ब्लॉग: छात्रों को कोचिंग के तनाव से निजात मिलने की उम्मीद

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 20, 2024 05:18 PM2024-01-20T17:18:33+5:302024-01-20T17:23:58+5:30

कोचिंग संस्थानों में विद्यार्थियों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों के मद्देनजर शिक्षा मंत्रालय द्वारा कोचिंग संस्थानों को 16 साल से कम उम्र के विद्यार्थियों को अपने यहां दाखिल नहीं करने के दिए गए निर्देश निश्चित रूप से स्वागत योग्य कदम है। 

Students hope to get relief from coaching stress | ब्लॉग: छात्रों को कोचिंग के तनाव से निजात मिलने की उम्मीद

फाइल फोटो

Highlightsशिक्षा मंत्रालय ने कोचिंग सेंटर्स को 16 साल से कम बच्चों को दाखिल नहीं देने के दिए निर्देशपढ़ाई का भोज है करने का उद्देश्य इस चक्कर में हताश होकर कई छात्र अपनी जान भी गंवा बैठते हैं

कोचिंग संस्थानों में विद्यार्थियों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों के मद्देनजर शिक्षा मंत्रालय द्वारा कोचिंग संस्थानों को 16 साल से कम उम्र के विद्यार्थियों को अपने यहां दाखिल नहीं करने के दिए गए निर्देश निश्चित रूप से स्वागत योग्य कदम है। 

कई बार विद्यार्थियों का उनके अभिभावक कोचिंग संस्थानों में दाखिला तो करा देते हैं लेकिन बाद में जब विद्यार्थी को अहसास होता है कि वह अत्यधिक पढ़ाई का दबाव नहीं झेल पाएगा या जितने नंबरों की उससे अपेक्षा की जा रही है, उतने नहीं ला पाएगा, तब भी जमा की गई भारी-भरकम फीस बर्बाद जाने के डर से वह पढ़ाई का अपनी क्षमता से ज्यादा बोझ उठाने की कोशिश करता है और इस चक्कर में हताश होकर कई छात्र अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। 

इसलिए शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में फीस के लिए बनाया गया यह नियम भी सराहनीय है कि अगर कोई छात्र बीच में पाठ्यक्रम छोड़ता है तो उसकी बची हुई अवधि की फीस लौटाई जानी चाहिए। पिछले कुछ महीनों से जिस तरह से छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं, वह बेहद चिंताजनक है। हालांकि यह समस्या पिछले कई सालों से चली आ रही है। 

वर्ष 2015 से 2023 के बीच अकेले कोटा में ही करीब सवा सौ विद्यार्थी अपनी जान दे चुके हैं। वैसे छात्रों की खुदकुशी के लिए उनके माता-पिता भी कम जिम्मेदार नहीं होते। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि कोटा में बच्चों की आत्महत्या के लिए उनके पैरेंट्स जिम्मेदार हैं। 

पैरेंट्स बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा उम्मीद लगा लेते हैं, जिसके कारण बच्चे दबाव में आ जाते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। अगर मां-बाप अपने बच्चों से इस तरह का संबंध रखें कि वे अपनी किसी भी समस्या के बारे में उन्हें खुलकर बता सकें और मां-बाप उस पर ध्यान भी दें तो विद्यार्थियों को अतिवादी कदम उठाने से बचाया जा सकता है। 

लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि कोचिंग संस्थानों के पढ़ाई के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी तरीके के कारण बच्चे मानसिक दबाव में आ जाते हैं। उन पर किसी भी हालत में सिर्फ अच्छे नंबर लाने का दबाव बनाया जाता है, जिसे कच्ची उम्र के बच्चे झेल नहीं पाते। यह सही है कि आज के प्रतिस्पर्धा भरे युग में बिना घनघोर परिश्रम के बच्चों के सामने अच्छा भविष्य बनाने की राह आसान नहीं रह गई है। 

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का इतना ज्यादा दबाव बना दिया जाए कि वे अपनी जान से ही हाथ धो बैठें। हकीकत तो यह है कि बच्चों पर अगर पढ़ाई का दबाव न बनाया जाए और सिर्फ पढ़ाई के लायक वातावरण उन्हें उपलब्ध करा दिया जाए तो वे कहीं ज्यादा अच्छी तरह से शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं। 

लेकिन आजकल तो हालत यह हो गई है कि आठवीं क्लास के बाद से ही बच्चों को कोचिंग क्लास के हवाले कर दिया जाता है और बार तो छठवीं क्लास से ही यह भयावह होड़ शुरू हो जाती है। इसलिए कोचिंग संस्थानों के लिए शिक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देश छात्रों के लिए भारी राहत के समान हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि उन्हें अपने बचपन को चिंतामुक्त होकर जीने का अवसर मिल सकेगा।

Web Title: Students hope to get relief from coaching stress

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे