी, पर वे प्रधानमंत्नी नहीं थीं. आठवीं बार भारत को सुरक्षा परिषद में यह अवसर मिला है जबकि वह अस्थायी सदस्य के रूप में या अध्यक्ष के तौर पर परिषद में आया है. यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन, अमेरिका विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, ब्रिटिश रक्षा मंत्नी बेन वॉलेस और अनेक राष्ट्राध्यक्षों/ प्रतिनिधियों ने सुरक्षा परिषद की इस वर्चुअल खुली चर्चा में हिस्सा लिया.

इन नेताओं ने समुद्री सुरक्षा पर अपनी चिंता जताते हुए समुद्री सीमाओं का सम्मान करने तथा इस संबंध में नियमों पर आधारित व्यवस्था का पालन और सम्मान करने का आह्वान किया. जाहिर है कि इस उच्चस्तरीय प्रतिनिधित्व का संकेत यही है कि बड़े राष्ट्र इस मसले की गंभीरता का संज्ञान ले रहे हैं. वैसे चीन का रवैया हमेशा की तरह था. इसीलिए उसने अपने किसी वजनी शीर्ष प्रतिनिधि की बजाय संयुक्त राष्ट्र में नियुक्त अपने उपस्थायी प्रतिनिधि दे बिंग से देश का प्रतिनिधित्व कराया.

इस वर्चुअल बैठक को समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से खासा अहम माना जा रहा है. बैठक में चीन को छोड़ कर परिषद के सभी सदस्यों ने यू.एन.सी.एल.ओ.एस. जैसे अन्य समुद्री सुरक्षा से जुड़े अंतरराष्ट्रीय नियमों/कानूनों का सम्मान करने और इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय सहयोग से काम करने पर बल दिया.

भारत ने ‘सागर’ की अवधारणा रखते हुए कहा कि ‘भारत प्रशांत क्षेत्र’ में भारत के दृष्टिकोण की स्वीकार्यता बढ़ रही है. भारत और रूस के बीच समुद्री सुरक्षा को ले कर समान दृष्टिकोण खासे अहम माने जा रहे हैं. दस्तावेज में आह्वान किया गया कि समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़े, चाहे वह पायरेसी को रोकना हो, समुद्री डकैतियों को रोकना, आतंकी गतिविधियों या व्यापार में अड़चनें डालने जैसी गतिविधियों को रोकना हो या समुद्री मार्गो पर निर्बाध परिवहन हो. उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत की इस पहल के ठोस नतीजे देखने को मिलेंगे.

Web Title: the need and challenge to protect our oceans is a big deal for now time

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