पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से माहौल बिगाड़ने की साजिश को अंजाम दिया गया है। सहारनपुर हिंसा के बाद अब बुलंदशहर में हिंसा हुई है। वहां पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या ने सभी को हिला कर रख दिया है। पुलिस की शुरुआती जांच और वहां मौजूद लोगों की बातों से ऐसा लगता है कि इंस्पेक्टर की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई। हत्या का मकसद इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैलाना था।
इलाके में गोकशी के शक पर कुछ लोगों ने जमकर हंगामा किया और पुलिस पर पथराव और फायरिंग कर दी, जिसमें एक इंस्पेक्टर के अलावा एक युवक की मौत हो गई। उपद्रवियों ने कई वाहनों में तोड़फोड़ और आगजनी भी की। आखिर वे कौन लोग हैं जो आएदिन अफवाहें फैलाने और माहौल बिगाड़ने के अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं और स्थानीय खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक भी नहीं लग पाती? बताया जा रहा है कि गोकशी को लेकर उपद्रवी बुलंदशहर को जलाना चाहते थे, लेकिन उनके नापाक इरादों को इंस्पेक्टर ने अपनी जान देकर ध्वस्त कर दिया। यह सही है कि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, न ही कोई धर्म।
पर अक्सर यही भीड़ अपने धार्मिक उन्माद में बेकाबू होकर सही-गलत का फैसला करना भूल जाती है। पहले सहारनपुर और अब बुलंदशहर में भी वही हुआ। सारा देश इस समय इसी समस्या से जूझ रहा है। भीड़ का उन्माद यह भूल बैठा कि वह किसी का घर उजाड़ने जा रहा है, किसी ी की मांग सूनी कर रहा है, एक बेटे से उसके पिता का साया छीन रहा है। विकास की राह पर बढ़ते हुए आखिर हम इतने असंवेदनशील, विवेकशून्य और धर्माध क्यों होते जा रहे हैं कि हमारे भीतर कीे इंसानियत ही मरती जा रही है?
एक बार फिर दो समुदायों के बीच पसरी नफरत ने कानून के एक काबिल रखवाले की जान ले ली है। इस हिंसा के बीच पुलिस अफसर के बेटे ने एक सवाल किया है, ‘आज मेरे पिता की जान गई, कल किसकी जाएगी, किसके सिर से उठेगा पिता का साया?’ क्या इसका जवाब इन उन्मादियों, उपद्रवियों, समाजद्रोहियों के पास है? अपने सियासी फायदे के लिए समय-समय पर बेतुकी बयानबाजियां करने और समाज में नफरत फैलाने वाले देश के नेताओं को भी इस सवाल पर गंभीरता से विचार करना होगा।