मानव जाति पर कितना भारी पड़ेगा जलवायु परिवर्तन? निरंकार सिंह का ब्लॉग
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 6, 2021 03:20 PM2021-07-06T15:20:06+5:302021-07-06T15:21:49+5:30
एक हजार साल पहले पूरी दुनिया में प्लेग की वजह से बहुत बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई थी. 76 हजार साल पहले 90 फीसदी मानव जाति ही खत्म हो गई थी.
दुनिया के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने दस साल पहले ही कहा था कि अगले 100-200 वर्षों में पृथ्वी पर ऐसी घटना घट सकती है जिससे पूरी की पूरी मानव जाति ही खत्म हो जाए.
उनका यह भी कहना था कि मानव जाति को बचाने के लिए एक ही तरीका है कि हम जल्द से जल्द चंद्रमा और अन्य ग्रहों पर बस्ती बसाने की व्यवस्था करें. क्या सचमुच इस सदी के खत्म होते-होते इंसान का अस्तित्व इस धरती से मिट जाएगा? अब यह सवाल मानव जाति के लिए चिंता का विषय बन गया है.
क्या कोई कोरोना से भी बड़ी महामारी अथवा न्यूक्लियर जंग या जलवायु परिवर्तन या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अथवा बायो-इंजीनियरिंग या जनसंख्या विस्फोट अथवा कोई बड़ा आतंकी हमला पृथ्वी पर जीवन को संकट में डाल देगा? मानव जाति के इतिहास में हर एक हजार साल के बाद ऐसे दौर आते रहे हैं जब एक तिहाई आबादी ही खत्म हो जाती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि संपूर्ण मानव जाति लुप्त हो गई हो.
एक हजार साल पहले पूरी दुनिया में प्लेग की वजह से बहुत बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई थी. 76 हजार साल पहले 90 फीसदी मानव जाति ही खत्म हो गई थी. जेनेटिक प्रमाणों से पता चलता है कि एक समय ऐसा आया था जब धरती पर दस हजार लोग ही बचे थे. ऑस्ट्रेलिया स्थित एक थिंक टैंक की रिसर्च हमें बताती है कि कैसे क्लाइमेट चेंज के चलते वर्ष 2050 तक मानव सभ्यता खत्म हो सकती है.
सुनने में ऐसा लगता है कि ये बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है, लेकिन इसके सच होने की आशंका कल्पना से ज्यादा भी हो सकती है. इस थिंक टैंक ने चेतावनी दी है कि मानव सभ्यता अगले तीन दशकों से ज्यादा नहीं बच पाएगी. वर्ष 2050 तक पृथ्वी का औसत तापमान तीन डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाएगा.
इस रिसर्च को समझाते हुए ऑस्ट्रेलियन रक्षा बल के चीफ और रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी के एडमिरल क्रिस बैरी बताते हैं कि ये रिपोर्ट इंसान और पृथ्वी की निराशाजनक स्थिति को दर्शाती है. ये बताती है कि मानव जीवन अब भयंकर रूप से विलुप्त होने के कगार पर है. इसकी वजह है क्लाइमेट चेंज. पिछले 100 सालों में रीढ़धारी प्राणियों की 200 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं.
यानी प्रतिवर्ष औसतन 2 प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. मगर पिछले बीस लाख वर्षों में जैविक विलुप्ति की दर को देखें तो 200 प्रजातियों को विलुप्त होने में सौ नहीं बल्कि दस हजार वर्ष लगने चाहिए थे. वास्तव में यह रिपोर्ट इससे कहीं आगे जाकर चेतावनी देते हुए कहती है कि पशुओं और पौधों की लगभग 10 लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
इनमें से हजारों प्रजातियां आने वाले दशकों में ही विलुप्त हो जाएंगी. आकलन रिपोर्ट में विलुप्त होने की इस दर को अब तक के मानव इतिहास में सबसे अधिक बताया गया है. संयुक्त राष्ट्र के 400 से अधिक विशेषज्ञों के एक दल ने ‘समरी फॉर पॉलिसीमेकर’ नामक रिपोर्ट को तैयार किया.
रिपोर्ट में यह साफ चेतावनी थी कि आगे प्रकृति से छेड़छाड़ का यही हाल रहा तो भविष्य में इन प्रजातियों के नामोनिशान मिटने के साथ-साथ पृथ्वी से इंसानों का भी सफाया हो जाएगा. पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन के लिए सभी वन्य प्राणियों का संरक्षण बेहद जरूरी है, अन्यथा किसी भी एक वन्यप्राणी के विलुप्त होने पर पूरी संरचना धीरे-धीरे बिखरने लगती है.
चूंकि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न जीव एक-दूसरे पर निर्भर हैं इसलिए अन्य प्राणियों की विलुप्ति से हम मनुष्यों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. नए वैज्ञानिक अध्ययन यह बताते हैं कि इंसान जानवर को महज जानवर न समङो, बल्कि अपना वजूद बनाए रखने का सहारा समझे.
दो या तीन दशकों के भीतर मनुष्य अगर जैवविविधता में गिरावट को नहीं रोक पाया तो मानव अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. ऑस्ट्रेलिया स्थित थिंक टैंक की रिसर्च इंसान और पृथ्वी की निराशाजनक स्थिति को दर्शाती है.
ये बताती है कि मानव जीवन अब भयंकर रूप से विलुप्त होने के कगार पर है. इसकी वजह है क्लाइमेट चेंज. क्लाइमेट चेंज अब मानव अस्तित्व के लिए खतरा बनता चला जा रहा है. ऐसा खतरा जिसे संभाल पाना नामुमकिन सा हो जाएगा.