पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: अफ्रीकी टिड्डों का मंडराता खतरा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 9, 2020 03:45 PM2020-01-09T15:45:25+5:302020-01-09T15:45:25+5:30
राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और गुजरात के कच्छ इलाकों में बारिश और हरियाली न के बराबर है. या तो किसी मीठे पानी के ताल यानी सर के पास कुछ पेड़ दिखेंगे या फिर यदा-कदा बबूल जैसी कंटीली झाड़ियां ही दिखती हैं.
इस साल राजस्थान के थार में अभी तक कुछ खास बारिश हुई नहीं, रेत के धारों में उतनी हरियाली भी नहीं उपजी और जुलाई महीने में ही बीकानेर के आसमान में इतना बड़ा टिड्डी दल मंडराता दिखा कि दिन में अंधेरा दिखने लगा. प्राकृतिक अंधेरा तो छंट जाता है लेकिन बीकानेर के बाद चुरू, सरदार शहर तक के आंचलिक क्षेत्रों में जिस तरह टिड्डी दल पहुंच रहे हैं, उससे वहां के किसानों की मेहनत जरूर काली होती दिख रही है.
जैसलमेर और बाड़मेर में भी कई बड़े टिड्डी दल सीमा पार से आकर डेरा जमा चुके हैं. पिछले सप्ताह बड़े-बड़े टिड्डी दल गुजरात के खेतों में भी डेरा जमा चुके हैं. इस बात की प्रबल आशंका है कि राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के तीन दर्जन जिलों में आने वाले महीनों में हरियाली का नामोनिशान तक नहीं दिखे, क्योंकि वहां अफ्रीका से पाकिस्तान के रास्ते आने वाले कुख्यात टिड्डों का हमला होने वाला है. टिड्डी दल का इतना बड़ा हमला आखिरी बार 1993 में यानी 26 साल पहले हुआ था.
राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और गुजरात के कच्छ इलाकों में बारिश और हरियाली न के बराबर है. या तो किसी मीठे पानी के ताल यानी सर के पास कुछ पेड़ दिखेंगे या फिर यदा-कदा बबूल जैसी कंटीली झाड़ियां ही दिखती हैं. इस साल आषाढ़ लगते ही दो दिन धुआंधार बारिश हुई थी जिसने रेगिस्तान में कई जगह नखलिस्तान बना दिया था. सूखी, उदास सी रहने वाली लूनी नदी लबालब है. पानी मिलने से लोग बेहद खुश हैं, लेकिन इसमें एक आशंका व भय भी छिपा हुआ है. खड़ी फसल को पलभर में चट करने के लिए मशहूर अफ्रीकी टिड्डे इस हरियाली की ओर आकर्षित हो रहे हैं और आने वाले महीनों में इनके बड़े-बड़े झुंडों का हमारे यहां आना शुरू हो जाएगा. पाकिस्तान ऐसे टिड्डी दल को देखते ही हवाई जहाज से दवा छिड़कवा देता है, ऐसे में हवा में ऊपर उड़ रहे टिड्डी दल भारत की ओर ही भागते हैं.
सोमालिया जैसे उत्तर-पूर्वी अफ्रीकी देशों से ये टिड्डे बरास्ता यमन, सऊदी अरब और पाकिस्तान भारत पहुंचते रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि ये कीट एक बार इलाके में घुस गए तो इनका प्रकोप कम से कम तीन साल जरूर रहेगा. अतीत गवाह है कि 1959 में ऐसे टिड्डों के दल ने बीकानेर की तरफ से धावा बोला था.