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योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग: स्वास्थ्य क्षेत्र की बढ़ रही हैं चुनौतियां

By योगेश कुमार गोयल | Updated: April 8, 2022 15:32 IST

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्न में प्रशिक्षित लोगों की बहुत कमी है। देश में सवा अरब से अधिक आबादी के लिए महज 26 हजार सरकारी अस्पताल हैं अर्थात् 47 हजार लोगों पर सिर्फ एक सरकारी अस्पताल है। देशभर के सरकारी अस्पतालों में इतनी बड़ी आबादी के लिए करीब सा

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ठळक मुद्देकुछ राज्यों में तो स्थिति यह है कि 40 से 70 हजार ग्रामीण आबादी पर केवल एक सरकारी डॉक्टर है। भारतीय चिकित्सा परिषद के अनुसार देश में 50 फीसदी से भी ज्यादा झोलाझाप डॉक्टर हैं।

लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को सुधारने तथा स्वास्थ्य को लेकर प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को वैश्विक स्तर पर ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के बैनर तले मनाए जाने वाले इस दिवस की शुरुआत 7 अप्रैल 1950 को हुई थी और यह दिवस मनाने के लिए इसी तारीख का निर्धारण डब्ल्यूएचओ की संस्थापना वर्षगांठ को चिन्हित करने के उद्देश्य से किया गया था। दरअसल संपूर्ण विश्व को निरोगी बनाने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ नामक वैश्विक संस्था की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को हुई थी, जिसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में है। कुल 193 देशों ने मिलकर जेनेवा में इस वैश्विक संस्था की नींव रखी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य यही है कि दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा हो, बीमार होने पर उसे बेहतर इलाज की पर्याप्त सुविधा मिल सके। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्न में प्रशिक्षित लोगों की बहुत कमी है। देश में सवा अरब से अधिक आबादी के लिए महज 26 हजार सरकारी अस्पताल हैं अर्थात् 47 हजार लोगों पर सिर्फ एक सरकारी अस्पताल है। देशभर के सरकारी अस्पतालों में इतनी बड़ी आबादी के लिए करीब सात लाख बिस्तर हैं। सरकारी अस्पतालों में करीब 1.17 लाख डॉक्टर हैं अर्थात् दस हजार से अधिक लोगों पर महज एक सरकारी डॉक्टर ही उपलब्ध है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमानुसार प्रति एक हजार मरीज पर एक डॉक्टर होना चाहिए। 

कुछ राज्यों में तो स्थिति यह है कि 40 से 70 हजार ग्रामीण आबादी पर केवल एक सरकारी डॉक्टर है। भारतीय चिकित्सा परिषद के अनुसार देश में 50 फीसदी से भी ज्यादा झोलाझाप डॉक्टर हैं। परिषद का मानना है कि शहरी क्षेत्नों में जहां योग्य चिकित्सकों की संख्या 58 फीसदी है, वहीं ग्रामीण क्षेत्नों में यह 19 प्रतिशत से भी कम है। भारत में चिंताजनक तथ्य यह भी है कि देश में करीब तीस फीसदी लोग ही ऐसे हैं, जो बेहतर साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं। जबकि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव-स्वास्थ्य की परिभाषा है।

 

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