सोनिया गांधी की अगुवाई में गठबंधन पर वार्ता!
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 13, 2018 03:22 AM2018-07-13T03:22:10+5:302018-07-13T03:22:10+5:30
समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बातचीत में अधिक समय लगते देख अब सोनिया गांधी इसका नेतृत्व कर सकती हैं।
लेखक- हरीश गुप्ता
समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बातचीत में अधिक समय लगते देख अब सोनिया गांधी इसका नेतृत्व कर सकती हैं। उत्तर प्रदेश में बदलती स्थिति चिंता पैदा कर रही है, जहां बसपा प्रमुख मायावती किसी भी कांग्रेस नेता से बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में सोनिया गांधी वर्ष 2004 की पुनरावृत्ति कर सकती हैं, जब वे लोकसभा चुनाव के पूर्व मायावती के निवास पर गई थीं। वे अपने 10 जनपथ स्थित निवास से पैदल ही उनके घर पहुंची थीं। बाद में वे राकांपा प्रमुख शरद पवार के निवास पर भी गई थीं, जिन्होंने उनके नेतृत्व के खिलाफ कांग्रेस को छोड़ा था। सोनिया गांधी के दुबारा सामने आने का कारण यह है कि राहुल गांधी इस काम के लिए नए हैं और वरिष्ठ नेता अभी भी उनके सामने खुलकर बात करने में हिचकिचाते हैं।
ममता बनर्जी ने हाल ही में उनके लिए ‘जूनियर नेता’ शब्द का प्रयोग किया था। नेतागण अभी भी सोनिया गांधी के साथ बातचीत करने में सहज महसूस करते हैं। जिस बात ने कांग्रेस को चिंतित किया, वह यह है कि मायावती कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 8-10 लोकसभा सीटों से ज्यादा देने की इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने सपा के अखिलेश यादव से कह दिया है कि बसपा कम से कम 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और यदि कांग्रेस तथा रालोद को सीटें देनी हों तो वे सपा के कोटे से देनी होंगी। जाहिर है कि मायावती लोकसभा सीटों की बड़ी संख्या पर नजरें गड़ाए हुए हैं ताकि प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार बन सकें। वे इसलिए भी कठोरता दिखा रही हैं ताकि कांग्रेस से बसपा के लिए पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में अधिक सीटें हासिल कर सकें। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव अशोक गहलोत का कहना है कि सोनिया गांधी इस पहलू पर आगे ध्यान देंगी।
कलह से लालू चिंतित
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव चिंतित हैं। वे हाल ही में उपचार के लिए मुंबई गए थे लेकिन जल्दी ही उन्हें पटना वापस लौटना पड़ा। कारण! परिवार में झगड़ा शुरू हो गया है, जैसा कि उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने अपने छोटे भाई तेजस्वी के खिलाफ बयान दिया, जो कि प्रभावी रूप से पार्टी में नंबर दो पर हैं। विवाद पांच जुलाई को तब बाहर आया जब तेजप्रताप अपने छोटे भाई पर बरस पड़े। संकट की इस घड़ी को इसने और गंभीर बना दिया है। दूसरा कारण यह था कि तेजस्वी ने तब अपनी सीमा पार कर दी जब उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन में प्रवेश के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। लालू ने मुंबई से फोन पर अपने दोनों बेटों को फटकार लगाई और आग बुझाने के लिए खुद पटना पहुंचे। चूंकि अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से वे जमानत पर हैं, इसलिए सार्वजनिक रूप से राजनीति नहीं कर सकते। फिर भी, लालू एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं, जो जानते हैं कि बिना नीतीश के वे 2019 में सफलता हासिल करने में सक्षम नहीं होंगे। भाजपा-जद (यू)-लोजपा-आरएलएसपी गठबंधन बहुत मजबूत है। लालू की चिंता यह है कि तेजप्रताप यादव की पत्नी ऐश्वर्या राय एक राजनीतिक परिवार से संबंधित हैं और राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखती हैं। ऐसा लग रहा है कि उनके मायके वाले इस आग में ईंधन डाल रहे हैं। लेकिन लालू अभी उन्हें चकाचौंध से दूर रखना चाहते हैं। संभव है लालू पटना में अपने प्रवास के दौरान नीतीश कुमार से फोन पर संपर्क करें।
सिरदर्दो से छुटकारा!
भाजपा और जद (यू) के बीच सीटों के बंटवारे की व्यवस्था में शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद और कुछ अन्य भाजपा सांसदों की सीट खतरे में पड़ सकती है। अब यह बात स्पष्ट रूप से उभर रही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ जाएंगे और गठबंधन के दोनों भागीदार अपने सिरदर्दो से छुटकारा पाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार 2019 के चुनाव के लिए बिहार की 40 में से 15 लोकसभा सीटें चाहते हैं, लेकिन ऐसी संभावना है कि वे दस सीटों पर संतुष्ट हो सकते हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पटना साहिब और दरभंगा सीट से शत्रुघ्न सिन्हा तथा कीर्ति आजाद जैसे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए नीतीश के कंधे पर बंदूक रखकर चला सकते हैं। जद (यू) ने पूर्णिया और नालंदा सीट पर जीत हासिल की थी। भाजपा उसे सुपौल (कांग्रेस द्वारा जीती हुई) और अररिया (राजद) सीट भी दे सकती है। इसी प्रकार तारिक अनवर (राकांपा) द्वारा जीती हुई कटिहार सीट भी जद (यू) को दी जा सकती है। मधेपुरा सीट, जहां जद (यू) को राजद ने हराया, की अदला-बदली की जा सकती है। ऐसे संकेत हैं कि उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी से एक सीट वापस ली जा सकती है क्योंकि उनके एक लोकसभा सांसद ने बगावत की थी।
जेटली का तरीका
ऐसा लगता है कि अरुण जेटली ने अपने प्रशंसकों और मित्रों से मिलने का तरीका निकाल लिया है जो उनके स्वास्थ्य और भलाई के बारे में जानना चाह रहे हैं। 14 मई को एम्स में किडनी ट्रांसप्लांट सजर्री के बाद जेटली को पूर्ण विश्रम की सलाह दी गई है। उन्हें पिछले महीने ही अस्पताल से छुट्टी दी गई है और वे 2-ए कृष्ण मेनन मार्ग स्थित अपने सरकारी निवास पर आराम कर रहे हैं। उन्हें इन्फेक्शन से बचाने के लिए चौबीसों घंटे डॉक्टरों की सख्त निगरानी के तहत स्टर्लाइज्ड एनवायरनमेंट में रखा गया है। किसी भी आगंतुक को उनके कमरे में जाने की अनुमति नहीं है। चूंकि उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हो रहा है, डॉक्टरों ने उन्हें थोड़ा-बहुत चलने-फिरने की अनुमति दे दी है। वे करीब-करीब रोज ही खुद को ब्लॉग लिखने में व्यस्त रखते हैं, टीवी देखते हैं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करते हैं। अब वे अपने निवास पर दिन भर में 10-12 लोगों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात करते हैं। चूंकि आगंतुकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है, उन्होंने उनसे मिलने का निर्णय लिया है। लेकिन यह मुलाकात विशेष रूप से बनाई गई खिड़की के जरिए होगी। शुभचिंतक उन्हें खिड़की के दूसरी तरफ से देख सकेंगे और अभिवादन कर सकेंगे। चूंकि जेटली राज्यसभा के नेता हैं, संसद भवन के उनके कक्ष में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध कराई गई है, ताकि वे देख सकें कि राज्यसभा में क्या चल रहा है। वे जुलाई के अंत तक कभी भी नॉर्थ ब्लॉक स्थित अपने कार्यालय में वापस लौट सकते हैं।