ब्लॉग: कानून और सरकार के कामकाज की सरल हो भाषा
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: September 25, 2023 09:37 AM2023-09-25T09:37:43+5:302023-09-25T09:40:28+5:30
कई अवसरों का लाभ लेने से लोग चूक जाते हैं। यहीं मध्यस्थों को मौका मिल जाता है, जो कामकाज की रूपरेखा को बदल कर अपने ढंग से समानांतर व्यवस्था चलाने लगते हैं। इसलिए आवश्यक यही है कि कानून के साथ हर वह स्थान जो आम जनता के संपर्क में आता है, वहां सीधी-सादी भाषा में जानकारी उपलब्ध कराई जाए।
देश में यह बात मानने में किसी को कोई गुरेज नहीं है कि सरकारी कामकाज क्षेत्रीय भाषा में होना चाहिए। काफी राज्यों में यह होता भी है मगर क्या वह जटिल भाषा आम आदमी की समझ में आती है, तो बहुत सारे स्थानों पर शायद नहीं।
कारण बहुत साफ है कि क्षेत्र की भाषा हो या राजभाषा या फिर अंतर्राष्ट्रीय भाषा, वह तभी समझ में आएगी जब उसे आसान शब्दों में समझाया जाए।
यूं देखा जाए तो देश में भाषा को लेकर संवेदनशीलता बहुत अधिक है, लेकिन उससे आम आदमी को मिलने वाले लाभ को लेकर चिंता बहुत कम है। अदालत के फैसले हों या सरकारी अध्यादेश, बैंकों के नियम-कायदे हों या फिर अन्य सरकारी दस्तावेज, सभी को समझने के लिए संबंधित क्षेत्र के जानकार व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
यही वजह है कि शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर ‘काउंसिल ऑफ इंडिया अंतर्राष्ट्रीय वकील सम्मेलन- 2023’ के मंच से कानूनी भाषा को सरल बनाने और आम आदमी के लिए न्याय तक पहुंच बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया।
उन्होंने कानूनों को प्रस्तुत करने के दो तरीके, एक कानूनी पेशेवरों से परिचित भाषा और दूसरा आम आदमी की समझ में आने वाली भाषा माध्यम, में बांटते हुए कानून को प्रत्येक नागरिक के लिए सुलभ और भरोसेमंद बनाने के महत्व पर ध्यान आकर्षित किया।
प्रधानमंत्री ने भाषा के मामले में डॉक्टरों को भी जोड़कर कहा कि जिस तरह बेहतर उपचार के लिए डॉक्टर मरीज के साथ उसी भाषा में संवाद करता है, जिसे वह समझता है, इसी तरह कानूनी व्यवस्था में आम आदमी के साथ उसी तरह से संवाद होना चाहिए, जो उसे स्वामित्व की भावना और कानून की समझ का एहसास कराए।
उन्होंने कहा कि जिस भाषा में कानून लिखे जाते हैं, वह न्याय की पहुंच में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कानूनों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को सरल बनाने के समाधान खोजने के लिए सरकार की भी प्रतिबद्धता व्यक्त की साथ ही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराने की पहल के लिए सराहना की साफ है कि प्रधानमंत्री की सोच कहीं न कहीं आम आदमी की समस्या को उजागर करती है।
वह कानून तक तो है ही, लेकिन अनेक क्षेत्रों में भाषा की समस्या के चलते लोगों की परेशानी का कारण है. केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि सरकारी कामकाज में कठिन स्थानीय भाषा के चलते नासमझी होती ही है। अनेक सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है।
कई अवसरों का लाभ लेने से लोग चूक जाते हैं। यहीं मध्यस्थों को मौका मिल जाता है, जो कामकाज की रूपरेखा को बदल कर अपने ढंग से समानांतर व्यवस्था चलाने लगते हैं। इसलिए आवश्यक यही है कि कानून के साथ हर वह स्थान जो आम जनता के संपर्क में आता है, वहां सीधी-सादी भाषा में जानकारी उपलब्ध कराई जाए। तभी सरकार-प्रशासन-न्याय का लाभ हर व्यक्ति को मिल पाएगा। अन्यथा जनता के हित की बात जनता को ही समझ में नहीं आएगी।