Tamil Nadu Delimitation Row: दक्षिणी राज्य तमिलनाडु से 2026 के परिसीमन को लेकर आरंभ हुआ विरोध अब देशव्यापी रूप लेने लगा है. संसद भवन परिसर में 20 मार्च को डीएमके सांसदों ने परिसीमन मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया और उनको अन्य कई विपक्षी दलों का साथ मिला है. दक्षिणी राज्यों की ओर से यह मांग उठ रही है कि परिसीमन 2026 की जगह 2031 में कराया जाना चाहिए. परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों में चिंताएं बाकी प्रांतों से अलग हैं. उनको लगता है केवल जनसंख्या को आधार बनाकर परिसीमन होगा तो उनकी राजनीतिक शक्तियां सीमित होंगी.
उत्तर भारत के वे प्रांत प्रभावी होंगे जो जनसंख्या में आगे हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82, 170, 330 और 332 के तहत लोकसभा, राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को प्रशासित किया जाता है. संविधान में व्यवस्था है कि हर 10 वर्ष पर जनगणना और उनसे हासिल आंकड़ों के आधार पर एक दशक में परिसीमन होगा.
1951 से लेकर 1971 के दशक में ऐसा होता रहा. 2001 में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का पुनः निर्धारण हुआ, पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की कुल संख्या अपरिवर्तित रही, क्योंकि तब भी दक्षिणी राज्यों का मुखर विरोध सामने आया था. अटलजी के प्रधानमंत्री काल में 2001 में तय किया गया कि 2026 तक सीटें नहीं बढ़ेंगी.
इस तरह देखें तो मौजूदा सीटें 1971 के आधार पर निर्धारित हैं, जब देश की आबादी केवल 54 करोड़ थी. लेकिन उसमें भी राज्य स्तर पर बहुत सी भिन्नताएं पाई गई हैं. उत्तर प्रदेश को तब भी अधिक प्रतिनिधित्व मिला था जबकि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल से लेकर हरियाणा तक को निम्न प्रतिनिधित्व मिला था.
उस दौरान परिसीमन 25 सालों के लिए रोक दिया गया तो परिकल्पना थी कि 2026 तक उत्तर भारतीय राज्य आबादी पर प्रभावी नियंत्रण कर लेंगे. लेकिन हुआ उल्टा. दक्षिणी राज्यों ने आबादी पर प्रभावी नियंत्रण किया और यहां तक कि कुछ की जनसंख्या वृद्धि दर नकारात्मक तक हो गई. पर उत्तरी राज्यों में बेलगाम आबादी वृद्धि हुई.
अब तक 2021 की जनगणना भी नहीं हो सकी है, लिहाजा परिसीमन के लिए 2011 का आधार भी बने तो भी दक्षिणी राज्यों को भारी नुकसान होगा. अभी जो मोटे आंकड़े सामने आ रहे हैं उसके हिसाब से परिसीमन होने पर मौजूदा लोकसभा की 543 सीटों में 200 का और इजाफा होगा. कुल 750 सीटों में उत्तर के हिस्से में कुल 400 सीटें हो जाएंगी,
जबकि मौजूदा दक्षिण भारत की 129 सीटों में महज 10 से 12 की वृद्धि हो सकेगी. अगर पैमाना 2026 की आबादी का आंकड़ा हो तो उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़ कर 143 हो जाएंगी जबकि बिहार में 79, महाराष्ट्र में 76, कर्नाटक में 41, तमिलनाडु में 49 हो जाएंगी. आलम यह होगा कि केरल की एक भी सीट नहीं बढ़ेगी.
इसलिए तमिलनाडु राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है. वहां के मुख्यमंत्री स्टालिन ने मुख्यमंत्रियों और राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक 22 मार्च को चेन्नई में बुलाई है जिसमें कई दलों के नेताओं का प्रतिनिधित्व होगा. उहोंने पहले भी प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया का विरोध करते हुए राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रमुख दलों के नेताओं से समर्थन मांगा है.
मई 2023 में एम. के. स्टालिन ने 20 दलों को एक साथ जुटा कर जातिगत जनगणना के पक्ष में काफी माहौल बनाया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में सामाजिक न्याय का मुद्दा प्रमुखता से उठा था. इस बार परिसीमन का मुद्दा अहम बनने जा रहा है. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह फरवरी में ही कह चुके हैं कि दक्षिणी राज्यों को कोई नुकसान नहीं होगा, पर सरकार अभी तक किसी ठोस प्रस्ताव तक नहीं पहुंची है, इस कारण बहुत से मुद्दे अभी उठेंगे और राजनीति गरमाएगी.